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Updated: 21 सितम्बर, 2022 05:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने का सबसे ज्यादा इंतजार न तो सोनिया गांधी को है, न ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को है - बल्कि, वो तो सचिन पायलट हैं जो उस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. और अशोक गहलोत हैं कि ऐसा किसी भी सूरत में नहीं होने देना चाहते.

जयपुर से निकलने से पहले जिस तरह विधायकों से मुलाकात और बात हुई है, लगता नहीं कि अशोक गहलोत अपनी तरफ से सचिन पायलट के लिए कोई लूपहोल भी छोड़ने वाले हैं. अशोक गहलोत का ये कहना कि अगर वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरते हैं, तो सभी विधायकों को दिल्ली पहुंचना होगा. यानी राजस्थान के कांग्रेस विधायकों को वो फिर से होटल में रखने की तैयारी कर चुके हैं. अगर फिर से कोई ऐसी वैसी नौबत आती है तो.

पिछली बार तो अशोक गहलोत विधायकों को सचिन पायलट के प्रकोप से बचाने के लिए होटल में रख रहे थे, हो सकता है इस बार कोई नया बहाना सामने आये. जिस तरह दिल्ली और पंजाब में अरविंद केजरीवाल ऑपरेशन लोटस के खतरे की आशंका जताते आ रहे हैं, अशोक गहलोत भी तो ऐसा कर ही सकते हैं. सोनिया गांधी और राहुल गांधी को समझाने का ये कारगर तरीका भी हो सकता है - और बोनस में ये भी बताया जा सकता है कि ऐसी तमाम गतिविधियों के सूत्रधार तो सचिन पायलट ही होंगे.

अगर ऐसा हुआ तो सचिन पायलट को आगे भी अपने धैर्य की मिसाल पेश करनी होगी. बल्कि, धैर्य बनाये रखना होगा. सचिन पायलट को लगता होगा कि अशोक गहलोत दिल्ली शिफ्ट हो गये तो जयपुर का पूरा कामकाज उनके जिम्मे हो जाएगा.

ऐसी खबर भी आयी थी कि सचिन पायलट को भाई-बहन की जोड़ी यानी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने आश्वस्त भी कर रखा है - लेकिन ये तो तभी मुमकिन होगा जब अशोक गहलोत भी वादा पूरा होने देंगे. अगर छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव से किये वादे के बावजूद राहुल गांधी को समझा कर अपनी मनमानी कर सकते हैं, तो गांधी परिवार के दरबार में अशोक गहलोत का जादू तो बाकियों से ज्यादा ही चलता है.

अशोक गहलोत का कहना है कि वो आलाकमान का आदेश सिर आंखों पर रखते हैं - और अगर कांग्रेस आलाकमान की सारी बातें अशोक गहलोत आंख मूंद कर मानेंगे तो क्या गांधी परिवार उनकी एक भी बात नहीं मानेगा? और वो भी राजस्थान में कांग्रेस को बचाये रखने के नाम पर. अशोक गहलोत की दलील तो यही है कि अगर वो छोड़ दिये तो राजस्थान में कांग्रेस खत्म हो जाएगी.

पहले अशोक गहलोत का जोर सचिन पायलट को गद्दार साबित करने पर हुआ करता था. अब वो समझाने लगे हैं कि कांग्रेस को किसी के भी भरोसे छोड़ कर राजस्थान को कांग्रेस मुक्त बनाने नहीं देना चाहते.

कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) के चुनाव के लिए नामांकन पत्र 24 सितंबर तक दाखिल होने हैं. अशोक गहलोत से काम काज संभालने को बोल कर सोनिया गांधी, शशि थरूर को भी इजाजत दे चुकी हैं. राहुल गांधी तो पहले ही अपने गोलमोल जवाब के जरिये साफ कर चुके हैं कि उनका इरादा बिलकुल नहीं बदला है - ऐसे में अशोक गहलोत की पूरी कोशिश यही है, चुनाव बाद ही सही, कि लेटर हेड और स्टांप मिल जाने के बाद भी राजस्थान की कमान उनके पास बनी रहे.

राजस्थान के कांग्रेस अध्यक्ष बन कर न रह जायें

अशोक गहलोत ने रात के करीब 11 बजे कांग्रेस विधायकों को अपने घर बुलाया था. ये अशोक गहलोत को विधायकों को अपनी तरफ से ये समझाने की कोशिश रही, वो दिल्ली जरूर जा रहे हैं लेकिन उनसे दूर तो कतई नहीं. और ये तो कोई बिलकुल न समझे की वो जयपुर छोड़ रहे हैं, या किसी के हवाले किये जाने की कोई गुंजाइश छोड़ रहे हैं.

rahul gandhi, ashok gehlotअशोक गहलोत सब कुछ अच्छी तरह समझते हैं, तभी तो वो चाहते हैं कि कम से कम राजस्थान का रिमोट तो उनके पास रहे. वो सचिन पायलट के पास गया तो आउट ऑफ कंट्रोल हो जाएगा.

