भारतीय जनता पार्टी से क्या आदिवासी नाराज हैं?
कर्नाटक में आदिवासी समुदाय का वोट बैंक करीब 35 सीटों पर असर डालता है. जिसमें से 15 सीटों खुद एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. भाजपा इस बार एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 15 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीती. 14 पर कांग्रेस और 1 पर जेडीएस ने जीत हासिल की है. इस नतीजे से ये आसानी से कहा जा सकता है कि आदिवासी वोट बैंक भाजपा ने नाराज है.
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क्या आदिवासी समाज भारतीय जनता पार्टी से नाराज है? यह सवाल कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों को देख कर उत्पन्न होता है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक युवा आदिवासी नेता को इस समुदाय में जड़ें जमाने की कोशिश में खूब प्रचार-प्रसारित किया था. पार्टी के पोस्टरों से लेकर उन्हें सत्ता में वापसी आने पर उपमुख्यमंत्री बनाने की कवायद की गई थी. 46 वर्षीय आदिवासी नेता सांसद बी श्रीरामुलु को एक प्रयोग के तौर पर भाजपा ने चुनावी मंच में इस्तेमाल किया. लेकिन चुनाव के नतीजे बताते है कि आदिवासी समुदाय का वोट भाजपा के पक्ष में दिखाई नहीं दिया. लेकिन सत्ता में वापसी न आने पर श्रीरामुलु के लिए बनी भाजपा की बड़ी प्लानिंग फैल हो गई.
आपको बता दें कर्नाटक में आदिवासी समुदाय का वोट बैंक करीब 35 सीटों पर असर डालता है. जिसमें से 15 सीटों खुद एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. भाजपा इस बार एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 15 सीटों में से एक भी सीट नहीं जीती. 14 पर कांग्रेस और 1 पर जेडीएस ने जीत हासिल की है. इस नतीजे से ये आसानी से कहा जा सकता है कि आदिवासी वोट बैंक भाजपा ने नाराज है. कर्नाटक के चुनावी नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि राज्य में एसटी और एससी समुदाय ने भाजपा को ठुकरा कर कांग्रेस के हाथ का साथ दिया है.
विशेष तौर आदिवासी सीटों पर कांग्रेस की लहर चली है. भाजपा ने आदिवासी वोट को अपने पाले में करने के लिए पिछले साल अक्टूबर में एसटी आरक्षण को 3 फीसदी से 7 फीसदी बढ़ोतरी करने की घोषणा की थी. लोग राजनीतिक दलों की इस चालाकी को अब समझने लगे हैं कि कोटा बढ़ाने की घोषणा तो पार्टियां कर देती है. लेकिन मामला कोर्ट में जाकर अटक जाता है. वैसे कर्नाटक का असर इस साल के अंत में होने वाले 5 राज्यों में भी देखने को मिल सकता है. इनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, और मेघालय है. इनमें तीन प्रमुख राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में तो आदिवासी समुदाय सत्ता तक पहुंचने में अहम भूमिका निभाता है.
सबसे पहले आज बात करते है छत्तीसगढ़ की. सबसे पहले यहां इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं . इस चुनाव को लेकर भाजपा कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल अभी से ही तैयारियों में जुट गई है. खासकर आदिवासी सीटों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के नेता ज्यादा फोकस कर रहे है. दरअसल आदिवासी समाज के द्वारा बस्तर संभाग के 11 विधानसभा सीटों में चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट को देखते हुए आदिवासी वोटरों को भाजपा कांग्रेस अभी से रिझाने में जुट गई है.
हाल ही में हुए भानुप्रतापपुर उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज के प्रत्याशी अकबर कोर्राम को 23 हजार वोट मिले के बाद. 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को आदिवासी क्षेत्रों में वोटरों को साधना हैं. इधर बस्तर के राजनीतिककारो का मानना है कि सर्व आदिवासी समाज अगर इस विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ता है तो बस्तर में कांग्रेस और भाजपा को काफी नुकसान पहुंचेगा. वहीं 11 सीटों में से कुछ सीटों में आदिवासी समाज के प्रत्याशियों के जीतने की भी गुंजाइश है.
दरअसल छत्तीसगढ़ में दिसंबर माह में चुनाव होने हैं. नए साल के आगमन के साथ ही छत्तीसगढ़ में नई सरकार बन जाएगी. लेकिन इससे पहले चुनाव के लिए बचे 7 महीने भाजपा कांग्रेस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है. क्योंकि बस्तर के 12 विधानसभा सीटों में से 11 विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित है. 11 सीटों में अब आदिवासी समाज भी चुनाव लड़ने में अपनी रुचि दिखा रहा है.
भानुप्रतापपुर उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज ने अपना प्रत्याशी खड़े किया और इस प्रत्याशी को 23 हजार वोट मिले. इसके बाद सर्व आदिवासी समाज के पदाधिकारियों ने विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रत्याशी खड़ा करने की घोषणा की है. हालांकि बस्तर में आदिवासी समाज भी दो गुटों में बटा हुआ है. समाज के एक गुट के पदाधिकारियों का कहना है कि आदिवासी समाज आने वाले चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़ा नहीं करेगा.
