पंजाब में हिंदू संगठनों से जुड़े नेताओं की हत्याएं बड़ी साजिश का संकेत
पूर्व की बादल सरकार हो या वर्तमान की अमरिंदर सरकार, दोनों ने ही इस समस्या को हल्के में लिया है. दोनों ने ही इन हत्याओं को क़ानून व्यवस्था का मुद्दा समझा. जबकि ये हत्याएं आतंकवादी साजिश का हिस्सा हैं.
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पिछले 2 सालों में पंजाब में विभिन्न हिंदू संगठनों से जुड़े 17 नेताओं की हत्या कर दी गई है. सोमवार दोपहर को कुछ अज्ञात लोगों ने सरेआम हिंदू संघर्ष सेना के विपिन शर्मा की अमृतसर में गोली मार कर हत्या कर दी. हत्या की वारदात स्थल के पास ही लगे सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो गई है. कैप्टेन अमरिंदर सिंह की सरकार बनने के बाद यह तीसरी हत्या है.
सीसीटीवी में कैद हुआ हत्याकांड का विचलित कर देने वाला वीडियो-
तेरह दिन पहले लुधियाना में आरएसएस के नेता रविंदर गोंसाई की हत्या ठीक उनके घर के बाहर कर दी गई थी.
पंजाब में निशाने पर हिंदू नेता- कुछ उदाहरण-
30 अक्टूबर 2017 - हिंदू संघर्ष सेना के विपिन शर्मा की अमृतसर में गोली मार कर हत्या.
17 अक्टूबर 2017 - आरएसएस नेता रविंदर गोंसाई की लुधियाना में हत्या.
14 जनवरी 2017 - श्री हिंदू तख्त के ज़िला अध्यक्ष की लुधियाना में हत्या.
6 अगस्त 2016 - आरएसएस नेता जगदीश गगनेजा की जालंधर में हत्या.
23 अप्रैल 2016 - शिव सेना नेता दुर्गा प्रसाद गुप्ता की खन्ना में हत्या.
पंजाब को बचाना है तो राजनीति को पीछे रखें
हिंदू संगठनों से जुड़े नेताओं की हत्याओं के पीछे धार्मिक कट्टरवाद जिम्मेदार है. पुलिस और अन्य सरकारी जांच एजेंसियों के अनुसार इन हमलों के लिए खालिस्तानी उग्रवादी संगठन ज़िम्मेदार है. 26 सितंबर 2017 को लुधियाना से आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सात उग्रवादियों को पकड़ा गया था. पुलिस पूछताछ में इन आतंकवादियों ने यह बात कबूली थी की उनके लक्ष्य पर खालिस्तान का विरोध करने वाले हिंदू नेता हैं.
खालिस्तान के मुद्दे को ताज़ा रखने का प्रयास किया जा रहा है. पंजाब के कट्टरवादी नेता हों. पाकिस्तान की आइएसआइ या कनाडा-ब्रिटेन में कार्यरत आतंकी संगठन हो. सब पंजाब में अलगाववाद को बढ़ावा देना चाहते हैं. उनकी कोशिश राज्य में धर्म के आधार पर तनाव और भय का वातावरण बनाना है. बब्बर खालसा इंटरनेशनल जैसे उग्रवादी संगठनों की मदद पाकिस्तान करता रहा है. वहीं उनकी आर्थिक जरुरत कनाडा-ब्रिटेन से पूरी होती है.
पूर्व की बादल सरकार हो या वर्तमान की अमरिंदर सरकार, दोनों ने ही इस समस्या को हल्के में लिया है. दोनों ने ही इन हत्याओं को क़ानून व्यवस्था का मुद्दा समझा. जबकि ये हत्याएं आतंकवादी साजिश का हिस्सा हैं. पंजाब बड़ी मुश्किल से आतंकवाद के दंश से बाहर निकला है. पंजाब को दोबारा 1980 के दशक में ले जाने की साजिश हो रही है. यदि इन हत्याओं का सिलसिला नहीं रुका तो परिणाम राज्य और देश दोनों के लिए हानिकारक होंगें.
राज्य सरकार और केंद्र सरकार की यह जवाबदेही बनती है कि वह इस समस्या को रोकने का इंतजाम करे. पंजाब की अमरिंदर सरकार का दायित्व है कि वह राज्य में इस खूनी खेल को बंद कराने में पूरी शक्ति से काम करे. दूसरी ओर केंद्र की मोदी सरकार का कर्तव्य है कि वह उग्रवादी संगठनों की फंडिंग और मिलने वाले विदेशी समर्थन को रुकवाए.
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