अशोक गहलोत राजस्थान नहीं छोड़ने वाले हैं: विधायकों को अशोक गहलोत ने बताया कि वो दिल्ली जा तो रहे हैं, लेकिन वो राहुल गांधी को ही कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर अभी हार नहीं मानने वाले हैं. वो फिर से राहुल गांधी से गुजारिश करेंगे कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी वो ही संभालें. सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद, जब से अशोक गहलोत का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद से जोड़ा जा रहा है, अशोक गहलोत यही समझाते आ रहे हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बने तो कांग्रेस नेता घर बैठ जाएंगे - और कोई काम नहीं हो पाएगा.

लगे हाथ अशोक गहलोत ने आगे की भी बात बता दी. ये तो अशोक गहलोत को भी मालूम है कि राहुल गांधी उनकी सारी बातें मान सकते हैं, सिवा एक के. कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालने को लेकर. ऐसे में वो ये भी बता देते हैं कि राहुल गांधी अगर राजी नहीं होते और मजबूरी में कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करना ही पड़ा तो सभी विधायकों को दिल्ली पहुंचना होगा - ताकि सनद रहे और ऐसा संदेश जाये जिसका वक्त आने पर इस्तेमाल किया जा सके.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अशोक गहलोत अपना रोल तय कर चुके हैं: अशोक गहलोत जानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में भी उनका नया रोल भी पुरानी भूमिका से अलग नहीं होने वाला - 2017 के गुजरात चुनावों के बाद राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई थी. राहुल गांधी के शुरुआती फैसलों में अशोक गहलोत को संगठन महासचिव बनाया जाना भी रहा. जनार्दन द्विवेदी से चार्ज लेकर अशोक गहलोत ने कुछ दिन काम भी किया, लेकिन फिर केसी वेणुगोपाल को कार्यभार सौंप कर राजस्थान का मुख्यमंत्री बन कर दिल्ली से जयपुर लौट आये.

किसी भी राजनीतिक दल में संगठन सचिव काफी ताकतवर माना जाता है. और ताकत की सबसे बड़ी वजह संगठन से जुड़ी सूचनाओं का उससे होकर गुजरना होता है. सूचनाओं में कितनी ताकत होती है, ये तो सबको पता है. और सूचनाओं के जरिये होने वाली राजनीति ही संगठन सचिव को एक्स्ट्रा पॉवर दे डालती हैं.

संगठन महासचिव सचिव अति महत्वपूर्ण बैठकों का भी हिस्सा रहता है. फिर उसे पूरे संगठन तक पहुंचाना भी उसी के जिम्मे होता है. प्रवक्ताओं को भी अक्सर वो फैसलों के बारे में ब्रीफ करता है - क्या आगे बताना है, क्या नहीं बताना है. मंत्र मिल जाने के बाद प्रवक्ता अपना हुनर दिखाते हैं और उसे अपने तरीके से सामने वाले को देख कर, मिजाज समझ कर पेश करते हैं. फिर भी अगर जरूरत पड़ती है तो महत्वपूर्ण मसलों पर संगठन महासचिव मीडिया के सामने आकर औपचारिक अपडेट भी देता है.

ऐसे तमाम फैसलों और नियुक्तियों की जानकारी वाले कागज भी संगठन महासचिव अपनी दस्तखत से जारी करता है. और हर मामले में खुद को संदेशवाहक के तौर पेश करता है - बार बार यही बताता है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने ऐसा किया है.

भविष्य की जो व्यवस्था अब तक समझ में आयी है, अशोक गहलोत अच्छी तरह समझते हैं. वो जानते हैं कि प्रमोशन होने पर भी उनका कामकाज बहुत ज्यादा बदलने वाला नहीं है. नयी व्यवस्था में कोई नया संगठन सचिव, या मौजूदा पदाधिकारी केसी वेणुगोपाल ही जो कुछ होगा वो उनके यानी अशोक गहलोत के नाम से बढ़ाएंगे.

लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद भी उनका काम नहीं बदलने वाले है. पुरानी भूमिका में जो काम वो राहुल गांधी के नाम पर हुआ बताया करते थे, नयी व्यवस्था में उनके नाम का सिक्का चलेगा - लेकिन वो सिक्का उतना ही चलेगा जितना एक गुमनाम ताकत ढील देगी.

नयी भूमिका में राष्ट्रीय स्तर पर अशोक गहलोत को दिल्ली पहुंच कर कोई नया काम नहीं करना होगा. बल्कि बल्कि हर अच्छे बुरे नतीजों का ठीकरा फोड़े जाने के लिए अपना सिर मुहैया कराना होगा - और जब भी जरूरत पड़ी बगैर बताये जहर का घूंट पीना होगा. पीने के बाद हजम भी करना होगा.

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में भी अशोक गहलोत को सिर्फ राहुल गांधी के हुक्म की तामील करनी होगी, ये काम तो बस फरमानों को फॉरवर्ड करने भर का ही होगा - बाकी खाली समय में वो करेंगे भी तो क्या करेंगे?