क्योंकि समाज के लोगों का काम राजनीति करना नहीं बल्कि समाज के हितों के लिए काम करना है. वही समाज के ही दूसरे गुटों के पदाधिकारियों का कहना है कि बस्तर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है और यहां सर्व आदिवासी समाज हमेशा से ही भाजपा और कांग्रेस को वोट देते आ रहा है. लेकिन विकास के नाम पर आदिवासियों के साथ छलावा किया गया है, ऐसे में चुनाव में आदिवासी समाज बस्तर के 11 विधानसभा सीटों में साथ ही प्रदेश के अन्य आदिवासी सीटों में भी अपने प्रत्याशी खड़ा कर सकता हैं, हालांकि अंतिम निर्णय चुनाव से पहले समाज के लोगो की बैठक के बाद ही लिया जाना है.
गौरतलब है कि पिछले 4 विधानसभा चुनाव में बस्तर के 11 विधानसभा सीटों के आदिवासी वोटर बीजेपी, कांग्रेस को वोट देते आ रहे हैं. आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. बावजूद इसके इस चुनाव में यह कहना मुश्किल है कि आदिवासी मतदाता किसके साथ है. 2018 विधानसभा चुनाव के मुताबिक छत्तीसगढ़ के 29 आदिवासी सीटों में से 25 सीटें कांग्रेस को मिली थी जो साल 2019 में दंतेवाड़ा और मरवाही उपचुनाव के बाद साल 2020 तक बढ़कर 27 हो गई. इनके अलावा दो आदिवासी विधायक कांग्रेस के पास ऐसे हैं जो सामान्य सीटों से जीते हैं.
ऐसे में अगर देखा जाए तो कांग्रेस आदिवासी विधायकों के मामले में ज्यादा ताकतवर है. वही बस्तर के सांसद दीपक बैज का कहना है कि कांग्रेस की सरकार आदिवासियों की सरकार है. बस्तर हो या सरगुजा. आदिवासियों के हित के लिए कांग्रेस ने साढ़े 4 साल के कार्यकाल में काफी विकास किया है. आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध करने के साथ उनके उत्थान के लिए हर संभव प्रयास किया गया है, साथ ही आदिवासियों का विकास भी कांग्रेस सरकार ने किया है.
ऐसे में आदिवासी कांग्रेस के पक्ष में ही वोट करेंगे और वही अगर कुछ आदिवासी समाज के पदाधिकारी पार्टी से नाराज भी है तो उन्हें मना लिया जाएगा, क्योंकि आदिवासी समाज हमेशा से ही कांग्रेस पर भरोसा करते आई है. ऐसे में इस बार भी बस्तर के एक सामान्य सीट के साथ पूरे 11 आदिवासी सीटों में दोबारा कांग्रेस के प्रत्याशियों की ही जीत होगी.
एक तरफ जहां कांग्रेस के नेता बस्तर के आदिवासी वोटर्स कांग्रेस के पक्ष में ही वोट करने का दावा कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी इस साल के चुनाव में बस्तर संभाग के पूरे के पूरे 12 सीटों में अपने जीत के लिए आश्वस्त होने की बात कह रही है. भाजपा के प्रवक्ता और छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री केदार कश्यप का कहना है कि बस्तर के आदिवासी हमेशा से ही भाजपा के साथ हैं. हालांकि पिछले चुनाव में जरूर आदिवासियों ने कांग्रेस को मौका दिया. लेकिन साढ़े4 साल के कार्यकाल में अब तक कांग्रेस ने आदिवासियों के हितों के और उनके विकास के लिए ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया है जिससे कांग्रेस पर दोबारा विश्वास बढ़े.
छलावा और धोखा करने से आदिवासी वर्ग कांग्रेस से पूरी तरह से नाराज चल रहा है. वहीं उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो समाज के लोगों को भाजपा के प्रति भड़काने का काम कर रहे है. उन्हें चुनाव लड़ने के लिए उकसा रहे हैं. लेकिन सर्व आदिवासी समाज से लेकर बस्तर के पूरे आदिवासी समाज भाजपा के ही वोटर्स हैं. ऐसे में भाजपा के पदाधिकारियों से अगर कुछ समाज के लोग नाराज भी होंगे तो उन्हें मना लिया जाएगा. फिलहाल सर्व आदिवासी समाज के द्वारा अपने प्रत्याशी उतारने का ऐसा कोई भी विचार नहीं है. भाजपा आदिवासियों के हक और उनकी लड़ाई के लिए उनके साथ खड़ी है.
इस वजह से आने वाले चुनाव में भाजपा को बस्तर के 11 विधानसभा सीटों के साथ सरगुजा में भी जीत मिलेगा. बहरहाल बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही पार्टी आदिवासी वोटर्स को अपने वोटर्स बता रही है. लेकिन बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति कारों का मानना है कि इस साल के विधानसभा चुनाव में भाजपा कांग्रेस के साथ आदिवासी समाज भी दमखम के साथ चुनाव लड़ सकती है. ऐसे में बस्तर के 11 विधानसभा सीटों में त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है.
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