क्या होगा जब हजारों बेटियां सामने आ जाएं?
एक बेटी से मुखातिब होने में नेता फूट-फूटकर रो पड़े तो क्या होगा जब देश के किसान की वो सारी बेटियां सामने आ जाएं, जरा सोचकर देखिए?
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एक बेटी से मुखातिब होने में नेता फूट-फूटकर रो पड़े तो क्या होगा जब देश के किसान की वो सारी बेटियां सामने आ जाएं, जिसके परिवार की हरेक शाम काली हो गई है, जिसके सपने असमय ही काल कलवित हो गए हैं... क्या होगा जरा सोचकर देखिए?
एक फफकता चेहरा कितना कुछ कह गया. राजनीति की स्याह गलियों का यह एक सफेद चेहरा हो सकता है. आत्मस्वीकृति वाला चेहरा सच्चा हो सकता है, लेकिन यकीन कैसे हो? कोई कैसे करे यकीन कि जो दिख रहा है, वह सही है. हमारे नेता बदल रहे हैं. वह अपनी बातों से, अपने व्यवहार से, अपनी संवेदनशीलता से एक आम आदमी की तरह दिखने की कोशिश कर रहे हैं. अपने पश्चाताप से वह सब कुछ मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, जो उस दिन हुआ. हजारों लोगों के सामने हुआ. बजती तालियों के बीच हुआ. इंकलाब-जिंदाबाद के नारों के बीच हुआ. बेशर्म दोपहर में हुआ. लेकिन अफसोस वह दोपहर, वह ताली बजाने वाले लोग, नेता की जय-जयकार करने वाली समर्थकों की भीड़, दर्ज हो चुके उस इतिहास के पन्नों से अब नहीं मिट सकती.
...और उस दिन जंतर मंतर पर जो हुआ उसके बाद का बयान भी काफी शर्मसार करने वाला था. '...लटक गया?'
'यह दूसरी पार्टी की साजिश थी.'
'पुलिसवालों ने कुछ नहीं किया. मैं तो कब से कह रहा था कि उसे पेड़ से उतारो.'
'...मंच से वह नहीं दिख रहा था तो क्या सीएम पेड़ पर चढ़ जाते?'
सभी बयान उस स्याह राजनीति की आवाज सी थी. हिम्मत नहीं था कि हमारे राजनेता सार्वजनिक तौर पर खुद को सही और गलत के नजरिए से देख सकें. एक आम आदमी की आंखों से देख सकें. शायद राजनीति में गलती मानने की या यूं कहें गलती स्वीकार करने की परंपरा नहीं दिखती है. इक्के-दुक्के ऐसे मामले आए हैं, जब नेताओं ने माफी मांगी है या गलती स्वीकार की है.
एक बेटी का ही दिल है कि जिस पिता के लिए मंच पर आसीन नेताओं के लब नहीं खुले, मंच से उतरकर जिन नेताओं के पांव उसे रोकने के लिए नहीं बढ़ें, आज उन्हीं नेताओं को वह यह भरोसा दिला रही है, कह रही है... आप मेरे घर आइए, आपका कोई विरोध नहीं होगा. मेरे पिता तो इस दुनिया से जा चुके हैं. वे अब लौटकर नहीं आ सकते हैं, तो मैं किसी को जिम्मेदार ठहराकर क्या करूंगी.'
यह एक किसान की बेटी का दिल है. देश की हजारों बेटियां कुछ ऐसा ही ख्याल रखती हैं. देश के नेता हिम्मत करें सच स्वीकारने की. वे हिम्मत करें ईमानदारी से सोचने की, उनकी समस्याओं का समाधान निकालने की.
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