जर्मनी में 'बुर्के पर बैन' तो शुरुआत भर है
यूरोप भर में इस्लाम विरोध की जो बयार बह रही है उसने जर्मनी की धरती पर भी उग्र दक्षिणपंथ की ऐसी आग दहका दी है जिसमें उदारवादी राजनीति का जल कर भस्म हो जाना स्वाभाविक ही है.
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आज से सात महीने पहले जब बर्लिन की सड़कें शरणार्थियों के विरोध में NO ISLAM ON GERMAN SOIL, MERKEL MUST GO के उग्र नारों से गूंज रही थी तो शायद खुद एंजेला मर्केल तक को भी ये अंदाज़ा नहीं हुआ होगा कि आने वाले वक्त में मुसलमानों को लेकर नीति पर उन्हें ऐसे यूटर्न लेना होगा. प्रवासियों पर अपनी सॉफ्ट नीति को लेकर निशाने पर रहीं मर्केल के बुर्के पर हालिया बयान ने एक बात तो साफ कर दी है कि चेहरा ढंकने वाले बुर्के पर बैन के जरिए जर्मन राजनीति दुनिया को अब अपना इस्लाम विरोधी चेहरा दिखाने से परहेज़ नहीं करने वाली.
अपने भाषण में जर्मनी में बुर्का बैन करने की वकालत की |
पूर्वी जर्मनी के शहर एसेन में क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स यूनियन के सम्मेलन में चांसलर मर्केल का 77 मिनट का भाषण तालियों की गड़गड़ाहट से उस वक्त कई बार रुका जब उन्होंने ऐलान किया कि वो बुर्के पर बैन के समर्थन में हैं. खुद मर्केल के शब्दों में 'आपको अपना चेहरा दिखाना होगा...पूरी तरह से चेहरा ढंकने की इजाजत नहीं दी जा सकती...बुर्का बैन हर उस जगह लागू किया जाएगा जहां संभव हो.'
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जर्मनी की सड़कों पर प्रवासी विरोध वाले नारों और सीडीयू सम्मेलन में बुर्का समर्थन के भाषण पर तालियों की गड़गड़ाहट का साम्य अब एक संकेत नहीं सच्चाई है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. मर्केल ये बात अब अच्छी तरह से जानती हैं. ये मर्केल ही थीं जो इस साल के शुरुआत में प्रवासियों पर अपनी नीति को लेकर पूरे यूरोप की अगुवा बनीं थी लेकिन साल खत्म होते होते ये साफ हो गया है कि यूरोप भर में इस्लाम विरोध की जो बयार बह रही है उसने जर्मनी की धरती पर भी उग्र दक्षिणपंथ की ऐसी आग दहका दी है जिसमें उदारवादी राजनीति का जल कर भस्म हो जाना स्वाभाविक ही है.
अगले साल जर्मनी में चुनाव हैं और चौथी बार चांसलर बनने का दम भरने वाली मर्केल को पता है कि 'उदारवादी-मानवीय' चेहरा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति तो दिला सकता है लेकिन चुनाव में जीत नहीं. इसी साल सितंबर में हुए स्थानीय चुनावों में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के शानदार प्रदर्शन ने सीडीयू को तीसरे पायदान पर धकेल दिया था. दो महीने पहले हुए इन चुनावों में सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट को 30 % , एएफडी 21 % और सीडीयू को 19 % वोट हासिल हुए थे.
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महज 3 साल पहले बनी इस पार्टी के आक्रामक तेवर ने सीडीयू की नींद उड़ा रखी है. मर्केल की नीतियों की कट्टर विरोधी रही पार्टी ने अपने घोषणापत्र में बुर्का पहनने, नमाज़ पढ़ने और मस्जिदों पर बैन का खुलेआम समर्थन किया है. एएफडी के हाथों अपनी संसदीय सीट पर ही पार्टी की हार के झटके ने ही मर्केल की हालिया राजनीति की दिशा तय कर दी होगी..इसमें शक नहीं. स्थानीय चुनावों से ये जाहिर हो गया था कि वोटरों का रुख किस ओर है.
सबसे खास बात ये है कि मर्केल अपने कल के भाषण में इस्लाम विरोधी, प्रवासी विरोधी नीति के पैरोकारों की कड़ी आलोचना करने से नहीं हिचकीं. लेकिन बुर्के पर बयान के बाद भाषण में ऐसे विरोधाभासों का जिक्र सिर्फ औपचारिकता ही है ये सब जानते हैं. फ्रांस, बेल्जियम और स्विटज़रलैंड में पहले से बुर्के पर बैन लागू है, ऐसे में यूरोप भर में परवान चढ़ रहे उग्र राष्ट्रवाद और इस्लाम विरोध की धारा में जर्मनी को भी बहना होगा ये तय है और शायद मर्केल भी अब किनारे बैठने वाली नहीं हैं. कल का बयान तो महज शुरुआत भर है.
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