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Updated: 09 नवम्बर, 2015 12:08 PM
विवेक शुक्ला
विवेक शुक्ला
  @vivek.shukla.1610
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बिहार में एनडीए का सूपड़ा साफ हुआ तो हैदराबाद से आकर मुसलमानों का रहनुमा बनने की कोशिश करने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) के नेता असाउदीनओवेसी भी धूल में मिला दिए गए. सीमांचल की 6 सीटों पर खड़े हुए ओवैसी के सारे उम्मीदवार हवा में उड़ गए.

चुनाव नतीजों के आने से पहले माना जा रहा था कि ओवैसी मुसलमानों के बीच अपनी जगह बना लेंगे. मुसलमान मतदाता उनके साथ हो लेंगे. लेकिन ये हो न सका. बिहार विधानसभा में कुल जमा 24 मुसलमान उम्मीदवार जीते. ये सभी महागठबंधन से हैं. पिछली विधानसभा में इनका आंकड़ा मात्र 15 था. है.2011 की जनगणना में बिहार में मुसलमानों की आबादी 17 फीसद थी. यानी 243 सदस्यीय विधानसभा में मुसलमानों की भागेदारी काफी कम थी. एक दौर में बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के रूप में मुसलमान थे.

ओवैसी को लग रहा था कि बिहार विधानसभा चुनावों में ठीक-ठाक कामयाबी के बाद वे अखिल भारतीय स्तर पर मुसलमानों के नेता के रूप में उभरेंगे. उन्होंने अपनी कैंपेन में मुसलमानों के साथ देश में हो रहे कथित अन्याय को मुद्धा बनाया. वे भाजपा पर लगातार वार करते रहे. बिहार मामलों के जानकार और राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा कहते हैं कि बिहार का मुसलमान पूरी तरह से महागठबंधन के साथ खड़ा था. उसने बाकी किसी दल को देखा भी नहीं.

ओवैसी दलित- मुस्लिम एकता की वकालत कर रहे थे. पहले तो कुछ राजनीतिक विश्लेषक भी दावा कर रहे थे कि ओवैसी बिहार में अपनी ताकत दिखा सकते हैं. वे प्रखर वक्ता हैं. वे मुसलमानों के सवालों और हितों पर बोलते रहे हैं. इसलिए बिहार में उन्हें सपोर्ट तो मिल सकता है. बिहार में किश्नगंज, कटिहार, अररिया, मधुबनी, पूर्णिया, दरभँगा, वेस्ट चंपारण, ईस्ट चंपारण में मुसलमानों की आबादी 18 फीसद से लेकर 48 फीसद तक है.

जाहिर है, इन जिलों में बेहतर प्रदर्शन करना बड़ी चुनौती था एनडीए के लिए. पर उसे कोई सफलता नहीं मिली. बिहार के 38 में से 9 जिलों में मुसलमानों की आबादी खासी है. इस तथ्य की रोशनी में कोई भी दल मुसलमानों को इग्नोर नहीं कर सकता था. बेशक,बिहार में मुसलमानों के वोट लेने के लिए सभी दलों ने कड़ा संघर्ष किया. सभी चाहते थे कि उनके पाले में चले आएं मुसलमान. लेकिन मुसलमान पूरी तरह से महागठबंधन के साथ रहे.

बेशक, बिहार में मात खाने के बाद उनके आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में असर दिखाने के इरादों पर नकारात्मक असर तो होगा. उन्होंने उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक भूमि तैयार करनी शुरू कर दी थी. अब देखना यह है कि ओवैसी उत्तर प्रदेश को लेकर अपनी रणनीति में किस तरह का बदलाव करेंगे. ओवैसी के उत्तर प्रदेश में कूदने से वहां ध्रुवीकरण तेज होगा. ओवेसी को बिहार में खारिज किए जाने से उसे परेशान समाजवादी पार्टी जरूर राहत की सांस ले रही होगी. ओवेसी के कई सूबों में बढ़ते असर से समाजवादी पार्टी के नेताओं पेशानी से पसीना छूट रहा था. अभी तक मुसलमानों के बीच समाजवादी पार्टी का तगड़ा असर रहा है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अपने महाराष्ट्र के नेता अबू आजमी को ओवैसी के पीछे लगाया गया हुआ है, क्योंकि वे भी मुसलमानों के बीच में असर रखते हैं. समाजवादी पार्टी को लगता रहा है कि ओवैसी को उत्तर प्रदेश में रोकना होगा असर दिखाने से पहले ही. और अब ओवैसी भी समझ जाएंगे कि हैदराबाद से बाहर जाकर लड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं है.

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लेखक

विवेक शुक्ला विवेक शुक्ला @vivek.shukla.1610

लेखक एक पत्रकार हैं.

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