Arvind Kejriwal को समझ लेना चाहिए- चुनाव जीतने और सरकार चलाने का फर्क
दिल्ली में कोरोना वायरस (Delhi Coronavirus cases) के मामले में आखिरकार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने हथियार डाल ही दिये. अब कह रहे हैं कि वो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के साथ मिलकर का काम करेंगे - ये ज्ञान थोड़ा पहले हो जाता तो दिल्ली का ये हाल नहीं होता.
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कोरोना वायरस से तबाही की तरफ बढ़ रहे दिल्ली (Delhi Coronavirus cases) वालों के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है - अब दिल्ली की अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार कोरोना के खिलाफ मिल कर जंग लड़ने जा रहे हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि अब तक ऐसा नहीं हो रहा था. अगर कुछ हो रहा था तो सिर्फ राजनीति और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा था. अगर ऐसा नहीं था तो क्यों हर गड़बड़ी का ठीकरा दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और आप नेता संजय सिंह केंद्र की मोदी सरकार पर फोड़ रहे थे - और दिल्ली बीजेपी सांसद मनोज तिवारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कोरोना वायरस के फैलने पर काबू पाने में नाकामी के लिए इस्तीफा मांग रहे थे?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) भी अब दिल्ली को लेकर विशेष रूप से सक्रिय हो गये हैं और अरविंद केजरीवाल, उप राज्यपाल अनिल बैजल, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के साथ मीटिंग के बाद पांच और अफसरों को दिल्ली के हालात सुधारने का टास्क दिया है.
दिल्ली में कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए टेस्टिंग और इलाज की सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं - सवाल ये है कि ऐसा करने के लिए किस बात का इंतजार हो रहा था?
सवाल ये भी है कि क्या दिल्ली के मौजूदा हाल के लिए सिर्फ अरविंद केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं या फिर केंद्र की मोदी सरकार भी?
ये राजनीति अब और नहीं चलने वाली है
जब दिल्ली में दंगे हुए तो एक सवाल उठा था - दिल्लीवालों को दंगे से नहीं बचा सकते तो केजरीवाल किस बात के मुख्यमंत्री? ये सवाल फिर से उठ रहा है, फर्क सिर्फ ये है कि दंगे की जगह कोरोना वायरस है. दंगों के दौरान तो अरविंद केजरीवाल के हाथ बंधे हुए थे, कोरोना वायरस और लॉकडाउन के दौरान तो ऐसा कुछ भी नहीं रहा - और अनलॉक के बाद तो बिलकुल भी नहीं.
दिल्ली में कोरोना वायरस को लेकर हुआ हाल भी फरवरी में हुए दंगे जैसा लगने लगा है. तब भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के भरोसे बैठे हुए थे और कोरोना वायरस के मामले में भी अब तो ऐसा ही लगने लगा है. दंगे बेकाबू होने की जो वजह समझ में आयी थी अब वही कोरोना वायरस के दिल्ली में आउट ऑफ कंट्रोल में पहुंच जाने पर महसूस की जा सकती है. दंगों के वक्त भी केंद्र सरकार तब हरकत में आयी थी जब हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही थी और पहले ही हथियार डाल बैठे अरविंद केजरीवाल ने सेना बुलाये जाने की डिमांड रख दी.
तब भी अरविंद केजरीवाल हाथ पर हाथ धरे इसलिए बैठे रहे कि दिल्ली पुलिस तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को रिपोर्ट करती है, लिहाजा तोहमत भी उन पर ही आएगी. अब भी टेस्टिंग को लेकर सवाल उठा तो आईसीएमआर की गाइडलाइन का बहाना बनाया गया और सुप्रीम कोर्ट ने शवों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर फटकारा तो दिल्ली सरकार के मंत्री जिम्मेदारी MCD पर डालने लगे.
दिल्ली में कोरोना वायरस से बेकाबू होते हालात को लेकर अरविंद केजरीवाल और अमित शाह ने डेढ़ घंटे तक माथापच्ची की - और ज्वाइंट एक्शन की तैयारी शुरू हुई है
कोरोना वायरस से दिल्ली में मची अफरातफरी के बीच अमित शाह के साथ हुई मीटिंग के बाद अरविंद केजरीवाल का वैसा ही ट्वीट आया है जैसा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद जब गृह मंत्री से मिले थे तो महसूस कर रहे थे - बैठक बहुत फलदायी रही. तब कहे था कि मिल कर काम करेंगे और दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाएंगे - अब भी कह रहे हैं कि केद्र सरकार के साथ मिल कर कोरोना को हराएंगे.
Extremely productive meeting betn Del govt and Central govt. Many key decisions taken. We will fight against corona together.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 14, 2020
अनलॉक 1.0 के ठीक पहले अरविंद केजरीवाल बड़े बड़े दावे कर रहे थे - दिल्ली वालों को परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार सारी तैयारी कर चुकी है. दिल्ली सरकार के इंतजामों के बारे में केजरीवाल ने बताया कि अगर कोरोना दो कदम बढ़ता है तो तैयारियों के मामले में सरकार चार कदम आगे है.
