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Updated: 14 मार्च, 2018 05:31 PM
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अररिया उपचुनाव ( Araria Bihar bypoll ) का त्रिपुरा जैसा राष्ट्रीय महत्व भले न रहा हो, लेकिन इसमें नीतीश कुमार की साख और तेजस्वी यादव का भविष्य दांव पर लगा हुआ था. तेजस्वी ने चुपके से बिहार के चाणक्य को भारी शिकस्त दे डाली. ये तेजस्वी ही रहे जो पहले तो नीतीश ने उनके मौजूदा विधायक को झटक लिया - और फिर उनकी पार्टनर बीजेपी के उम्मीदवार की चुनावी मैदान में धूल चटा दी.

तेजस्वी के लिए ये जीत इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि ऐसा उस प्रतिकूल परिस्थिति में मुमकिन हुआ है जब लालू प्रसाद जेल में हैं - और खुद तेजस्वी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.

अररिया की हार

नतीजे आने में बहुत देर थी. सिर्फ रुझानों के चढ़ने उतरने से ही हवाओं का झोंका कभी इधर तो कभी उधर हो रहा था. तभी तेजस्वी ने एक ट्वीट किया और लगे हाथ कटाक्ष भी - बीजेपी और नीतीश की हार को भला कब तक छुपाएंगे?

तेजस्वी का ये अंदाज बिलकुल लालू प्रसाद यादव जैसा दिखा. याद कीजिए 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के वोटों की गिनती होने लगी तो शुरुआती रुझानों में महागठबंधन पिछड़ा नजर आने लगा, लेकिन लालू को यकीन नहीं हुआ. वो अपनी बात पर अड़े रहे. लालू को अपनी जातीय गणित, सामाजिक समीकरणों की समझ और राजनीतिक रणनीति पर पूरा भरोसा था - और जल्द ही तस्वीर साफ हो गयी. लालू का भरोसा टूटा नहीं. तेजस्वी ने भी लालू की ही तरह अररिया के रुझानों को पहले ही पढ़ लिया था - और अंदर दबाये रखने की जगह मन की बात ट्वीट कर दी.

tejashwi yadavजेल में लालू, घर में राबड़ी, मैदान में तेजस्वी

जब अंतिम नतीजे आये तो तेजस्वी शत प्रतिशत सही साबित हुए. नीतीश और बीजेपी हार नहीं छुपा सके. तेजस्वी ने आरजेडी के खाते में अररिया के अलावा जहानाबाद विधानसभा सीट भी भर दी थी, बीजेपी बस भभुआ के साथ मन मसोस कर रह गयी.

तेजस्वी तो बड़े तेज निकले

हाल ही की बात है, तेजस्वी ने सचिन तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी से खुद की तुलना करते हुए कहा था कि लोग उन्हें अनपढ़ कहते हैं. क्रिकेट में तेजस्वी भले ही फिसड्डी साबित हुए हों, लेकिन राजनीति में तो न जाने तीसमार खां इस वक्त खुद ही अपना सिर फोड़ रहे होंगे. तेजस्वी के इस ट्वीट से भी समझा जा सकता है कि वो राजनीति में कितनी गहरी रुचि लेने लगे.

अगर तेजस्वी के पहले के ट्वीट देखें तो वास्तव में जीतने के बाद तेजस्वी ज्यादा विनम्र लगते हैं. कुछ दिन पहले के उनके ट्वीट देखें तो तेजस्वी की आक्रामकता का अंदाजा लगाया जा सकता है.

अररिया वो सीट रही जिसे 2014 की मोदी लहर में भी आरजेडी ने बीजेपी को फटकने नहीं दिया. आरजेडी सांसद तसलीमुद्दीन के निधन के कारण यहां उप चुनाव हुए. बीजेपी ने जहां अपने पुराने उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह में दोबारा आस्था दिखायी, वहीं तेजस्वी की नजर तसलीमुद्दीन के बेटे सरफराज खान पर जाकर टिक गयी.

तेजस्वी के लिए सरफराज को मैदान में उतारना भी उतना आसान नहीं था. सरफराज तब बिहार में सत्ताधारी जेडीयू के विधायक थे. ये तेजस्वी की ही काबिलियत समझी जानी चाहिये कि उन्होंने जेडीयू विधायक को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. ऐसे वक्त जब आरजेडी जैसी डूबती नाव पर कोई सवार नहीं होना चाहता, सरफराज सत्ताधारी पार्टी का विधायक होने के बावजूद तेजस्वी और आरजेडी में भरोसा जताया.

तेजस्वी के लिए ये जीत बहुत मायने रखती है. लालू प्रसाद के जेल चले जाने के बाद कोई ये मानने को तैयार नहीं था कि तेजस्वी पार्टी भी संभाल पाएंगे, तेजस्वी ने उपचुनाव जीत कर खुद को साबित कर दिया है.

कैसे चूक गये चाणक्य

अररिया सीट पर बीजेपी उम्मीदवार की हार का असली जिम्मेदार किसे समझा जाना चाहिये. लगता तो ऐसा है कि ये मामला सिर्फ एक नहीं बल्कि दो दो चाणक्य की हार जैसा है. एक चाणक्य नीतीश और दूसरे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह. बिहार में चुनाव होने के कारण तो पहली जिम्मेदारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बनती है. दूसरी जिम्मेदारी अमित शाह पर आती है, आखिर उनकी मंजूरी के बिना उम्मीदवार के नाम पर मुहर तो लगी नहीं होगी. जब बीजेपी अध्यक्ष एमसीडी की एक एक सीट का हिसाब किताब देखते हैं, फिर ये कैसे कोई मान ले कि अररिया में बीजेपी आलाकमान की कोई दिलचस्पी नहीं रही होगी.

क्या त्रिपुरा की जीत ने बीजेपी में इतना जोश भर दिया कि पांव धरती पर पड़ने मुश्किल पड़ रहे थे. बीजेपी को शायद ही लगा हो कि लालू के जेल में होते उसे उपचुनाव में किसी तरह का झटका भी लगेगा.

11 मार्च को उप चुनाव के लिए वोट डाले गये थे. ठीक एक दिन पहले बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय का विवादित बयान आया. नित्यानंद राय ने कहा कि सरफराज जीते तो अररिया आतंकी संगठन ISIS का पनाहगाह बन जाएगा. दूसरी तरफ, बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप सिंह की जीत की हालत में अररिया में देशभक्ति की भावना बढ़ेगी, ये भी नित्यानंद का ही कहना था.

लगता है नित्यानंद के ISIS वाले बयान का भी वही असर हुआ जैसा 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के DNA वाले बयान का हुआ था. बिहार में घुसपैठ से लेकर त्रिपुरा और नगालैंड से लेकर मेघालय तक एनडीए की सरकार बनने के बाद नीतीश को लग रहा होगा कि मोदी लहर थमी नहीं है. नीतीश को लगा होगा अररिया में भी बीजेपी उम्मीदवार आसानी से जीत जाएगा और आगे बढ़ कर वो खुद क्रेडिट ले लेंगे. बाद में जीत की सौगात वो मोदी की बीजेपी को गिफ्ट कर देंगे. असल बात तो ये है कि सरफराज को आंकने में नीतीश कुमार पूरी तरह चूक गये.

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