अटल बिहारी वाजपेयी का पहला अध्यक्षीय भाषण जिसने देश में हलचल मचा दी
अटल बिहारी वाजपेयी की नजर में पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों जुड़वा भाई जैसे हैं. एक बराबरी को खत्म करता है और दूसरा आजादी को. वाजपेयी का गांधीवादी समाजवाद पर जोर रहा जिसका मतलब भारतीय जीवन-दर्शन और मूल्यों से है.
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1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद मुंबई में हो रहे पहले अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी का अध्यक्षीय भाषण मुंबई के विशाल समुद्र की लहरों के साथ ऊंचाई को छूने की प्रतियोगिता कर रहा था - 'भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रतिष्ठा नहीं परीक्षा है, सम्मान नहीं चुनौती है और मुझे भरोसा है कि देश की जनता के समर्थन से मैं इस दायित्व को निभा सकूंगा.' मुंबई में उस दिन आसमान साफ था लेकिन मुंबईवासी अटल बिहारी वाजपेयी के अध्यक्षीय भाषण की गर्जना का आसमानी एहसास कर रहे थे. एक ऐसा भाषण जिसने अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय राजनीति में एक अलग पहचान दी, उनके व्यक्तित्व को नया आयाम दिया और भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक अवतरण की भी आकाशवाणी कर दी.
अटल बिहारी वाजपेयी ने मुंबई अधिवेशन की अध्यक्षता की थी.
70 के दशक में आपातकाल खत्म होने के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी. देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बने. तात्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह के बीच लगातार उठते मतभेदों के कारण 1979 में ही जनता पार्टी की सरकार गिर गई. फिर एक एक कर सारे नेता अपने अलग मोर्चे के साथ अलग भी हो गए. जनसंघ के ही नये कलेवर में 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई.
अपने पहले ही अध्यक्षीय उद्बोधन में वाजपेयी ने वो तमाम मुद्दे गिनाए जो आज भी भारतीय राजनीति के लिए नासूर बने हुए हैं. चाहे वो किसानों के नाम पर हो रही राजनीति हो या उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर बहलाने फुसलाने की कोशिश हो. अपने भाषण में वाजपेयी ने जयप्रकाश नारायण के सपने को पूरा करने का संकल्प लिया था क्योंकि उन्हें मालूम था की जनता पार्टी टूटने से सबसे ज्यादा दुखी जेपी ही थे. बकौल वाजपेयी जेपी एक व्यक्ति नहीं संस्थान थे जिनके सिद्धांत और विचारधारा हमेशा बने रहेंगे. वाजपेयी ने कहा - 'मैंने जेपी के अधूरे काम को पूरा करने का व्रत लिया है. भारतीय जनता पार्टी मुठभेड़ की राजनीति कभी नहीं करेगी लेकिन अगर किसी ने उकसाया तो उसका मुहतोड़ जवाब देगी.'
गांधीवादी समाजवाद पर जोर
वाजपेयी ने अपने भाषण में पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों को आड़े हाथों लिया. अटल के अनुसार ये दोनों जुड़वा भाई हैं, एक समानता को खत्म करता है और दूसरा स्वतंत्रता को. उन्होंने गांधीवादी समाजवाद पर जोर दिया जिसका मतलब भारतीय जीवन-दर्शन और मूल्यों से था. वाजपेयी ने भरोसा दिलाया कि भारतीय जनता पार्टी उन उच्च आदर्शों का अनुसरण करेगी. बोले - 'हमें लोगों में नेताओं के प्रति विश्वास पैदा करना होगा तभी एक मजबूत लोकतंत्र का निर्माण हो सकता है.'
वे चाहें तो दिल्ली दरबार में जाकर मुजरा करें
तब बड़े ही सख्त लहजे में वाजपेयी ने कहा, "जिनमें आत्मसम्मान का अभाव हो... वे दिल्ली के दरबार में जाकर मुजरा करें... हम तो एक हाथ में भारत का संविधान और दूसरे में समता का निशान लेकर मैदान में कूदेंगे और पूछेंगे...'
'आत्मसम्मान के अभाव' से वाजपेयी का आशय उन समाजवादी नेताओं और दलों से था जो सत्ता का सुख पाने के लिए इतने आतुर थे कि इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के आगे अपनी राजनीतिक निष्ठा को न्योछावर कर चुके थे.
अंधेरा छटेगा, कमल खिलेगा
वाजपेयी ने बताया, 'हम छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन और संघर्ष से प्रेरणा लेंगे. सामाजिक समता का बिगुल बजाने वाले महात्मा फुले हमारे पथ-प्रदर्शक होंगे.' आखिर में अटल बिहारी वाजपेयी गरजते हुए से बोले - भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं - 'अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा.'
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न-आईचौक)
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