औरंगजेब रोड हो या कलाम रोड....दौड़ेंगी तो गाड़ियां ही
शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है. लेकिन अब तो नाम ही ब्रांड है. कौन सा नाम मार्केट में है, यह मायने रखता है. आप उस नाम के साथ जुड़िए...लोग आपके साथ भी जुड़ते चले जाएंगे.
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'इंसान नाम में मजहब ढूंढ लेता है'.....कहने को तो यह 'ए वेडनसडे' फिल्म का डायलॉग है, लेकिन हर दौर के लिए सटीक. हम अमूमन ऐसा ही करते हैं. नाम सुनते ही सबसे पहले मजहब का ख्याल आ जाता है. और फिर नाम पर सियासत करना भी तो जरूरी है. इसलिए करीब-करीब हर सरकार, चाहे वह राज्य की हो या केंद्रीय, अपने-अपने हिसाब से शहरों, सड़कों, पार्क आदि का नामकरण करती रही है. यह चलन नया नहीं है. बहरहाल, इस देश में हिंदूओं की पार्टी की छवि वाली बीजेपी सरकार ने बहुत सोच-समझ कर दिल्ली के औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का नाम चस्पा कर दिया.
वैसे, मुगलों के बाद, अग्रेजों के शासन में भी नाम बदलने का तामझाम चलता रहा है. आजादी के बाद हम भी ऐसा ही करते रहे हैं अपनी खोई पहचान वापस हासिल करने की दलील देकर. इसी कोशिश में हमने बॉम्बे को हमने मुंबई किया, कलकत्ता अब कोलकाता बन गई और बैंगलोर बेंगलुरू. ऐसे ही उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार के दौरान कई जिलों के नाम बदले गए. लेकिन समाजवादी पार्टी के सत्ता में आते ही पिछली सरकार के कई फैसले पलटे भी गए.
औरंगजेब रोड बन गया एपीजे अब्दुल कलाम रोड
अब दिल्ली के औरंगजेब रोड का नाम बदलकर उसे एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया जाएगा. यह फैसला NDMC की ओर से आया. कुछ दिन पहले यह खबर आई थी इस बारे में कोई फैसला आ सकता है. लेकिन दिलचस्प बात यह कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी देर नहीं की और एक ट्वीट कर दिया. इशारों ही इशारों में वह भी क्रेडिट लेने से नहीं चूके.
Congrats. NDMC jst now decided to rename Aurangzeb Road to APJ Abdul Kalam Road
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 28, 2015
वैसे, औरंगजेब रोड के नाम को बदलने की मांग कोई नई नहीं है. पिछले साल भी एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद कुछ संगठनों ने इस रोड का नाम गुरु तेग बहागुर के नाम पर रखने की मांग की थी. भारतीय जनमानस में मूल रूप से औरंगजेब की छवि किसी क्रूर शासक की तरह है जो अपने पिता को बंदी बनाकर राजा बनता है और हिंदूओं तथा दूसरे संप्रदाय के लोगों पर जुल्म करता है. अब भला, औरंगजेब का नाम हटाकर कलाम का नाम चस्पा करने से किसे आपत्ति हो सकती थी.
हालांकि AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जरूर यहां भी एक के बाद एक ट्वीट कर अपनी आपत्ति जताई. लेकिन फिर भी विरोध करने वालों की संख्या बहुत कम है. शायद कलाम का नाम एक वजह है. सरकार और NDMC को भी पता था कि कलाम का नाम विरोधियों को पस्त कर ही देगा.
Will @ArvindKejriwal read the true facts about Aurangzeb rha Start a science Scholarship in Delhi Schools Kalams name pic.twitter.com/CGltyGcDny
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 28, 2015
When we can have Prithvi ,Agni ,Aakash missiles why not have a missile named after missile man Kalam Missile
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 28, 2015
Why can't GOI start a scholarship to promote science amongst Dalits & Muslim students called Kalam Science Scholarship why only a Road
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 28, 2015
Go ahead, rename Aurangzeb Road. Our view of medieval Indian history is already communalised https://t.co/RkhWBNRC0A via @scroll_in
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 28, 2015
कुछ और लोगों ने भी नाम बदलने को इतिहास से छेड़छाड़ करने की कोशिश से जोड़ कर देखा है. अब औरंगजेब ने तो खुद इस सड़क का नाम अपने नाम पर तो रखा नहीं था. इसलिए, भला इतिहास से छेड़छाड़ कैसे हो गया?
औरंगाबाद का नाम बदलने की राजनीति
कुछ मामलों में जरूर जानबूझ कर नाम बदलने और ध्रुविकरण की कोशिश होती रही है. मसलन, औरंगाबाद का उदाहरण लीजिए. कहा जाता है कि महाराष्ट्र का औरंगाबाद शहर औरंगजेब ने ही बसाया था. यहां 30 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. शिवसेना की ओर से बाला साहेब ठाकरे ने 1985 में ही इस शहर का नाम बदलकर शिवाजी के बेटे सांभाजी के नाम पर 'सांभाजीनगर' रखने की मांग की थी. करीब 80 के दशक के मध्य से ही यहां के नगर निकाय पर शिवसेना का प्रभाव रहा है. जब 1995 में पहली बार शिवसेना सत्ता में आई तो औरंगाबाद शहर के नाम को बदलने का प्रस्ताव भी किया गया. बाद में इसे कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने की बात कही. ऐसे ही महाराष्ट्र के एक और जिले उस्मानाबाद का नाम बदलने की बात भी बीच-बीच में उठाई जाती रही है.
नाम में क्या रखा है
अंग्रेजी के मशहूर लेखक शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है. लेकिन शेक्सपियर ने जब यह बात कही होगी तब का समय कुछ और था. अब तो नाम ही ब्रांड है. कौन सा नाम मार्केट में है, यह मायने रखता है. आप उस नाम के साथ जुड़िए.....लोग आपके साथ भी जुड़ते चले जाएंगे. बस!
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