Delhi Metro में महिलाओं के मुफ्त सफर की घोषणा के पीछे है केजरीवाल का दर्द
AAP पार्टी ने महिलाओं के लिए दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ्री करने की जो बात कही है उसे दिल्ली विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है. पर अरविंद केजरीवाल के सामने इस समय बड़ी चुनौती खड़ी है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने Delhi Metro और DTC Bus में महिलाओं के सफर को मुफ्त बनाने की घोषणा की है. लोकसभा चुनाव में ताजा-ताजा मिली करारी हार और दिल्ली विधानसभा चुनाव से छह महीना दूर खड़े केजरीवाल पर कुछ कर दिखाने का दबाव बढ़ गया था. केजरीवाल ने महिलाओं के लिए जो तोहफे का एलान किया है, वह बहस का विषय बन गया है. खुद महिलाओं की ओर से ही तरह-तरह के विचार सामने आ रहे हैं. अब केजरीवाल के सामने आम आदमी पार्टी (AAP) की सत्ता बचाने को लेकर कुआं और खाई वाला मामला है और शायद यही कारण है कि इस नई स्कीम को लागू कर महिला वोटों को अपनी ओर करने की बात कही जा रही है. किसी भी जंग में जीत का सेहरा सेनापति के सिर बंधता है तो हार का ठीकरा भी उसी के सिर फूटना तय है. हर शिकस्त के बाद सेनापति के लिए सबसे मुश्किल होता है अपने सिपहसालारों के मनोबल को टूटने से बचाना. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल इन दिनों कुछ ऐसी ही चुनौतियों से जूझ रहे है. डर इस बात का है कि सियासी नैया के साथ साथ कहीं ख्वाहिशों की लुटिया भी न डूब जाए. केजरीवाल के लिए अपने कुनबे का मनोबल बनाए रखना इसलिए भी जरूरी है क्यों कि विधानसभा की अगली जंग में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. शायद यही वजह है कि केजरीवाल ने अपने सिपहसालारों को सारे घोड़े खोलने की इजाज़त दे दी है. मकसद साफ है... किसी भी तरह अपनी सियासी जमीन को बचाना. #DelhiMetro का ट्विटर ट्रेंड भी यही बता रहा है.
पहले दूसरे राज्यों में विधानसभा और अब लोकसभा की पिच पर लगातार बोल्ड होने वाले अरविंद केजरीवाल को अब अपने होम ग्राउंड दिल्ली की याद आई है. अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा के टूर्नामेंट में केजरीवाल के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती आ गई है. आम आदमी पार्टी की सियासत की जड़ें दिल्ली में ही हैं और केजरीवाल को पता है कि अगर जड़ें हिलीं तो आगे दूसरे राज्यों में पार्टी के पनपने की गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी. यही वजह है कि आम आदमी पार्टी इन दिनों हार पर मंथन करने में जुटी है.
अरविंद केजरीवाल के सामने अब माफी मांगने के साथ-साथ सभी लोगों को आप की तरफ आकर्षित करने के लिए बहुत कम समय बचा है.
आम आदमी पार्टी को पता है कि विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है और लोकसभा चुनाव के आंकड़ों में आम आदमी पार्टी को अपना जनाधार खिसकता दिख रहा है. ऐसे में पार्टी चाहती है कि कम वक्त में ही बचे हुए ज्यादा से ज्यादा काम करके आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव में अपने नतीजे सुधारने की जमीन तैयार कर ले. दलील ये भी दी जा रही है कि लोकसभा चुनाव में आचार संहिता लागू होने की वजह से कई काम ठप पड़े थे जिन्हें जल्द से जल्द शुरू करने की जरूरत है.
आसान नहीं विधानसभा की राह: नया नारा, बड़ा सहारा..
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल ने अपनी रैलियों में जनता से बीजेपी के खिलाफ मतदान की अपील की थी. केजरीवाल का कहना था कि इस चुनाव में मोदी और अमित शाह की जोड़ी को हटाना जरूरी है. केजरीवाल की दलील थी कि मीडिया इस चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी का चुनाव बता रहा है, लेकिन केजरीवाल को लगता था कि ये चुनाव राहुल बनाम मोदी ही नहीं है. जनता सिर्फ प्रधानमंत्री चुनने के लिहाज से मतदान न करे. केजरीवाल दावा करते रहे कि बीजेपी को हराने के लिए वो किसी भी पार्टी को समर्थन दे सकते हैं, लेकिन चुनाव के नतीजों में ये नौबत ही नहीं आई. अब करारी हार झेलने के बाद केजरीवाल अगले विधानसभा चुनावों में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं. केजरीवाल ने लगातार अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ाते हुए कई मीटिंग भी की हैं. विधानसभा चुनावों में कोई चूक न होने पाए इसके लिए आम आदमी पार्टी की तरफ से नया नारा भी दिया गया है. पार्टी का नया नारा है 'दिल्ली में तो केजरीवाल'. लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखने वाले आम आदमी पार्टी के नेता भी अब विधानसभा चुनाव में दिल्ली में तो केजरीवाल का राग अलाप रहे हैं.
