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Updated: 26 अक्टूबर, 2022 09:42 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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भगवान बुद्ध ने जब 29 साल की उम्र में सबकुछ त्याग दिया और दुनिया में मौजूद दुखों की जड़ का पता लगाने निकलें तो बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. यह ईसा के पूर्व करीब-करीब 1800 या 1900 साल पहले की बात है. हो सकता है कि और पुरानी बात हो. वैसे भी आधुनिक भारतीय ज्ञान परंपरा में बुद्ध या बुद्धत्व को एक उपाधि और ढेरों बुद्ध होने के दावे सामने आते रहते हैं. बुद्ध को ज्ञान यूं ही नहीं प्राप्त हुआ था. बोधिवृक्ष तक पहुंचने से पहले कई साल उन्होंने भ्रमण किया. असंख्य लोगों से मिले. बहस की. चीजों को समझा और कई वर्षों तक कठिन तपस्या की. तब कहीं जाकर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. उससे पहले सुजाता ने उन्हें गाय के दूध से बनी खीर भी खिलाई थी और कहा था कि जैसे उसकी मनोकामना पूरी हो गई, वैसे ही बुद्ध भी अपने लक्ष्य (बोध) को प्राप्त हों. भारतीय परंपरा में खीर भी कम पुरातन नहीं है. बुद्ध से भी प्राचीन. खैर. यहां भगवान बुद्ध का संदर्भ सिर्फ जनकल्याण के निमित्त त्याग तपस्या और निजी महत्वाकांक्षाओं में फर्क बताने भर के लिए किया गया है. किसी गैरवाजिब तुलना के लिए नहीं. 

अंग्रेजों से भारत की आजादी के 75 साल बाद कोई राजनेता भारत को कंगाली से निजात दिलाने के बोध (सूत्र) का पता नहीं लगा पाया. ना जाने कितने नेता आए और चले गए. ना जाने कितने चुनाव हुए, आंदोलन हुए और कंगाली से निजात दिलाने के लिए ही नरसंहार भी दिखते हैं. बावजूद अब तक भारत के माथे से- मैं सांप बिच्छुओं का देश हूं, मैं महा कंगाल हूं और मैं कभी विकसित नहीं हो सकता, यह लिखा मिटाने के लिए 75 साल भी पर्याप्त साबित नहीं हुए अभी तक. हालांकि दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के बहाने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारत की कंगाली के रहस्यों और उससे निजात पाने के सबसे आसान रास्ते का पता लगा लिया. जो काम बड़े-बड़े अर्थशास्त्री और राजनीतिक सूरमा नहीं कर पाए थे, उसे एक 'अपूर्ण' राज्य के मुख्यमंत्री शायद संभव बनाते नजर आ रहे हैं. उन्होंने मात्र दस साल की राजनीतिक तपस्या में भारत को अविकसित से विकसित और खुशहाल देश बनाने का सूत्र पा लिया है.

Kejriwal who want to see the pictures of Ganesh Lakshmi on indian currencyअरविंद केजरीवाल (फ़ाइल फोटो)

भारत को विकसित बनाने के लिए दिवाली पर निकला केजरीवालत्व क्या है?

केजरीवाल ने दिवाली पर देश के विकसित होने का जो 'केजरीवालत्व' प्राप्त किया था उसे लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेस में उन्होंने कहा- "हमारी अर्थव्यवस्था बहुत मुश्किल दौर में है. हम देख रहे हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपया हर रोज कमजोर होता जा रहा है. आम आदमी को इसकी मार भुगतनी पड़ती है. केंद्र सरकार से मेरी अपील है कि इसे दुरुस्त करने के लिए कोई बड़ा फैसला ले. बहुत सारे फैसले लेने की जरूरत है खूब स्कूल और अस्पताल बनाने हैं. सड़क और मूलभूतढांचों को तैयार करना है. बावजूद कोशिशें तब नतीजा देती हैं, जब देवी देवताओं का आशीर्वाद होता है."

