क्या महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने वाली है?
महाराष्ट्र में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भाजपा सत्ता से बाहर होने का दंश झेल रही है. गठबंधन की महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही भाजपा नेताओं का कहना रहा है कि यह सरकार अपने ही अंर्तविरोधों से गिर जाएगी. हाल फिलहाल के प्रकरण को देखकर भाजपा नेताओं के इस कथन को भरपूर बल मिलता दिख रहा है.
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एंटीलिया केस, 100 करोड़ की वसूली और ट्रांसफर-पोस्टिंग में रिश्वत के आरोपों में घिरी महाराष्ट्र सरकार शायद सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. परमबीर सिंह ने इस मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया था. हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों पर सीबीआई जांच को मंजूरी देने का साथ ही 15 दिनों के अंदर आरंभिक जांच पूरी करने का निर्देश दिया. जिसके बाद एनसीपी नेता अनिल देशमुख ने 'नैतिकता' के आधार पर महाराष्ट्र के गृह मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. इस पूरे प्रकरण के दौरान अनिल देशमुख और एनसीपी चीफ शरद पवार लगातार कहते रहे थे कि इस्तीफे का सवाल ही नहीं पैदा होता है. खैर, इस्तीफे के बाद देशमुख और उद्धव सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बन लिया है. हालांकि, यह कोशिश हवा को हाथ से पकड़ने की तरह है. महाविकास आघाड़ी सरकार की जितनी फजीहत होनी थी, वो तो हो चुकी है. सीबीआई जांच में पर्दे के पीछे छिपे कई चेहरे सामने आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने वाली है?
इस्तीफे के बाद अनिल देशमुख और उद्धव सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बन लिया है.
हाथ आया मौका जाने नही देगी भाजपा
महाराष्ट्र में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भाजपा सत्ता से बाहर होने का दंश झेल रही है. गठबंधन की महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद से ही भाजपा नेताओं का कहना रहा है कि यह सरकार अपने ही अंर्तविरोधों से गिर जाएगी. हाल फिलहाल के प्रकरण को देखकर भाजपा नेताओं के इस कथन को भरपूर बल मिलता दिख रहा है. भाजपा ने शुरुआत से ही इस मामले को पॉलिटिकल सिंडीकेट के तौर पर पेश किया था. सरल और साफ शब्दों में कहा जाए, तो भाजपा को ऐसे ही किसी बड़े मौके की तलाश में थी.
भाजपा ने शुरुआत से ही इस मामले को पॉलिटिकल सिंडीकेट के तौर पर पेश किया था.
भाजपा ने एक ही झटके में पूरी सरकार को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है. देवेंद्र फडणवीस ने केवल एनसीपी ही नहीं शिवसेना को भी अपने निशाने पर लिया हुआ है. फडणवीस ने कहा है कि सारे निर्णय सीएम के आदेश पर होते हैं, इसलिए केवल एनसीपी ही नहीं शिवसेना की भी जिम्मेदारी बनती है. इस बयान से इतर यहां इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि एंटीलिया मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की गिरफ्त में आया सचिन वाजे पूर्व में शिवसैनिक रहा है. भाजपा किसी भी हाल भी में हाथ में आया ये मौका जाने नहीं देगी और सरकार पर अपनी ओर से जितना दबाव बना सकती है, बनाएगी.
सीबीआई जांच पर टिकी है सरकार?
सीबीआई को 15 दिनों के अंदर जांच पूरी कर बॉम्बे हाईकोर्ट में रिपोर्ट देनी है. जिसके बाद तय होगा कि मामले में एफआईआर दर्ज होगी या नहीं? सीबीआई जल्द ही परमबीर सिंह के बयान लेकर वसूली कांड और ट्रांसफर-पोस्टिंग में रिश्वत के केस से जुड़े दस्तावेज जुटाने लगेगी. जांच आगे बढ़ने के साथ ही और कई नामों का खुलासा हो सकता है. सचिन वाजे 100 करोड़ की वसूली का लक्ष्य मिलने की बात स्वीकार चुका है. परमबीर सिंह ने उद्धव ठाकरे को लिखे अपने पत्र में वाजे को वसूली का लक्ष्य मिलने का जिक्र कर ही दिया था. सीबीआई की जांच की आंच परमबीर सिंह के वसूली के आरोपों के साथ ट्रांसफर-पोस्टिंग के मलाईदार खेल से होती हुई मुख्यमंत्री कार्यालय तक जाती दिखने लगी है.
सीबीआई की आरंभिक जांच पूरी होने से पहले उद्धव सरकार को राहत की सांस आ पाना मुश्किल है.
वैसे, अनिल देशमुख और उद्धव सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की ठानी है, लेकिन यह सरकार बचाने की आखिरी कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं लग रहा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलना दूर की कौड़ी लग रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने परमबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई से इनकार जरूर किया था, लेकिन कहा था कि अनिल देशमुख पर लगे आरोप गंभीर हैं. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि सीबीआई की आरंभिक जांच पूरी होने से पहले उद्धव सरकार को राहत की सांस आ पाना मुश्किल है.