अब तक तो जो सूरत-ए-हाल समझ आया है, ऐसा ही लग रहा है जैसे राजस्थान का मुख्यमंत्री तो वो बने ही रहेंगे, अशोक गहलोत को कांग्रेस का एडिशनल चार्ज मिलने जा रहा है - जैसे मुख्यमंत्री का कामकाज देखते रहे, वैसे ही जारी रखेंगे.

राहुल गांधी भी खुश. सोनिया गांधी भी खुश. और दोनों खुश, तो खुद भी खुश. भला और क्या चाहिये! कांग्रेस को भी तो ऐसा ही एक अध्यक्ष चाहिये. ऐसा अध्यक्ष जो राणा की पुतली फिरने से पहले ही मुड़ भी जाये - और आगे भी बढ़ जाये. अगर पुतली किंकर्तव्यविमूढ़ हो तो मौके की नजाकत समझते हुए मन की बात भी पढ़ ले.

अशोक गहलोत और राहुल गांधी के लिए तो ये व्यवस्था बेहतरीन ही है - खतरा बस ये है कि अशोक गहलोत कहीं राजस्थान के कांग्रेस अध्यक्ष भर बन कर न रह जायें.

'पतवार' तो राहुल के पास ही रहेगी!

फिल्म पुष्पा वाली स्टाइल में राहुल गांधी ने एक छोटी सी फेसबुक पोस्ट लिखी है, 'जब नाव बीच मंझदार में फंस जाए, तब पतवार अपने हाथ में लेनी ही पड़ती है... न रुकेंगे, न झुकेंगे, भारत जोड़ेंगे!'

राहुल गांधी ने ये लाइन अपनी ही एक तस्वीर के साथ शेयर की है, जिसमें वो हाथ में पतवार लिये हुए हैं. केरल में राहुल गांधी का ऐसा ही मिलता जुलता अवतार 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी देखा गया था. तब राहुल गांधी के सिक्स-पैक और बायसेप्स की तस्वीरें शेयर करने के लिए कांग्रेस नेताओं में होड़ मची हुई थी.

राहुल गांधी की इस फेसबुक पोस्ट के बाद कुछ लोगों ने ये समझना समझाना भी शुरू कर दिया था कि वो कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए राजी हो गये हैं. तभी कोई गलत मैसेज न चला जाये, इसके लिए दिग्विजय सिंह आगे आये. राहुल गांधी की फेसबुक पोस्ट भारत जोड़ो यात्रा के बीच ही आयी है, ऐसे में यात्रा के संयोजक दिग्विजय सिंह को सामने तो आना ही थी, लेकिन दिग्विजय सिंह की सफाई के बाद तस्वीर कुछ ज्यादा ही साफ हो गयी है. अब कोई शक शुबहा नहीं बचता जो ऐसी कोई गलतफहमी बनी रहने दे कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष रबर स्टांप नहीं होगा. हाथ में पतवार लिये तस्वीर और पोस्ट में भी पतवार शब्द का जिक्र - आखिर जाहिर तो यही करता है. है कि नहीं?

rahul gandhiकांग्रेस की ये पतवार ही तो है राहुल गांधी के हाथ में - कभी दिखायी पड़ती है, कभी नहीं.

अब ये भी साफ हो गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष कोई भी बने रिमोट तो उनके हाथ में ही रहेगा - वैसे राहुल गांधी अपनी फेसबुक पोस्ट में पतवार शब्द का इस्तेमाल किया है.

इसके साथ-साथ दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी के फेसबुक पोस्ट पर सफाई भी दी है. सोमवार को राहुल गांधी ने एक फेसबुक पोस्ट भी किया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि, 'जब नाव बीच मंझधार में फंस जाए, तब पतवार अपने हाथ में लेनी ही पड़ती है. ना रुकेंगे, ना झुकेंगे, भारत जोड़ेंगे'. इसका अर्थ निकाला जा रहा था कि राहुल गांधी फिर से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं.

दिग्विजय सिंह का कहना है कि पतवार रखने का मतलब ये नहीं है कि राहुल गांधी कांग्रेस की पतवार अपने पास रखेंगे. और अपनी बात समझाने के लिए दिग्विजय सिंह महात्मा गांधी का उदाहरण देते हैं. पूछते हैं, महात्मा गांधी किसी पद पर रहे क्या? पूरे देश को महात्मा गांधी ने एक दिशा दी, उनको सभी ने स्वीकार किया. धीरे-धीरे, उसी तरह राहुल गांधी को भी किसी पद की आवश्यकता नहीं होगी.

ऐसा लगता है जैसे दिग्विजय सिंह इस बात की पुष्टि कर रहे हों कि राहुल गांधी किसी पद पर तो नहीं रहेंगे, लेकिन पद उनके आसपास ही रहेगा - भला अब भी किसी को कोई गलतफहमी है क्या? नहीं ना?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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