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Updated: 27 जुलाई, 2015 10:11 PM
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भाव: कोमल...'राष्ट्रपति होते हुए सबसे मुश्‍कि‍ल काम था सजा ए मौत पर फैसला लेना'सजा-ए-मौत की सजा को समाप्त करने की वकालत करते हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर, उन्होंने इस तरह के मामलों में फैसला करने में दर्द महसूस किया क्योंकि ऐसे ज्यादातर मामलों में ‘सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव’ था.मृत्युदंड पर लॉ कमीशन के कंसल्टेशन पेपर पर जवाब देते हुए कलाम ने ये बात कही थी. वे उन कुछ लोगों में शामिल हैं जिन्होंने मौत की सजा खत्म करने का समर्थन किया है. चार सौ से अधिक जवाबों में से ज्यादातर ने मौत की सजा का प्रावधान जारी रखने का समर्थन किया. इस पेपर पर जवाब देते हुए कलाम ने कहा कि राष्ट्रपति के तौर पर उनके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल कामों में से एक मृत्युदंड था.

उद्देश्य: कठोर परिश्रम... पढ़ाई के लिए अखबार बेचाकलाम के पिता पेशे से नाविक थे और ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. ये मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे. पांच भाई और पांच बहनों वाले परिवार को चलाने के लिए पिता के पैसे कम पड़ जाते थे इसलिए शुरुआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम को अखबार बेचने का काम भी करना पड़ा. आठ साल की उम्र से ही कलाम सुबह 4 बचे उठते थे और नहा कर गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे. सुबह नहा कर जाने के पीछे कारण यह था कि प्रत्येक साल पांच बच्चों को मुफ्त में गणित पढ़ाने वाले उनके टीचर बिना नहाए आए बच्चों को नहीं पढ़ाते थे. ट्यूशन से आने के बाद वो नमाज पढ़ते और इसके बाद वो सुबह आठ बजे तक रामेश्वरम रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर न्यूज पेपर बांटते थे.

विजन: दूरदर्शीटीचर ने पांचवीं पढ़ाया चिडि़या की बनावट के बारे में, एयरोस्पेस में कॅरियर ही बना लियाकलाम ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’ में आने के पीछे अपनी पांचवी क्लास के टीचर सुब्रह्मण्यम अय्यर को बताते हैं. वो कहते हैं, ‘वो हमारे अच्छे टीचर्स में से थे. एक बार उन्होंने क्लास में पूछा कि चिड़िया कैसे उड़ती है? क्लास के किसी छात्र ने इसका उत्तर नहीं दिया तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए. वहां कई पक्षी उड़ रहे थे. कुछ समुद्र किनारे उतर रहे थे तो कुछ बैठे थे. वहां उन्होंने हमें पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार पूर्वक बताया जो उड़ने में सहायक होता है. उनके द्वारा समझाई गई ये बातें मेरे अंदर इस कदर समा गई कि मुझे हमेशा महसूस होने लगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूं और उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी. बाद में मैंने तय किया कि उड़ान की दिशा में ही अपना करियर बनाउं. मैंने बाद में फिजिक्स की पढ़ाई की और मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की.’

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