क्या चुनाव लड़ने से पहले मानसिक परीक्षण जरूरी
देश के प्रधानमंत्री को अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री अपशब्दों से संबोधित करे तो इसे राजनीतिक संवाद का निकृष्ट स्तर ही माना जाएगा. क्या ये जानबूझ कर संवाद को घिनौना करने की कोशिश तो नहीं.
-
Total Shares
सबसे पहले तो यह मान लेते हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘साइकोपैथ’ (मानसिक बिमार) कहना एक राजनीतिक बयान है. इस बयान का राजनीति से अलग मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए. देश के और देश की राजधानी के शीर्षस्थै नेतृत्व की मानसिक स्थिति पर रिसर्च करने की जरूरत नहीं है. इतना जरूर है कि केजरीवाल के इस बयान ने राजनीतिक मर्यादा का हनन जरूर किया है, लिहाजा उनसे यह पूछना जरूरी हो जाता है कि ‘पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’.
संविधान में संसद और विधानसभा के सदस्यों की सदस्यता वापस लेने के संदर्भ में कहा गया है कि यदि वह अनसाउंड माइन्ड (अस्थिर दिमाग) का हो, जिसे कोई कोर्ट साबित करेगी, तो उसकी सदस्यता खत्म की जा सकती है. चुनाव लड़ने के लिए किसी भी उम्मीदवार को किसी तरह की मानसिक स्वास्थ की रिपोर्ट लगाने का प्रावधान नहीं है. वहीं अनसाउंड माइन्ड के संदर्भ में यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी उम्मीदवार की मानसिक स्थिति पर आपत्ति है तो वह उस उम्मीदवार की उम्मीदवारी को चुनाव आयोग के सामने चुनौती दे सकता है. इस चुनौती पर यह चुनाव आयोग के विवेक पर है कि वह किसी उम्मीदवार का मेडिकल परीक्षण दिए गए प्रावधान से कराए और उस रिपोर्ट के आधार पर उसकी मानसिक स्थिति पर फैसला करे. हालांकि, चुनाव आयोग इस रिपोर्ट से बाध्य नहीं है और वह फैसला करने के लिए उम्मीदवार से निजी साक्षात्कार को भी आधार बना सकती है.
दरअसल, यह मान लिया जाता है कि चुनाव के लिए उम्मीदवारी पेश कर रहे आदमी की एक्टिव पब्लिक लाइफ है और वह अपने स्वस्थ मानसिक स्थिति का परिचय लगातार देता रहता है. लिहाजा, चुनाव के नामांकन प्रक्रिया में उम्मीदवार की मानसिक स्थिति से जुड़े सवाल को नहीं उठाया जाता. लेकिन उम्मीदवारी खत्म करने के लिए प्रावधान इसलिए किया गया कि उम्मीदवार के चयन के बाद उसके राजनीतिक सफर में अधिक उम्र, एक्सीडेंट जैसे कुछ कारणों से उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ सकती है और ऐसे में उसे विधाई (लेजिस्लेटिव) कामकाज करने से रोका जा सके. यह प्रावधान महज राजनीति के लिए नहीं है बल्कि यह सभी सरकारी और गैरसरकारी नौकरी पर भी लागू होता है. लिहाजा पब्लिक लाइफ में अपनी मानसिक अस्थिरता का लगातार परिचय देने पर संभव है कि आपके सामने यह चुनौती आ जाए और आपको स्थिर मानसिक स्थिति का टेस्ट पास करना पड़े.
अब सवाल केजरीवाल की राजनीतिक भाषा का है. बतौर मुख्यमंत्री कोई देश के प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल कैसे कर सकता है. या तो केजरीवाल इस बात को कभी-कभी भूल जाते हैं कि वह दिल्ली प्रदेश के मुख्य मंत्री है और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री है. इस तथ्य को अगर वह भूल जाते हैं, तो वाकई ये चिंता का विषय है क्योंकि अहम तथ्यों को भूल जाना भी बिमारी का सूचक हो सकता है. अब मिसाल के तौर पर देखिए आप यह कैसे भूल सकते हैं कि दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार में कोई अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा रहा है और आप उसे अपनी सरकार में सबसे अहम ओहदा दे देते हैं. क्या आप ये भी भूल चुके हैं कि आपने कभी दावा किया था कि दिल्ली में शीला सरकार भ्रष्ट है. लिहाजा, फिर पूछता हूं- ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’
आपकी राय