उन्होंने कहा- "ऐसा क्यों हैं कि आजादी के 75 साल होने के बावजूद हम आज भी विकासशील देश हैं. हमारी गिनती गरीब देशों में है. हम सब चाहते हैं कि भारत विकसित और अमीर देश बने. हर भारतवासी, हर परिवार अमीर बने. लक्ष्मीजी समृद्धि की देवी हैं. वहीं, गणेशजी सभी विघ्न को दूर करते हैं. इसलिए उन दोनों की तस्वीर नोटों पर लगनी चाहिए. गांधी जी के साथ भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की तस्वीर लगनी चाहिए. एक तरफ गांधी जी और दूसरी तरफ भगवान. इससे पूरे देश को आशीर्वाद मिलेगा." उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए हमें सारे नोट बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि नए नोटों के साथ यह शुरुआत कर सकते हैं और धीरे-धीरे नोट सर्कुलेशन में आ जाएंगे. केजरीवाल ने खुद बताया कि उन्हें यह ज्ञान (केजरीवालत्व) गणेश-लक्ष्मी पूजन के दौरान मिला. पूजन के दौरान निश्चित ही केजरीवाल की पत्नी सुनीता ने खीर चढ़ाई होगी. दिवाली की अगली सुबह केजरीवाल ने खीर खाया भी होगा प्रसाद के रूप में. दिवाली से पहले पटाखों पर बैन लगाने की इच्छा रखने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री का मन बदल गया और 'केजरीवालत्व' की प्राप्ति हुई. हो सकता है कि दिल्ली सीएम को जो ज्ञान मिला है वह खीर का ही प्रताप हो.

केजरीवालत्व से साफ़ हो रहा कि कम से कम गुजरात चुनाव तक राहुल के दुखों का अंत नहीं है

दुनिया है, वह तो कुछ भी कहती रहेगी. मगर अखिलेश यादव (सपने में कृष्ण आए थे) और तेजप्रताप यादव (साईं बाबा ने सपने में भभूत भेंट की थी) के बाद केजरीवाल ने ईश्वर और आत्मा से संवाद के बाद नोटों पर महात्मा गांधी के साथ गणेश-लक्ष्मी की फोटो देखने की लालसा के साथ साफ़ कर दिया कि वही असली 'हिंदू हृदय सम्राट' हैं. बाकी सब मिथ्या. चूंकि गुजरात में चुनाव है- तमाम मंदिरों में सालों से दर-दर भटक रहे राहुल गांधी मौका चूकने का अफ़सोस जता सकते हैं. क्या गुजरात चुनाव से पहले उनकी भक्ति में कुछ कमी रह गई थी? आखिर, राहुल गांधी की तपस्या में क्या कमियां हैं जो देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के पास दिव्य शक्तियां संवाद करने नहीं आ रही हैं. जैसे अखिलेश से केजरीवाल तक संवाद दिख रहा है.

आज की तारीख में तेजप्रताप यादव तक दिव्य आत्माओं से संवाद में सक्षम हैं तो फिर राहुल क्यों ईश्वर और आत्मा से संवाद की तारतम्यता नहीं बना पा रहे? कोई बात नहीं कि जनता से उनका संवाद सालों से नहीं हो रहा. और नतीजन उन्हें अनगिनत पराजयों का सामना करना पड़ रहा है. यह शायद उसी का नतीजा है कि उन्हें मजबूरी में थकाऊ पदयात्रा भी निकालनी पड़ रही है. बाकी लोग तो दिव्य संवाद कर बिना व्यर्थ का श्रम किए और घरबैठे, अपना काम निकाल ले जा रहे हैं. जहां तक बात मोदी की है वे अनंत तीर्थयात्राओं पर निकले नजर आते हैं. वह तो सबके वश की बात नहीं.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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