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Updated: 11 जनवरी, 2022 08:18 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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यूपी की सियासत में स्वामी प्रसाद मौर्य का सरप्राइजिंग पलायन बेहद रूटीन खबर है. चुनावों में ऐसी आवाजाही होती है. बंगाल में खूब हुई, अब यूपी चुनाव में भी हो रही है. आगे और होगी. फर्क इसी से पड़ता है कि कौन किधर कितना वजन लेकर जा रहा है, या बोझ बनकर जा रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने दो लाइन का ट्वीट किया है, और वही राज्यपाल को भेजा गया उनका इस्तीफा है. 'दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूं'. पूरी खबर उनके ऐतराज भी है. क्योंकि, इन्हीं ऐतराज में चुनावी मुद्दे हैं. अगर स्वामी प्रसाद मौर्य के भाजपा से जुड़े ऐतराज जायज और ईमादार हैं, तो यह भाजपा के लिए नुकसानदेह है. लेकिन, उनका ट्विटर हैंडल तो कुछ और ही कहानी कहता है. जिन बातों को लेकर उन्होंने भाजपा से नाराजगी दिखाई है, वे ट्विटर पर उन्हीं बातों को लेकर भाजपा सरकार की हाल तक प्रशंसा करते रहे हैं.

19 नवंबर 2021- कृषि कानून वापस लेने पर तो वे नरेंद्र मोदी और भाजपा के फैन ही हो गए. स्वामी प्रसाद मौर्य ने ट्विटर पर लिखा- 'देश के यशश्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा तीनों कृषि विधेयक वापस लेकर किसानों के सम्मान में चार चांद लगाया है, उनके ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत करता हूं. इस निर्णय ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मोदी सरकार की प्राथमिकता में किसान सदैव सर्वोपरि था आज भी है और आगे भी रहेगा.' हालांकि, अब वे शिकायत कर रहे हैं कि भाजपा में किसानों का सम्मान नहीं हो रहा है.

17 नवंबर 2021- योगी सरकार में रहते हुए वे कामगारों के उत्थान और बेरोजगारों को नौकरी देने के लिए मेरठ में आयोजित एक रोजगार मेले के उद्धाटन में पहुंचे. कार्यक्रम के बारे में स्वामी प्रसाद मौर्य खुद ट्विटर पर लिखते हैं- 'मेरठ में सेवायोजन एवं कौशल विकास विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय विशाल रोजगार मेला, स्थान IIMT मेरठ में 14 हजार तकनीकी एवं गैर तकनीकी पदों के सापेक्ष अभ्यर्थियों के किये जा रहे चयन प्रक्रिया में प्रतिभागियों को संबोधित किया, तथा चयनित अभ्यर्थियों को प्रमाण पत्र वितरण किया.' यानी कामगारों को लेकर उनका विभाग और वे खुद यहां तक संतोषजनक काम कर रहे थे. उनकी मुस्कुराती फोटो भी देखी जा सकती है.

31 अक्टूबर 2021- स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सरकार के ई-श्रम पोर्टल का श्रेय लेते देखे गए. जिसके जरिए दावा किया गया कि यूपी के एक करोड़ श्रमिकों का यहां पंजीयन हुआ. मतलब यहां तक भी श्रमिकों की दृष्टि से सब ठीक ही चल रहा था.

3 अक्टूबर 2021- भाजपा राज में किसानों की उपेक्षा की दुहाई देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का लखीमपुर हादसे लेकर झुकाव योगी आदित्यनाथ की न्यायप्रियता की ओर ही था. उन्होंने अपनी शोक संवेदना जताने के बाद इतना ही कहा कि 'माननीय मुख्यमंत्री जी ने घटना को अत्यंत गंभीरता से संज्ञान में लिया है, जो भी दोषी होगा बख्शा नहीं जाएगा.'

