क्लिंटन या ट्रंप? राष्ट्रपति वो जिसे एशियाई वोट देंगे
हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप. डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के इन दोनों उम्मीदवारों की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भिड़ंत लगभग तय हो गई है. इन दोनों में से कौन जीतेगा, यह ऐशियाई ही तय करेंगे. जानिए क्यों...
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अमेरिका में नवंबर 2016 में होने वाले राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार लगभग तय हो चुके हैं. हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप. इन दोनो के बीच कांटे की टक्कर है और अमेरिकी चुनाव के पिछले नतीजे दिखाते हैं कि जब जब डेमोक्रैट और रिपब्लिकन के बीच कांटे की टक्कर हुई है, हार और जीत में महज 1-2 फीसदी का अंतर रहा है. ऐसे में इस बार अमेरिका का राष्ट्रपति चुनने में क्या एशियाई मूल के अमेरिकी नागरिकों का अहम किरदार होगा क्योंकि इन चुनावों में 3 फीसदी ऐसे वोटर हैं जो मूलत एशिया से आते हैं.
राष्ट्रपति पद की दौड़ (प्राइमरी) रोचक स्थिति में पहुंच गई है. हाल ही में एशियाई मूल के अमेरिकी वोटरों का गढ़ माना जाने वाले न्यूयार्क राज्य ने दोनों रिपब्लिकन और डेमोक्रैटिक पार्टी के कैंडिडेट लगभग तय कर दिए है. 19 अप्रैल को हुए प्राइमरी में डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन ने अपनी-अपनी पार्टी में अच्छी बढ़त बना ली है. माना जा रहा है कि अब नवंबर 2016 में अंतिम मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच होगा और जनवरी 2017 में इन्हीं में से एक अमेरिका का नया राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा.
हिलेरी क्लिंटन बनाम डोनाल्ड ट्रंप डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के जानेमाने उद्योगपति है, इस्लाम के खिलाफ आग उगलकर वे सुर्खियों में छाए और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार बनने की कगार पर हैं. हिलेरी क्लिंटन पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हैं और 2008 के राष्ट्रपति चुनावों में भी वह डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवारी में थीं. लेकिन अमेरिका को पहला अश्वेत राष्ट्रपति देने के नाम पर वह बराक ओबामा के पक्ष में बैठ गई और ओबामा सरकार में विदेश मंत्री का पद ले लिया. एक बार फिर वह डेमोक्रैटिक पार्टी की तरफ से अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बनने की कगार पर हैं.
डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन |
गैर-अमेरिकी मूल के वोटरों में एशियाई वोटर अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 4.2 करोड़ विदेशी मूल के नागरिक है जिसमें लगभग 1.8 करोड़ एशियाई मूल के नागरिक हैं. जहां गैर एशियाई विदेशी अमेरिकी नागरिकों में जर्मनी, मेक्सिकों, फ्रांस समेत यूरोपीय देश के मूल निवासी शामिल हैं वहीं एशिया से चीन, इंडोनेशिया, भारत और फिलीपीन्स जैसे देश प्रमुख हैं. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक दशक में एशियाई मूल के अमेरिकी वोटरों में दोगुना इजाफा देखने को मिला है. जहां 2000 में इस मूल से लगभग 20 लाख वोटर थे वहीं 2012 तक एशियाई वोटरों की संख्या 39 लाख तक पहुंच चुकी है जो कि देश में कुल वोटरों का लगभग 3 फीसदी है. वहीं अमेरिकी सरकार का अनुमान है कि 2025 तक एशियाई मूल के 5 फीसदी मतदाता हो जाएंगे.
गौरतलब है कि पिछले एक दशक में एशियाई मूल के अमेरिकी नागरिकों में बेतहाशा इजाफा देखने को मिला है. इसके साथ ही इस दशक के दौरान एशियाई मूल के नागरिकों की अमेरिका में राजनीतिक सहभागिता में भी तेजी आई है. इस बात का अंदाजा इसी से लगता है कि जहां 2010 के कांग्रेश्नल चुनाव में एशियाई मूल के महज 10 उम्मीदवार मैदान में थे. वहीं 2012 में 30 और 2014 में 39 उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत को आजमाया था. इसके अलावा एशियाई मूल के लोगों की अमेरिकी राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी इस बात से भी जाहिर होती है कि जहां 2012 चुनावों से पहले 154 संस्थाएं एशियाई मूल के लोगों का वोटर रजिस्ट्रेशन कर रही थी वहीं 2014 में एशियाई वोटर्स के रजिस्ट्रेशन में 317 संस्थाओं ने काम किया था. 2016 में चुनावों से ठीक पहले होने वाले वोटर रजिस्ट्रेशन में उम्मीद जताई जा रही है कि बड़ी संख्या में एशियाई मूल के नागरिक अपना रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सामने आ सकते हैं.
गैर अमेरिकी नागरिक चुनावों में मुद्दा बीते कुछ महीनों से अमेरिका में जारी डेमोक्रैटिक और रिपब्लिकन प्राइमरी में विदेशी मूल के नागरिकों का मुद्दा लगातार गर्म हो रहा है. रिपब्लिकन पार्टी के प्रबल दावेदार डोनाल्ड ट्रंप ने पहले इस्लाम के खिलाफ आग उगला और फिर देश के मुस्लिम जनसंख्या को निशाने पर लिया. इसके अलावा ट्रंप ने पड़ोसी देश मेक्सिको से आने वाले इमीग्रेंट जनसंख्या को भी आड़े हाथों लिया. ट्रंप का मानना है कि ये सभी अमेरिका के मूल नागरिकों की सुविधाओं पर बोझ हैं. जहां ट्रंप राष्ट्रपति बनने पर मेक्सिको से आने वाले लोगों को रोकने के लिए दोनों देशो के बीच पक्की दीवार खड़ी कराने का बात कही है वहीं वे मुस्लिमों के अमेरिका में आने पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने की वकालत करते हैं.
जाहिर है, ऐसे में इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में एशियाई मूल के वोटरों की अहमियत बढ़ी है और इस बात का अंदाजा दोनों की पार्टी के प्रमुख दावेदारों को बखूबी है. एक तरफ जहां हिलेरी क्लिंटन अपनी जीत के लिए एशियाई वोटर्स पर भरोसा कर रही हैं वहीं डोनाल्ट ट्रंप इस भरोसें में सेंध लगाने का कोई मौका नहीं गंवा रहे हैं. अब देखना ये है कि अमेरिका के चुनावी मुद्दों को वहां रह रहे एशियाई मूल के लोग किस तरह लेते हैं और 2017 में हिलेरी क्लिंटन या फिर डोनाल्ड ट्रंप का व्हाइट हाउस जाने का रास्ता साफ करते हैं.
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