वोट प्रतिशत लुढ़कने से दहशत...
आम आदमी पार्टी अब विधानसभा चुनाव पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कवायद में जुटी है लेकिन इस बार पार्टी की राह आसान नहीं है. अलग-अलग चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिले वोट शेयर की पड़ताल करें तो तस्वीर और साफ हो जाती है. आम आदमी पार्टी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब 29 फीसदी वोट हासिल किए थे जो 2014 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 33 फीसदी तक पहुंच गया. इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी एक कदम और ऊपर चढ़ी और 54 फीसदी वोट हासिल किए. इस वक्त तक आम आदमी पार्टी के वोट शेयर का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था, लेकिन इसके बाद 2017 में हुए एमसीडी के चुनाव में आम आदमी पार्टी एक बार फिर लुढ़क कर 26 फीसदी पर पहुंच गया. अब इस बार के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत घटकर 18 पर पहुंच गया. इस लिहाज से आम आदमी पार्टी का वोट शेयर लगातार गिर रहा है जिसे विधानसभा चुनाव तक दोबारा ऊपर ले आना पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है.
5 साल का नफा या नुकसान..
आम आदमी पार्टी ने जब पहली बार 49 दिनों की सरकार बनाई तो लोगों के जेहन में पार्टी से ढेर सारी उम्मीदें थीं. सत्ता छोड़ने के बाद आम आदमी पार्टी ने भी जनता से कहा कि दोबारा सत्ता में आने पर सारे अधूरे काम पूरे हो जाएंगे. जनता ने आम आदमी पार्टी पर भरोसा किया और 70 में से 67 सीटें पार्टी की झोली में डाल दीं. उस वक्त आम आदमी पार्टी एक नई पार्टी थी और जनता इस पार्टी के काम करने का ढंग देखना चाहती थी. लेकिन अब आम आदमी पार्टी को सत्ता में पांच साल का वक्त हो चुका है. इन पांच साल में एंटी इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करना भी पार्टी के लिए एक चुनौती है.
पराए हो चुके अपनों से चुनौती...
आम आदमी पार्टी ने जब सियासत में कदम रखा तो उसके साथ कई बड़े चेहरे और एक क्रांतिकारी पार्टी की छवि थी. पार्टी में उस वक्त योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, आशुतोष, प्रोफेसर आनंद कुमार, आशीष खेतान जैसे कई नामी चेहरे थे लेकिन अब केजरीवाल की शुरुआती सियासत के ये सारे साथी उनका साथ छोड़ चुके हैं. बात सिर्फ साथ छोड़ने तक ही सीमित नहीं है. केजरीवाल के इन सहयोगियों ने आम आदमी पार्टी से किनारा करते वक्त केजरीवाल और पार्टी में अनुशासन पर कई गंभीर सवाल भी उठाए. इस वजह से पार्टी की छवि भी जनता में अब पहले जैसी नहीं रही. हालांकि, आम आदमी पार्टी कहती है कि पार्टी से वही लोग अलग हुए जिन्हें किसी पद या ओहदे की चाहत थी.
AAP की माफी से बनेगी बात?
पहली बार 49 दिनों की सरकार के बाद जब केजरीवाल ने सत्ता छोड़ी थी तो उन्होंने जनता से माफी मांगी थी. अब इस बार चुनाव हारने के बाद एक बार फिर केजरीवाल और उनका पूरा कुनबा जनता से माफी मांगने में जुटा है. इस बार दलील ये दी जा रही है कि आम आदमी पार्टी जनता को ये समझाने में नाकाम रही कि पार्टी को लोकसभा चुनाव में वोट क्यों दिया जाएं. अपनी गलतियों पर माफी मांगते हुए आम आदमी पार्टी के नेता जनता से विधानसभा चुनाव में एक बार फिर आम आदमी पार्टी पर ही भरोसा करने की गुजारिश कर रहे हैं. इन तमाम वजहों से ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के लिए 2020 का चुनाव 2015 के चुनाव से कहीं ज्यादा मुश्किल होने वाला है.
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