जब लॉकडाउन खोलने की बात हुई तो केजरीवाल ने दिल्ली वालों से राय मांगी. जब दिल्ली वालों ने लॉकडाउन को लेकर अपनी राय दे दी तो उसे वो केंद्र सरकार के पास भेज दिये और बोले कि जो केंद्र की गाइडलाइन होगी उसी के हिसाब से काम होगा. ऐसे में दिल्ली सरकार की क्या भूमिका रही - यही जो अभी दिखायी दे रही है.
जब ग्रेटर कैलाश के एक सीनियर सिटिजन की इलाज के लिए दर दर की ठोकरें खाने के बाद मौत हो गयी और उसकी बेटी का ट्वीट वायरल होने लगा तो अरविंद केजरीवाल दबाव में आ गये. फिर एक टीवी चैनल की अस्पताल से भर्ती के लिए लाखों की रकम मांगने का मुद्दा उठाये और निजी अस्पतालों पर एक्शन की बात किये. एक्शन भी लिया तो सर गंगा राम अस्पताल पर जो कोई निजी अस्पताल नहीं है बल्कि एक ट्रस्ट उसका संचालन करता है.
जब सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस की टेस्टिंग पर सवाल उठाये तो केजरीवाल के साथ सत्येंद्र जैन समझाने लगे कि टेस्टिंग बढ़ाने के लिए तो आईसीएमआर को गाइडलाइन बदलनी पड़ेगी. इशारा केंद्र सरकार की ही तरफ रहा. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में कोरोना मरीजों के शवों के बुरे हाल पर फटकारा तो समझाने लगे कि वो तो एमसीडी की जिम्मेदारी है. एमसीडी का नाम लेने की भी वजह यही रही कि वहां तो बीजेपी के लोग हैं.
जब कुछ नहीं समझ आ रहा था तो अरविंद केजरीवाल का सबसे घटिया फरमान आया कि दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना के उन मरीजों को ही इलाज मिलेगा जिनके पास दिल्ली का एड्रेस प्रूफ होगा. फिर तो वो दिन भी आ सकता है जब 'दिल्ली के फरिश्ते' सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल व्यक्ति को तब तक अस्पताल नहीं पहुंचाएंगे जब तक कि उनका नाम पता न मालूम हो जाये - और अगर वो शख्स दिल्ली का नहीं रहा तो छोड़ कर चले भी जाएंगे. चुनावों में अरविंद केजरीवाल घूम घूम कर बताते रहे कि दिल्ली के फरिश्ते सड़क हादसों के शिकार बहुत सारे लोगों की जान बचा चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल चुनाव जीतने की राजनीति में तो अब तक अव्वल आते रहे हैं, लेकिन सरकार चलाने के मामले में पब्लिक वेलफेयर से उनका दूर दूर तक नाता नजर नहीं आ रहा है. क्या दिल्ली चुनाव जीतने के बाद दिल्ली वालों को 'आई लव यू' बोलने के बाद ऐसी ही काम की राजनीति की बात कर रहे थे?
अब कोई बहानेबाजी नहीं चलने वाली है. भ्रष्टाचार मिटाने और लोकपाल बनाने के नाम पर दिल्ली में सरकार बनाने के बाद 49 दिन में भाग खड़े हुए केजरीवाल ने घर घर जाकर माफी मांगी तो दिल्ली वालों जी खोल कर बहुमत दे दिया. जब कार्यकाल पूरे होने को आये तो आखिरी दौर में चुनावी वादे पूरे करने में जुट गये - और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद से फिर से चुनाव जीत गये - लेकिन उसके बाद से क्या हो रहा है - ये राजनीति अब और नहीं चलने वाली है. ध्यान रहे.
केंद्र सरकार को किस बात का इंतजार रहा?
सबसे बड़ा सवाल - कोरोना वायरस से दिल्ली में जो हालात हो चुके हैं, क्या इसके लिए सिर्फ अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
दूसरा सवाल - कोरोना वायरस से दिल्ली में जो हालात हो चुके हैं, क्या इसके लिए क्या केंद्र की मोदी सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है?
दुर्भाग्य से दोनों ही सवालों के जवाब 'हां' में ही मिलता है - और ऐसे कई फैक्टर हैं जो दोनों ही सरकारों को जिम्मेदार बताते हैं.
पहली जिम्मेदारी तो दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की ही बनती है क्योंकि अरविंद केजरीवाल के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी जो उनको काम करने से रोक रही थी. कोरोना वायरस से जंग में दिल्ली पुलिस उतनी ही शिद्दत से काम कर रही है, जैसे बाकी राज्यों की पुलिस. दिल्ली पुलिस भी कोरोना वायरस से उतनी ही पीड़ित है जितनी देश की दूसरी पुलिस और सुरक्षा बल.
दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार सवालों के घेरे में इसलिए भी आती है क्योंकि पश्चिम बंगाल में तो उसे लगा कि लॉकडाउन का पालन नहीं हो रहा है, लेकिन दिल्ली को लेकर एक बार भी क्यों नहीं लगा? ऐसे कैसे हो सकता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को दिल्ली की हालत का पता ही न हो?
अरविंद केजरीवाल अगर जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं तो उप राज्यपाल अनिल बैजल भी तो सारी चीजों से वाकिफ हैं - अगर ऐसा नहीं होता तो बाहरी मरीजों को इलाज की सुविधा पर पाबंदी लगाने वाले मुख्यमंत्री के फैसले को वो कैसे पलट दिये होते?
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