अहमद पटेल की जीत ने बढ़ाया कांग्रेस का मनोबल, संसद में सोनिया ने मोदी-संघ को घेरा
सोनिया को ये बात बेहद नागवार गुजरी होगी कि प्रधानमंत्री आजादी के आंदोलन से जुड़ी तमाम बातें तो की लेकिन पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम तक न लिया. हां, मोदी ने महात्मा गांधी का नाम जोर शोर से लिया.
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अहमद पटेल की जीत से आने वाले चुनावों में बीजेपी की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन इसका तात्कालिक असर दिखने लगा है. ये बात संसद में सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों से साफ तौर पर समझ में आती है. ये भी साफ है कि इसने कांग्रेस का आत्मविश्वास काफी बढ़ा दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष ने आजादी की लड़ाई में संघ की भूमिका को पूरी तरह खारिज कर दिया है.
थैंक्स गॉड!
अहमद पटेल की हार जीत पर कांग्रेस की आन, बान और शान सब टिकी हुई थी. अमित शाह ने अहमदाबाद से दिल्ली तक कांग्रेस नेताओं की नींद हराम कर रखी थी. कांग्रेस नेताओं को तो पटेल की जीत की कम ही उम्मीद बची थी. नतीजा पक्ष में आने के बाद राहत की सांस तो सभी ने ली होगी, लेकिन सोनिया गांधी कैसा महसूस कर रही हैं ये बात चुनाव आयोग को लेकर उनके बयान से समझा जा सकता है.
चलो, कोई तो है!
एनडीटीवी से बातचीत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा, "थैंक्स गॉड, हमारे देश में चुनाव आयोग है." सही बात है. अगर चुनाव आयोग ने कांग्रेस के दो बागी विधायकों के वोट नहीं रद्द किये होते तो नतीजा भी और ही होता. यही वजह है कि संसद में भी सोनिया गांधी ने मोदी सरकार के कामकाज और संघ पर जोरदार हमले किये.
आजादी के असली सिपाही कौन?
पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक और फिर संसद में सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा पर तेज वार किये. हालांकि, इसमें उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया.
कांग्रेस नेताओं से सोनिया ने कहा, ‘‘कांग्रेस पार्टी को आजादी तथा उससे जुड़े मूल्यों और उनके लिए काम करने वाले संस्थानों की रक्षा के लिए हमेशा शीर्ष पर बने रहना चाहिए. हमें लोगों और समाज की आजादी पर हमला करने वालों के सामने कभी भी घुटने टेकने नहीं चाहिए.’’
संसद में भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं सालगिरह मनाई गई और इस मौके पर स्पेशल सेशन बुलाया गया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 1942 में करो या मरो का नारा दिया गया था लेकिन आज के दौर में हम करेंगे और करके रहेंगे के संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे. फिर मोदी ने भ्रष्टाचार के बहाने विपक्ष को आड़े हाथों लिया. बाद में जब सोनिया गांधी की बारी आयी तो उन्होंने बोलने की आजादी और असहिष्णुता के नाम पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की.
प्रधानमंत्री मोदी देश के सूरत-ए-हाल पर बोले, ''दुर्भाग्य से हमारे चरित्र में कुछ चीजें घुस गई हैं. अगर हम चौराहे पर रेड लाइट क्रॉस करके निकल जाते हैं तो लगता ही नहीं कि हम गलत कर रहे हैं. कानून तोड़ना हमारा स्वभाव बन जाता है. छोटी-छोटी घटना हिंसा बनती जा रही है. किसी मरीज की मौत हो जाती है तो डॉक्टर को पीटते हैं. एक्सीडेंट हो गया तो ड्राइवर को मारते हैं, गाड़ियों को जला देते हैं. हमें लगता ही नहीं कि हम कानून तोड़ रहे हैं."
प्रधानमंत्री के कानून तोड़ने की बात को काटते हुए सोनिया ने कहा, "लोगों के मन में आशंका है कि क्या देश में बोलने की आज़ादी को रोका जा रहा है. नफरत और विभाजन की राजनीति हावी ही रही है. कई बार कानून के राज पर भी गैर कानूनी शक्तियां हावी हो रही हैं. हमें हर तरह की दमनकारी शक्ति से लड़ना है."
"करेंगे और करके ही रहेंगे."
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, "हमारे लिए दल से बड़ा देश होता है. राजनीति से बड़ी राष्ट्रनीति होती है. अगर इस भाव को ले लें तो समस्याओं के खिलाफ आगे निकल सकते हैं. भ्रष्टाचार रूपी दीमक ने देश को खराब कर रखा है. कल क्या हुआ, इसको छोड़ सकते हैं. आज ईमानदारी का संकल्प लेकर उत्सव मना सकते हैं."
इस मौके पर भी सोनिया को ये बात बेहद नागवार गुजरी होगी कि प्रधानमंत्री आजादी के आंदोलन से जुड़ी तमाम बातें तो की लेकिन पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम तक न लिया. हां, मोदी ने महात्मा गांधी का नाम जोर शोर से लिया. मोदी ने कहा, "आज हमारे पास न गांधी हैं न ही गांधी जैसा नेतृत्व है."
यही वजह रही कि प्रधानमंत्री की बातों को पूरी तरह काउंटर करते हुए सोनिया ने कहा कि आजादी के आंदोलन के वक्त ऐसे संगठन भी थे जिनका कोई योगदान नहीं रहा. सोनिया ने कहा, "हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जिस वक्त भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था उस वक्त ऐसे संगठन और व्यक्ति भी थे जिन्होंने इसका विरोध किया था."
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