Ayodhya Ram Mandir verdict: असदुद्दीन ओवैसी गंवा रहे हैं ऐतिहासिक मौका !
अयोध्या केस (Ayodhya Verdict) के पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और हिंदू-मुस्लिम एकता की नई मिसाल कायम की है. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग (Asaduddin Owaisi) हैं, जो इस ऐतिहासिक मौके को अपने राजनीतिक हित के लिए गंवा रहे हैं.
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6 दिसंबर 1992, वो दिन जब बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) ढहा दी गई. इसके बाद पूरे देश में हिंसा हो गई. हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे को मारने लगे. करीब 2000 लोग मारे गए. देश के इतिहास में वो दिन किसी काले दिन से कम नहीं था, क्योंकि इस दिन ने हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच एक दीवार सी बना दी थी. हिंदू मानते थे वहां राम मंदिर (Ram Mandir) बनाया जाना चाहिए, लेकिन मुस्लिम समुदाय का मानना था कि वहां मस्जिद होनी चाहिए. अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Verdict) ने अयोध्या का फैसला (Ayodhya Verdict) कर दिया है और अपना फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (Ram Janmbhoomi-Babri Masjid Dispute) को खत्म करते हुए विवादित जमीन हिंदू पक्ष को दे दी और मुस्लिम पक्ष को अलग से 5 एकड़ जमीन देने का सरकार को आदेश दिया, जहां मस्जिद बनाई जा सके. इस मौके पर हर कोई, भले ही वह हिंदू हो या मुस्लिम, देश के जिम्मेदार नागरिक के तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान कर रहा है. यहां तक कि इस केस के पक्षकारों ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और हिंदू-मुस्लिम एकता की नई मिसाल कायम की है. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो हिंदू-मुस्लिम को एक करने के इस ऐतिहासिक मौके को भी अपने राजनीतिक हित के लिए गंवा देना चाहते हैं. इनमें से ही एक नाम है असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi).
सभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन ओवैसी गुस्से से आग बबूला हो गए हैं.
ये एक ऐतिहासिक मौका है, जिसे ओवैसी गंवा रहे हैं
अयोध्या का मामला आज का नहीं है, बल्कि दशकों या यूं कहें कि सदियों पुराना है. हां, बाबरी मस्जिद गिराई जाने के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा और हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई बना दी. आज सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, उससे इस मामले के सभी पक्षकार सहमत हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी तथ्यों और सबूतों के आधार पर फैसला दिया है. सिर्फ बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने ही नहीं, बल्कि उसके बनाए जाने के पहले तक के सबूतों का अध्ययन किया है और माना है कि जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां पहले एक मंदिर था, ऐसे में उस जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया गया. यानी सबूतों और तथ्यों की मानें तो उस जमीन पर हक हिंदुओं का है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जमीन दे दी है, लेकिन अगर कोई सबूतों को मानना ही ना चाहे तो उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही लग भी नहीं सकता.
इस फैसला का स्वागत करते हुए हिंदु-मुस्लिम के दोबारा एक हो जाने की बातें हो रही हैं. रामदेव ने तो ये भी कह दिया कि हिंदुओं को मस्जिद बनाने में योगदान देना चाहिए और इसी तरह मुस्लिमों को भी राम मंदिर के निर्माण में योगदान देना चाहिए. यानी सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला ऐतिहासिक मौका बन सकता है, जिसका फायदा उठाते हुए हिंदू-मुस्लिम एक हो सकते हैं. वह अपने बीच की कड़वाहट को भूल सकते हैं, लेकिन ओवैसी जैसी लोग ऐसा नहीं होने देंगे.
क्या कहा है ओवैसी ने?
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भारी नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि जिन्होंने बाबरी मस्जिद गिराई, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ट्रस्ट बनाकर राम मंदिर बनाने का काम दे दिया. वह बोले अगर वहां मस्जिद होती तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होता? वह बोले कि उन्हें 5 एकड़ जमीन की भीख की जरूरत नहीं है. हम अपने अधिकार के लिए लड़ रहे थे, जमीन के लिए नहीं. उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान गरीब जरूर है, लेकिन इतना भी गया गुजरा नहीं है कि 5 एकड़ जमीन ना खरीद सके. वह बोले कि ये मुल्क अब हिंदूराष्ट्र के रास्ते पर जा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अयोध्या से इसकी शुरुात कर दी है और एनआरसी, सिटिजन बिल से इसे पूरा किया जाएगा. उन्होंने तो ये तक कह दिया कि 6 दिसंबर को जो हुआ था उसे ऐसे ही नहीं भूल सकते. वह बोले कि हम अपनी आने नस्लों को बताते जाएंगे कि यहां पर 500 सालों तक मस्जिद थी, जिसे संघ परिवार और कांग्रेस की साजिश के चलते शहीद किया गया, सुप्रीम कोर्ट को धोखा दिया गया था. यही वजह है कि मस्जिद का सौदा नहीं किया जा सकता.
सुन्नी वक्फ बोर्ड तो मान गया, फिर ओवैसी क्यों नहीं मान रहे?
अगर अयोध्या केस की बात करें तो इस मामले में 3 पक्ष थे. एक हिंदू पक्ष था, दूसरा मुस्लिम पक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे तीनों ही पक्ष सहमत हैं. शुरू में सुन्नी वक्फ बोर्ड संतुष्ट नहीं था, लेकिन बाद में उसने भी तय किया कि वह इस फैसला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन नहीं डालेगा. यहां तक कि मामले के पक्षकार इकबाल अंसारी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश हैं, तो फिर ओवैसी की नाराजगी के क्या मायने हैं? आखिर वह क्यों विरोध जता रहे हैं और एक सुलझते हुए झगड़े को उलझाने की कोशिश में लगे हैं.
ओवैसी क्यों कर रहे हैं ये सब?
ओवैसी ने इस मामले पर फैसला आने से पहले कहा था कि जो भी फैसला आएगा, वह उसका सम्मान करेंगे, लेकिन अब वह फैसले से सहमत नहीं हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि फैसला उनके खिलाफ आया है. वहीं दूसरी ओर, वह मुस्लिमों का नेता बनने की कोशिश में लगे हैं. हालांकि, वह ये बात नहीं समझ रहे कि अपना एक राजनीतिक हित साधने के चक्कर में वह एक ऐतिहासिक मौका गंवा रहे हैं, जब देश के हिंदू और मुस्लिम के बीच की दीवार को गिराया जा सकता है.
अयोध्या केस में दशकों से सुनवाई हो रही है. इस मामले से जुड़े लोग भी ये समझ गए हैं कि सालों क्या और दशकों क्या, सदियों तक भी कोर्ट-कचहरी में फंसे रहने का कोई मतलब नहीं है. इकबाल अंसारी को ही ले लीजिए, वह भी राम मंदिर को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश हैं. वह मानते हैं कि यह देश का एक अहम मसला था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है. इकबाल अंसारी इस बात को समझ रहे हैं कि कोर्ट-कचहरी में फंसे रहने और हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई से कुछ हासिल नहीं होगा. हालांकि, जिन्हें अपनी राजनीतिक जमीन ही इसी के जरिए बनानी है, उनके लिए तो ऐसे मामले खाद-पानी का काम करते हैं.
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