तो अनंतनाग हमले का अंजाम होगा आतंक मुक्त कश्मीर और पीओके में तिरंगा!
क्या मोदी सरकार बिलकुल वैसा ही कर रही है जैसा राहुल गांधी सोच, समझ या फिर मीडिया में समझा रहे हैं? या सरकार का उससे कहीं आगे का प्लान है? केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का बयान तो कुछ और ही इशारा कर रहा है - कुछ बड़ा सा.
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कश्मीरियत पर छिड़ी बहस के बीच राहुल गांधी ने केंद्र मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर धावा बोला है. पीडीपी के साथ बीजेपी के गठबंधन में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का निजी फायदा देखते हैं और उनका इल्जाम है कि इसका खामियाजा कश्मीरियों और पूरे देश को उठाना पड़ रहा है.
निशाने पर होकर भी जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राजनीतिक परिपक्वता दिखाई है और आम कश्मीरियों के बीच खड़े होकर उन्हें भरोसा दिलाती नजर आ रही हैं.
लेकिन क्या मोदी सरकार बिलकुल वैसा ही कर रही है जैसा राहुल गांधी सोच, समझ या फिर मीडिया में समझा रहे हैं? या सरकार का उससे कहीं आगे का प्लान है? केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का बयान तो कुछ और ही इशारा कर रहा है - कुछ बड़ा सा.
आतंक मुक्त कश्मीर का फंडा
अनंतनाग में अमरनाथ यात्रियों पर हमले को लेकर राहुल गांधी ने जवाबदेह तो पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की सरकार को माना, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्यादा जिम्मेदार बताया. बिना लाग-लपेट के राहुल गांधी ने एक के बाद एक कई ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट किया. अपने ट्वीट में राहुल ने कहा, "मोदी की नीतियों के कारण कश्मीर में आतंकवादियों को मौका मिला. भारत के लिए ये करारा रणनीतिक झटका है."
Modi’s policies have created space for terrorists in Kashmir. Grave strategic blow for India#AmarnathTerrorAttack
— Office of RG (@OfficeOfRG) July 12, 2017
एक अन्य ट्वीट में राहुल ने कहा, "पीडीपी गठबंधन से मोदी को मिले तात्कालिक फायदे की वजह से भारत को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है." वैसे राहुल गांधी के इस बयान में इरादा तो राजनीतिक फायदा ही नजर आ रहा है. करीब करीब उसी तरह जैसे सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर 'खून की दलाली' वाला बयान दिया था.
कश्मीर के बहाने मोदी पर निशाना...
अनंतनाग हमले का मास्टरमाइंड सुरक्षा बलों के टारगेट पर आ चुका है और अधिकारी उसके काफी करीब बता रहे हैं. इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद अपने अंतिम चरण में है. इस सिलसिले में वो बताते हैं कि सरकारी एजेंसियां इलाके से आतंकवादी हमलों के खात्मे की रणनीति के तहत दहशतगर्दों पर शिकंजा कसने में जुटी हुई हैं.
जिस तरह जोर देकर जितेंद्र सिंह ने ये बातें कही हैं लगता है उसकी नींव साल भर पहले ही पड़ गयी थी जब प्रधानमंत्री ने पहली बार बलूचिस्तान का मसला उठाया. 70वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने गिलगित-बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान में होने वाले नरसंहारों की ओर देश और दुनिया का ध्यान खींचा. बाद के दिनों में भी एनडीए सरकार ने कई मौकों पर पीओके को लेकर अपने तेवर से पाकिस्तान को रूबरू कराने की कोशिश की.
सबके साथ...
बलूचिस्तान की तरह ही मोदी सरकार अब पीओके पर भी पाकिस्तान को संदेश देने की कोशिश कर रही है. पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह के साथ साथ श्रीनगर पहुंचे गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने भी सरकार का इरादा साफ करने की कोशिश की. जितेंद्र सिंह ने तो पीओके के लोगों के साथ खड़े होने की ही बात नहीं बल्कि वहां तिरंगा तक फहराने की बात कह डाली. जितेंद्र सिंह ने कहा - 'जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है. समस्या सिर्फ गुलाम कश्मीर की है, उसे वापस लेना है, यही अंतिम हल है.' वैसे याद रखना होगा ये जितेंद्र सिंह ही हैं जिन्होंने मोदी के सत्ता संभालते ही धारा 370 पर बयान देकर बवाल मचा दिया था - और बाद में बीजेपी नेताओं ने उनके बयान को कम अहमियत देकर स्थिति संभाली.
