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Updated: 25 मई, 2016 06:34 PM
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बीजेपी का तो हक बनता है, लेकिन बिहार में तो आरजेडी नेता ही नीतीश कुमार का इस्तीफा मांगने लगे हैं. साथ ही, लालू प्रसाद को महागठबंधन तोड़ने की भी सलाह दे रहे हैं. रिएक्शन में नीतीश खेमा आरजेडी नेताओं पर कार्रवाई की मांग कर रहा है, फिर भी बात बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ पा रही.

पूरे मसले पर नीतीश कुमार खामोश हैं - और लालू प्रसाद ट्वीट कर विपक्षी बीजेपी को जिम्मेदार बता दिया है.

लालू से पहले नीतीश

आरजेडी नेताओं द्वारा नीतीश को टारगेट करने की शुरुआत तब हुई जब वो बनारस दौरे पर थे. बनारस में नीतीश ने शराबबंदी और संघ मुक्त भारत का स्लोगन दे डाला. बस इसके साथ ही नीतीश निशाने पर आ गये. बीजेपी ने तो जो कहते बना कहा ही, आरजेडी के सीनियर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह तो नीतीश पर टूट ही पड़े. रघुवंश के बाद मोर्चा संभाला तसलीमुद्दीन ने - और जीभर कर कोसते हुए इस्तीफा भी मांग डाला. रही सही कसर पूरी कर दी प्रभुनाथ सिंह ने.

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इन तीनों ही नेताओं के बयानो पर गौर करें तो मालूम होता है कि सभी प्रधानमंत्री पद के लिए नीतीश की दावेदारी से खफा हैं. नीतीश का बिहार से निकल कर खुलेआम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करना और संघ मुक्त भारत का नारा देना भला उन्हें कैसे बर्दाश्त हो. कहां चुनाव जीत कर लालू प्रसाद ने लालटेन लेकर देश भर में पोल खोल मुहिम चलाने का एलान किया - और कहां नीतीश कुमार अकेले निकल गये और सुर्खियों में छा गये.

आरजेडी नेताओं के बयानों के बाद जेडीयू नेताओं ने मोर्चा संभाला - और कार्रवाई की मांग की. नीतीश कुमार भारी बने रहे. न तो चंदन वाली कविता पढ़ी - और न ही भुजंग वाले ट्वीट. तभी लालू ने धड़ाधड़ ट्वीट कर एनडीए को टारगेट कर लिया.

किसका फायदा?

सवाल ये है कि इस बयानबाजी और जबानी हमलों में फायदा किसका हो रहा है? गया मर्डर केस में नीतीश कुमार ने पुलिस की एसआईटी बना दी - और हत्या के आरोपी रॉकी यादव का पूरा परिवार जेल पहुंच गया. एमएलसी मनोरमा देवी को जेडीयू से सस्पेंड तो किया ही गया - उन्हें सरेंडर भी करना पड़ा.

सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की सीबीआई जांच की घोषणा कर नीतीश सरकार ने अपना पीछा छुड़ा लिया. हत्या के मामले में आरजेडी नेता शहाबुद्दीन का नाम उछला तो जेल पर छापेमारी के बाद उन्हें भागलपुर शिफ्ट कर दिया गया.

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अटूट है महागठबंधन...

नीतीश ने इन सभी मामलों में वही किया जिसकी लोग मांग करते या मीडिया हाइलाइट करता. एक एक कर अपने एक्शन से नीतीश कुमार सभी मामलों में ये मैसेज देने में कामयाब रहे कि सरकार को जो करना चाहिए उन्होंने कर दिया.

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इस तरह नीतीश कुमार तो धूल झाड़ कर आगे बढ़ गये लेकिन उंगली उठने लगी सीधे सीधे लालू प्रसाद पर. खासकर सिवान के पत्रकार मर्डर केस में. अब तक जो बात सामने आई है या फिर जो बीजेपी ने आरोप लगाया है उससे सिवान केस में शक की सूई शहाबुद्दीन की तरफ ही घूमती है.

सजायाफ्ता शहाबुद्दीन को आरजेडी कार्यकारिणी में लाने के कारण लालू निशाने पर आ जाते हैं तो मंत्री के जेल जाकर मुलाकात करने को लेकर नीतीश कुमार. विपक्ष का आरोप है कि मंत्री की जेल में शहाबुद्दीन से मुलाकात की फोटो लीक हो जाना ही राजदेव रंजन की हत्या की वजह हो सकती है.

ऐसे देखें तो तमाम तिकड़मों के बावजूद लालू और नीतीश दोनों को ही आलोचनाएं झेलनी पड़ रही हैं. नेताओं की तू-तू मैं-मैं से और कुछ हो न हो लोगों का ध्यान तो भटकाया ही जा सकता है.

तो क्या इसीलिए महागठबंधन में ये फ्रेंडली मैच चल रहा है?

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