NIA और CBI तो बस शुरुआत हैं?
एंटीलिया केस में मनसुख हिरेन हत्याकांड से होते हुए सचिन वाजे और उसकी महिला सहयोगी द्वारा एक पांच सितारा होटल में वसूली गैंग चलाने की बात जांच में सामने आ चुकी है. ताजा हालातों में अगर सीबीआई सचिन वाजे तक पहुंचती है, तो उद्धव सरकार में हलचल मच जाएगी. खबरें ये भी हैं कि एनआईए के शिकंजे में फंसा सचिन वाजे भी 100 करोड़ की वसूली के लक्ष्य की बात स्वीकार कर चुका है. इसके साथ ही उसने एक अन्य हाई प्रोफाइल नेता का नाम भी लिया था. इस स्थिति में सारा दारोमदार सीबीआई जांच पर है. वहीं, भाजपा नेता किरीट सोमैया पहले ही 100 करोड़ के मामले को 1000 करोड़ तक पहुंचा चुके हैं. सोमैया ने वाजे की गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों से मुलाकात कर इस मामले की जांच की मांग की थी. एनआईए अपना काम कर रही है और सीबीआई किसी भी वक्त महाराष्ट्र पहुंच जाएगी. जैसे-जैसे मामले में जांच आगे बढ़ेगी और भी केंद्रीय एजेंसियां व डिपार्टमेंट इस मामले में दिलचस्पी दिखा सकते हैं.
क्या भ्रष्टाचार से गिर जाएगी सरकार?
भ्रष्टाचार के मामलों में घिरे एनसीपी के नेताओं की लिस्ट में एक और नया नाम अनिल देशमुख का जुड़ता दिख रहा है. सीबीआई की आरंभिक जांच पूरी होने पर ये लिस्ट और लंबी हो सकती है. भ्रष्टाचार के आरोप महाराष्ट्र में नेताओं पर पहले भी लगे हैं. वैसे, शरद पवार के भतीजे अजित पवार तो भाजपा के साथ जाकर साढ़े तीन दिन की सरकार में अपने लिए 'क्लीन चिट' भी ले आए थे. इस स्थिति में ये कहना कि भ्रष्टाचार के आरोपों से सरकार गिर जाएगी, शायद जल्दबाजी होगा.
पवार को लेकर कहा जाता है कि उद्धव सरकार का रिमोट कंट्रोल उनके पास है.
शरद पवार के हाथ में है सरकार का रिमोट
एनसीपी प्रमुख शरद पवार महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार के सूत्रधार हैं. दो विपरीत ध्रुवों वाली पार्टियों को गठबंधन में एक साथ लाने का काम पवार ने ही किया है. पवार को लेकर कहा जाता है कि उद्धव सरकार का रिमोट कंट्रोल उनके पास है. जब वो चाहेंगे, सरकार तभी गिेरेगी. हाल ही में शरद पवार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात ने कई अटकलों को जोर दिया था. इन्हें अटकलों को कयास तक ही सीमित रखना सही होगा. भाजपा के लिए एनसीपी के साथ जाना 'आत्महत्या' जैसा होगा. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी एनसीपी का समर्थन लेना भाजपा को राष्ट्रीय स्तर नुकसान पहुंचा सकता है.
शिवसेना के पास विकल्प नहीं
महाविकास आघाड़ी सरकार गिरने की स्थिति में 'रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय' की तर्ज पर शिवसेना और भाजपा का पुराना गठजोड़ बहुत मुश्किल नजर आता है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लेकर शिवसेना की ओर से हुए जुबानी हमलों के बाद अगर यह होता भी है, तो दोनों पार्टियों के रिश्तों के बीच गांठ पड़ना निश्चित है. हालांकि, देवेंद्र फडणवीस सीधे तौर पर उद्धव ठाकरे को निशाने पर नहीं लेते हैं, लेकिन भाजपा चाहती है कि शिवसेना भरपूर सबक सीख ले. भ्रष्टाचार से घिरी सरकार का मुखिया बने रहना उद्धव ठाकरे के लिए लॉन्ग टर्म में अच्छा फैसला साबित होता नहीं दिख रहा है.
अनिल देशमुख के इस्तीफे से लेकर सीबीआई की जांच तक में उद्धव सरकार के लिए तात्कालिक खतरा नजर नहीं आ रहा है. जांच की आंच मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच सकती है. बस देखना ये होगा कि सीएम उद्धव ठाकरे कितनी देर तक जांच की आंच को बर्दाश्त कर सकते हैं. वैसे, राजनीति को लेकर भविष्यवाणी करना सूरज को दिया दिखाने जैसा है. 'क्या महाराष्ट्र में उद्धव सरकार गिरने वाली है' इस सदाबहार सवाल का जवाब आने वाला वक्त ही दे सकता है या फिर शरद पवार.
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