जितेंद्र सिंह की बात पर अलगाववादी नेताओं ने एक बयान में आगाह करने की कोशिश की कि इस तरह की बातों से न तो विरोध की आवाज दबायी जा सकती है और न ही हकीकत को झुठलाया जा सकता है - और फिर कश्मीर के हालात बदलने में भी इस तरह की बातों से कोई मदद नहीं मिलने वाली. ये बयान हुर्रियत नेताओं सैयद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक की ओर से जारी किया गया.
उधर, इस्लामाबाद में जो राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं वे भी भारत-पाक रिश्ते के साथ साथ कश्मीर के लिए काफी अहम हैं - क्योंकि पनामा पेपर लीक में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बुरी तरह घिर चुके हैं. कुर्सी पर तलवार लटक रही है.
सबसे बड़ा चैलेंज
पाकिस्तान की स्थिति भी इस वक्त बिहार जैसी हो गयी है. जिस तरह बिहार की सत्ता में हिस्सेदार पूरी लालू फेमिली जांच एजेंसियों की चपेट में है उसी तरह नवाज शरीफ का परिवार भी पनामा जांच में बुरी तरह फंस चुका है. लालू के बेटे तेजस्वी तो मूंछों के नाम पर मैदान में डटे हुए हैं लेकिन शरीफ के सत्ता से बेदखल होने की नौबत आ गयी है. जिस तरह जांच एजेंसियों ने पहले लालू की बेटी मीसा भारती को घेरा उसी तरह पहले नवाज की बेटी भी पकड़ में आईं. मरियम फर्जी दस्तावेजों के चलते पकड़ में आईं - वो भी माइक्रोसॉफ्ट के एक फॉन्ट कैलिबरी के चलते. सुप्रीम कोर्ट को सौंपी अपनी फाइनल रिपोर्ट में स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने बताया कि मरियम द्वारा सौंपे गये दस्तावेज 2006 के हैं - जबकि कैलिबरी फॉन्ट 31 जनवरी 2007 तक व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उपलब्ध ही नहीं हुआ था.
अब तो पाकिस्तान के सियासी गलियारों में नवाज के उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा होने लगी है. खासकर नवाज के भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज शरीफ को मीटिंग के लिए बुलाये जाने के बाद. बताते हैं कि इस मीटिंग में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के कई बड़े नेता भी मौजूद थे. अब सवाल है कि नवाज के कुर्सी छोड़ने का भारत के साथ रिश्तों और पाकिस्तान की विदेश नीति पर क्या असर पड़ता है. अब तक देखा तो यही गया है कि पाकिस्तान में जब भी कोई मुश्किल घड़ी आती है तो उसके पास बचाव का रास्ता कश्मीर मसला ही होता है.
जबरदस्त सुरक्षा बंदोबस्त
सत्ता परिवर्तन के बाद नये निजाम के सामने चैलेंज भी हजार होंगे और वे भारत की चुनौतियां भी बढ़ाएंगे ये भी तय ही समझना चाहिये. मुमकिन है सत्ता का केंद्र इस्लामाबाद से रावलपिंडी ही शिफ्ट हो जाये - जहां सेना का मुख्यालय है.
फौजी हुक्मरान का दखल तो नवाज के शासन में भी देखा ही जाता है, लेकिन नये सूरत-ए-हाल में ये हस्तक्षेप और बढ़ेगा ये तो मान कर ही चलना होगा.
पाकिस्तान के बदले अंदरूनी हालात में भारत को भी नयी परिस्थितियों से मुकाबले के लिए तैयार रहना होगा - और वही मोदी सरकार की कश्मीर नीति के लिए सबसे बड़ा चैलेंज भी होगा.
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