क्या फर्क है 2016 और 2022 के पलायन में

2016 यूपी चुनाव से सात महीने पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा छोड़ दी थी. आरोप लगाया था कि पार्टी में 'पैसे लेकर टिकट' दिए जाने का रैकेट चलाया जा रहा है. हालांकि, बसपा में पैसा लेकर टिकट दिए जाने की चर्चा काफी पहले से थी, लेकिन जब मौर्य ने ये आरोप लगाया तो उनका कदम अवसरवादी होने के बावजूद लोगों को आपत्तिजनक नहीं लगा. अब जबकि यूपी चुनाव की घोषणा हो चुकी है, तो स्वामी ने फिर पाला बदला है. वे बीजेपी छोड़, समाजवादी पार्टी में चले गए हैं. योगी आदित्यनाथ सरकार की कैबिनेट में बिना शिकायत अपना कार्यकाल पूरा करने वाले मौर्य कह रहे हैं कि 'दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों एवं छोटे-लघु एवं मध्यम श्रेणी के व्यापारियों की घोर उपेक्षात्मक रवैये के कारण उत्तर प्रदेश के योगी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूं.' तो पूछा जाना लाजमी है कि इतने भारी असंतोष के बावजूद मौर्य आखिरी समय तक भाजपा में बने क्यों रहे? स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से बीजेपी की सांसद है, तो अब सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या वे भी भाजपा से इस्तीफा देंगी?

Swami Prasad Maurya, BJP, BSP, Mayawati, Akhilesh yadav, Samajwadi Party, Assembly Electionsसपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ दल बदल के लिए मशहूर स्वामी प्रसाद मौर्य

बदलू मौर्य के 67 वर्षीय पुत्र स्वामी प्रसाद यूपी की सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं. 80 के दशक में उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत लोकदल के युवा विंग से की. फिर 90 की शुरुआत में जनता दल का हिस्सा बने. 1996 में बसपा से जुड़ने के बाद उन्होंने वोटों की राजनीति को साध लिया. वे 1998 से 2016 तक बसपा विधायक, मंत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका तक रहे. खुद को अंबेडकरवादी बताने वाले मौर्य ने 2016 में जब बसपा के घटते हुए जनाधार और भाजपा के उभार को देखा तो तुरंत पाला बदल लिया.

बसपा के भीतर गंभीर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उन्होंने मायावती को भी घेरे में लिया. जबकि उनके आरोपों पर मायावती ने इतना ही कहा कि अच्छा हुआ जो वे पार्टी छोड़कर चले गए, वरना निकाल दिए जाते. वे बसपा में वंशवाद को बढ़ावा देना चाहते थे, जो मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ. मौर्य ने सिर्फ भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते, बल्कि कैबिनेट मंत्री भी बने. इतना ही नहीं, उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य भी भाजपा के टिकट पर 2019 का लोकसभा चुनाव जीतीं.

क्या मौर्य का टिकट कट रहा था?

2022 के यूपी चुनाव की घोषणा के बाद भाजपा के भीतर खलबली मची हुई है. 'आजतक' की खबर के अनुसार करीब 45 भाजपा विधायकों के टिकट इस बार कट सकते हैं. इन पर निष्क्रियता और दूसरी तरह के आरोप हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के अलावा शाहजहांपुर की तिहार सीट से भाजपा विधायक रोशनलाल वर्मा, बिल्हौर से भाजपा विधायक भगवती सागर और बांदा से भाजपा विधायक ब्रजेश प्रजापति ने भी पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है.

मौर्य के सपा ज्वाइन करने से अखिलेश उत्साहित क्यों नहीं?

आइये, बंगाल चुनाव के पहले और बाद के घटनाक्रम से इसे समझते हैं. तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने चुनाव से पहले भाजपा ज्वाइन कर ली थी. लेकिन, नतीजे आने के बाद वे दोबारा टीएमसी में लौट गए. और इस तरह से ममता बनर्जी ने अपनी ताकत दिखाकर अपना चुंबकत्व साबित किया. लेकिन, बसपा से भाजपा में आकर सपा में जा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को दो तरह से देखा जा सकता है. एक तो भाजपा अपना प्रभाव खो रही है, या फिर भाजपा में तिरस्कार झेल रहे लोग जैसे तैसे कोई राजनीतिक किनारा पकड़ लेना चाहते हैं. दोनों ही स्थिति में समाजवादी पार्टी के पक्ष में उत्साहजनक नैरेटिव नहीं है. अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य का स्वागत करते हुए ट्विटर पर लिखा- 'सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता श्री स्वामी प्रसाद मौर्या जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन है!'

यदि अखिलेश ने स्वामी प्रसाद को सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाला नेता मान रहे हैं, तो ऐसा उन्होंने बसपा में रहते हुए किया या फिर भाजपा में रहते. दोनों ही पार्टियां जिनका सपा ने विरोध किया. स्वामी प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव दोनों ही एक दूसरे की मजबूरी को समझ रहे हैं.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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