इजरायल को लेकर अटल बिहारी वाजपेई ने जो कहा था, वो 'वक्त की मांग' थी
1977 के आम चुनाव से पहले दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद शाह बुखारी ने मुसलमानों से इंदिरा गांधी को हराने की अपील की थी. जब उन्होंने ये अपील की थी, उस दौरान उनके साथ आरएसएस के कई नेता भी मौजूद थे. जनसंघ के वजूद में आने के बाद से ही उस पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाया जाता रहा.
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इजरायल फिलिस्तीन संघर्ष (Israel Palestine Conflict) को एक हफ्ते से ज्यादा समय हो गया है. दोनो पक्षों की ओर से जानलेवा हमले किए जा रहे हैं. इन सबके बीच सोशल मीडिया पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण का एक वीडियो वायरल हो रहा है. जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने फिलिस्तीन का स्पष्ट रूप से समर्थन करते हुए इजरायल को आक्रमणकारी बताया था. भाषण में वाजपेयी कहते नजर आते हैं कि 'अरबों की जिस जमीन पर इजराइल कब्जा करके बैठा है, वो जमीन उसको खाली करना होगी'. इस वीडियो के सहारे भारत के कई बुद्धिजीवी भारत सरकार को नसीहत देने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. हालांकि, इजरायल-फिलिस्तीन हिंसा पर भारत पहले ही दोनों पक्षों से यथास्थिति में एकतरफा बदलाव न करने की अपील कर चुका है. वैसे, अटल बिहारी वाजपेयी का ये भाषण 1977 में जनता पार्टी की विजय रैली का है. उनके इस बयान के कई निहितार्थ हैं. जिसके हिसाब से कहा जा सकता है कि इजरायल को लेकर अटल बिहारी वाजपेई ने जो कहा था, वो 'वक्त की मांग' थी.
(वीडियो में 20:56 से 23:00 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष पर अपनी बात खुलकर रखी थी.)
जनता पार्टी की 'खिचड़ी' सरकार
अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण पर बात करने से पहले 1977 में बनी जनता पार्टी की 'खिचड़ी' सरकार के बारे में जान लेते हैं. देश में लगे आपातकाल के बाद 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण यानी जेपी के नेतृत्व में जनता पार्टी का निर्माण किया गया था. जनता पार्टी में कई विचारधाराओं और छोटे-बड़े दलों का संगम हुआ था. जनसंघ (जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बनी) का विलय भी जनता पार्टी में कर दिया गया था. 1977 के आम चुनाव से पहले दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद शाह बुखारी ने मुसलमानों से इंदिरा गांधी को हराने की अपील की थी. जब उन्होंने ये अपील की थी, उस दौरान उनके साथ आरएसएस के कई नेता भी मौजूद थे. जनसंघ के वजूद में आने के बाद से ही उस पर मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगाया जाता रहा. लेकिन, वक्त की नजाकत को भांपते हुए जनसंघ के नेताओं ने अपने दल का जनता पार्टी में विलय किया था. ये सभी राजनीतिक दल तमाम तरह की विचारधाराओं की सीमा से ऊपर उठे थे, जिसकी एक साझा वजह थी आपातकाल. आपातकाल के खिलाफ बने माहौल को ध्यान में रखते हुए ये पार्टी बनाई गई थी. यही वजह थी कि 1979 में ही जनता पार्टी की सरकार धड़ाम हो गई. अलग-अलग नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएंओं ने इस सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी.
