मदरसों पर सरमा ने कुछ सही बोला, कुछ गलत- चर्चा दोनों पर होनी चाहिए!
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि 'मदरसा' शब्द का अस्तित्व अब समाप्त हो जाना चाहिए. इसके पीछे जो तर्क उन्होंने दिए हैं वो मजबूत तो हैं लेकिन जैसी उनकी बातें हैं साफ़ है कि इन बातों के पीछे उनका अपना अलग एजेंडा है और उस एजेंडे पर बात बिल्कुल होनी चाहिए.
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दक्षिणपंथियों का एक वर्ग है जो इस बात का पक्षधर है कि वर्तमान राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य में जैसा माहौल तैयार हुआ, बीते कुछ वक़्त से भारतीय मुसलमानों में कट्टरता बढ़ी है. इसके लिए तमाम कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया और कहा गया कि इसके जिम्मेदार मदरसे हैं. मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का सर्वांगीण विकास होता है या नहीं ये एक अलग डिबेट है लेकिन मदरसों पर जो राय असम के मुख्यमंत्रीहिमंत बिस्वा सरमा की है उसपर चर्चा इसलिए भी होनी चाहिए क्योंकि क़ुरान और मदरसों को लेकर उन्होंने ऐसा बहुत कुछ बोल दिया है जिसपर देश का मुसलमान यदि ठंडे दिमाग से विचार करे तो मिलेगा यही कि शर्मा की बातें ही वो गुरुमंत्र है जिसको यदि देश के मुस्लमान ने अपना लिया तो वो बिना किसी मशक्कत के समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाएगा. चूंकि हर चीज के दो पक्ष होते हैं इसलिए क़ुरान और मदरसों को लेकर यदि उन्होंने कुछ अच्छा बोला है तो वहीं कुछ बातें शर्मा ने ऐसी भी कहीं जो उनकी नीयत पर सवालियां निशान लगा रही हैं.
मदरसों को लेकर जो बात असम के मुख्यमंत्री ने कही है उसे मुस्लिम समाज को ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए
सरमा की पॉजिटिव बातें :
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का मानना है कि अब वो वक़्त आ गया है जब मदरसा शब्द का अस्तित्व पूरी तरह से ख़त्म कर देना चाहिए. दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में सरमा ने इसपर बल दिया कि बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर और वैज्ञानिक बनने के लिए पढ़ाई करनी चाहिए.
हो सकता है कि इन बातों के बाद मुस्लिम धर्म के अनुयायी और मुस्लिम धर्मगुरु दोनों ही शर्मा के इस बयान की आलोचना करें. ऐसे में ये बता देना बेहद जरूरी है कि हिमंत इसके पक्षधर हैं कि देश के सभी स्कूलों में एक समान और 'सामान्य शिक्षा' लागू हो. हर बच्चा औपचारिक शिक्षा पाने का हकदार है. वाक़ई ये एक बढ़िया विचार है और इसपर मुस्लिम समाज को गौर करने की जरूरत है.
प्रोग्राम में बोलते हुए असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि जब तक यह शब्द (मदरसा) रहेगा, तब तक बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के बारे में नहीं सोच पाएंगे. अगर आप बच्चों से कहेंगे कि मदरसों में पढ़ने से वे डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनेंगे, तो वे खुद ही जाने से मना कर देंगे.
सरमा ने दावा किया कि बच्चों को ऐसे धार्मिक स्कूलों में प्रवेश देना मानवाधिकारों का उल्लंघन है. बाद में जब मामले ने धार्मिक रंग ले लिया सरमा ने अपनी सफाई दी और कहा कि मदरसों में शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि वे छात्रों को भविष्य में कुछ भी करने का विकल्प दे सकें.
वो बातें जो सरमा की नीयत पर सवालियां निशान लगा रही हैं!
प्रोग्राम के बाद सरमा ने पत्रकारों से बात की और कहा कि किसी भी धार्मिक संस्थान में प्रवेश उस उम्र में होना चाहिए, जिसमें वे (बच्चे) अपने फैसले खुद ले सकें. अब सवाल ये है कि क्या ये बात केवल मुसलमानों पर लागू होती है? क्या सरमा यही विचार उन लोगों के लिए भी रखते हैं जो इस बात के पक्षधर हैं कि जब बच्चे छोटे हों तभी से उन्हें संघ और शाखा से जोड़ देना चाहिए. सवाल ये भी है कि वो तमाम स्कूल जो अपने पाठ्यक्रम में गीता और रामायण शामिल कर रहे हैं क्या बच्चों की उम्र ध्यान में रख रहे हैं?
गौरतलब है कि सरमा ने इस बात पर भी बल दिया कि व्यक्ति चाहे तो अपने घर पर बच्चों को घंटों कुरान पढ़ा सकता है लेकिन स्कूल में बच्चा विज्ञान और गणित पढ़ाए जाने का हकदार है. बिलकुल सही बात है कितना अच्छा होता कि सरमा यही बातें अन्य धर्मों की किताबों के लिए भी कहते. जिस तरह उन्होंने कुरान को टारगेट किया साफ़ है कि वो सिलेक्टिव हैं जो कि उनके चरित्र को सवालों के घेरे में डालता है.
प्रोग्राम में जब यह उल्लेखित किया गया कि मदरसों में जाने वाले छात्र प्रतिभाशाली होते हैं क्योंकि वे मौखिक रूप से कुरान याद करते हैं, तो इसपर शर्मा का ये कहना कि, ‘अगर मदरसा जाने वाला बच्चा मेधावी है, तो यह उसकी हिंदू विरासत के कारण है. अपने आप में सारे जवाब खुद दे देता है और बता देता है कि एक नेता के तौर पर सरमा को शिक्षा पर काम नहीं करना बल्कि हिंदू मुस्लिम की राजनीति करनी है और अपनी राजनितिक रोटियां सेंकनी हैं.
विषय बहुत सीधा है. हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि मदरसों को लेकर सरमा ने कुछ भी गलत नहीं कहा है बिलकुल ऐसा ही होना चाहिए. वाक़ई समान शिक्षा हासिल करने का सबको हक़ है. दिक्कत सरमा के सिलेक्टिव होने से है. चूंकि बात मदरसों और मुसलमानों की निकली है तो सरमा से हम ये पूछकर अपनी बात को विराम देना चाहेंगे कि वो केवल ये बताएं कि मदरसों में रहते हुए मुस्लिम समाज कैसे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकता है? क्या सरकार इस दिशा में कोई काम कर रही है? मुस्लिम समाज में व्याप्त कट्टरपंथ दूर करने के लिए उनका प्लान क्या है.
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