जनसंघ का मुस्लिम विरोधी छवि को बदलने का प्रयास
खैर, जनता पार्टी से वापस अटल बिहारी बाजपेयी पर आते हैं. अटल बिहारी वाजपेयी को एक प्रखर और कुशल वक्ता के रूप में जाना जाता है. ऐसे कई किस्से मिलते हैं, जिनमें लोग उनका भाषण सुनने के लिए धूप-बारिश को भूल कर घंटों तक इंतजार करते थे. जनता पार्टी की चुनाव में जीत के बाद हुई विजय रैली में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि 'मेरा संबंध ऐसी पार्टी से रहा है, जिसका हौवा खड़ा करके चुनाव में ये कहा जाता था कि जनता पार्टी पर जनसंघ हावी है और जनसंघ मुसलमानों का दुश्मन है. कोई इस झूठे प्रचार में नहीं आया, यह बड़ी खुशी की बात है.' कहना गलत नहीं होगा कि मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ बनाए रखने के लिए जनता पार्टी के मंच से अटल बिहारी वाजपेयी ने बखूबी इस्तेमाल किया था. आम चुनाव के बाद जनता पार्टी की राज्यों में भी सरकारें बनीं और ये सब कुछ संभव हुआ, उसी गठजोड़ से जिसकी घोषणा अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी. जनता पार्टी में रहते हुए जनसंघ के नेताओं ने अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को बदलने की भरपूर कोशिश की थी.
वाजपेयी ने कहा था कि आक्रमणकारी, आक्रमण के फलों का उपभोग करे, ये हमें अपने संबंध में स्वीकार नहीं है. जो नियम हम पर लागू हैं, वो औरों पर भी लागू होगा
इजरायल के सहारे 'कश्मीर' को साधा
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच में स्थायी शांति का हल खोजने के लिए गलतियों को दूर करने की बात कही थी. उन्होंने कश्मीर का संदर्भ लेते हुए कहा था कि 'आक्रमणकारी, आक्रमण के फलों का उपभोग करे, ये हमें अपने संबंध में स्वीकार नहीं है. जो नियम हम पर लागू हैं, वो औरों पर भी लागू होगा'. कई दलों की सरकार को चलाने के लिए जिस तरह के वक्तव्य की जरूरत होती है, अटल बिहारी बाजपेयी ने वही बात कही थी. जनता पार्टी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री रहे थे. इस स्थिति में सवाल उठना जायज है कि क्या इतने बड़े नेता को इस बात का जरा सा भी भान नहीं होगा कि जो संयुक्त राष्ट्र इतना समय बीत जाने के बाद कश्मीर का हल नहीं निकाल पाया, वो इजरायल-फिलिस्तीन विवाद का क्या हल निकालेगा. वैसे, वर्तमान में कश्मीर से धारा 370 उन्हीं के नेतृत्व में बने राजनीतिक दल भाजपा द्वारा हटा दी गई है और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में वहां की आवाम को पाकिस्तानी हुकूमत के अत्याचारों का प्रतिरोध करने के लिए भाजपानीत भारत सरकार की ओर से सहयोग भी दिया जा रहा है.
इजरायल की सत्ता को नकारा नहीं था
अटल बिहारी वाजपेयी ने फिलीस्तीन का समर्थन किया था, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन, उन्होंने इजरायल की सत्ता को भी नकारा नहीं था. वाजपेयी ने अपने भाषण में विदेश नीति के एक मंझे हुए जानकार की हैसियत से कहा था कि 'इजरायल के अस्तित्व को सोवियत रूस, अमेरिका ने भी स्वीकार किया है. हम भी स्वीकार कर चुके हैं'. उनके इस कथन से यह साफ हो जाता है कि वह फिलिस्तीन के समर्थन में भी थे और मुस्लिम देशों से घिरे इजरायल के भी बने रहने के पक्षधर थे. इजरायल को आक्रमणकारी बताने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में वक्त की मांग के हिसाब से भाषण दिया था. देश का मुस्लिम समाज अटल बिहारी वाजपेयी के इस भाषण से राज्यों में भी जनता पार्टी का साथ देता रहा. राजनीति में गठबंधन सरकार की अपनी कुछ अंतर्निहित मजबूरियां होती हैंं. वैसे, उन्होंने अपने भाषण की पहली ही लाइन में स्पष्ट कर दिया था कि 'आदरणीय मोरारजी भाई स्थिति को स्पष्ट कर चुके हैं. गलतफहमी को दूर करने के लिए मैं कहना चाहता हूं कि हम हर एक प्रश्न को गुण और अवगुण के आधार पर देखेंगे'. इसका सीधा सा मतलब यही निकलता है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने मौके की नजाकत और मिश्रित सरकार में मतभेदों को खत्म करने के लिए ही ये कहा था.
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