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Updated: 29 सितम्बर, 2017 01:02 PM
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अयोध्या को बीजेपी अब मेन एजेंडे में नहीं रखती, लेकिन मंदिर आंदोलन को वो भूलने भी नहीं देना चाहती. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की अयोध्या में खास रुचि लेने की मुख्य वजह यही है. इस दिवाली बीजेपी और योगी की दिलचस्पी का नमूना भी नजर आने वाला है.

बीजेपी के इस खास आयोजन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाइक के साथ साथ पूरा सरकारी अमला अयोध्या में जमा होने वाला है.

दिलचस्प बात ये है कि अयोध्या का कार्यक्रम दीपावली पर नहीं, बल्कि उससे एक दिन पहले रखा गया है - और उसी तरह के कार्यक्रम बीजेपी ने पूरे प्रदेश के लिए तैयार कर रखा है.

अयोध्या में सरकारी दिवाली

दीपावली का मुख्य समारोह अव्वल तो अयोध्या में ही बनता है. मान्यता भी है कि चौदह साल के वनवास के बाद जब भगवान श्रीराम लौटे तो अयोध्या को दीपों से सजाया गया था - और आगे से उसी दिन हर साल दीपावली मनायी जाने लगी.

अयोध्या में बीजेपी का दिवाली आयोजन धार्मिक कम और राजनीतिक ज्यादा लगता है. ये इस बात से भी साबित हो जाता है कि त्योहार के दिन विशेष पूजा के लिए योगी को गोरखपुर मंदिर में होने वाली विशेष पूजा में शामिल होना है. इसलिए अयोध्या में सरकारी दिवाली एक दिन पहले ही मना ली जाएगी.

yogi adityanathअयोध्या में एक दिन पहले ही दिवाली...

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस मौके पर सरयू किनारे की इमारतों को खास तौर पर सजाया जाएगा, लेकिन कानूनी अड़चनों के चलते राम जन्मभूमि के विवादित स्थान के आस पास इसका कोई असर नहीं दिखेगा.

अयोध्या के कार्यक्रम के सरकारी दिवाली लगने की एक वजह और भी है. बीजेपी ने निकाय चुनावों के लिए कई कार्यक्रम तय किये हैं और उन्हीं में से एक 18 अक्टूबर का भी कार्यक्रम है. चुनावी रणनीति के तहत बीजेपी ने तय किया है कि उस दिन पूरे प्रदेश में 'ज्योति उत्सव' मनाया जाये और लोगों को बताया जाये कि केंद्र की मोदी सरकार और सूबे की योगी सरकार ने कौन कौन से उल्लेखनीय काम किये हैं. साथ ही, सभी कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि वे गुब्बारे वाली लालटेन और दीप उड़ाकर लोगों बीजेपी से जुड़ने का संदेश भी दें.

बीजेपी की बाकी चुनावी तैयारियां

देखा जाये तो बीजेपी की कमान संभालते ही महेंद्र नाथ पांडेय चुनावी जीत की सफलता का स्वाद चख चुके हैं. ये था विधान परिषद उपचुनाव जिसमें मुख्यमंत्री और उनके चार साथी निर्विरोध चुन लिये गये. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इसकी पूरी तैयारी पहले ही कर रखी थी. क्रेडिट चाहें तो महेंद्र नाथ पांडेय ले सकते हैं. नये बीजेपी अध्यक्ष की असली चुनावी परीक्षा तो तब होगी जब फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव होंगे. वैसे चुनाव तो चुनाव होते हैं चाहे किसी भी स्तर पर क्यों न हों. वैसे भी अमित शाह के स्वर्णिम काल के एजेंडे में पंचायत से पार्लियामेंट तक के चुनाव बराबर अहमियत रखते हैं. चुनावी लड़ाई के तौर पर देखें तो निकाय चुनाव काफी अहम हो जाते हैं. अगर लोक सभा और विधानसभा के चुनाव स्कूलों के सालाना और छमाही इम्तिहान समझे जायें तो ये बीच बीच में होने वाले टेस्ट हैं. हाल के गुरुग्राम चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं देखे गये. इसे राम रहीम को सजा होने के बाद सिरसा और पंचकूला में हुई घटनाओं को हैंडल करने में सीएम मनोहर लाल खट्टर की नाकामी से जोड़ा गया. हालांकि, बीजेपी ने निर्दलीयों को मिलाकर जरूरी नंबर हासिल कर लिये हैं.

फिलहाल बीजेपी 'स्वच्छता ही सेवा है' स्लोगन के साथ स्वच्छता अभियान चला रही है - जिसकी वार्ड स्तर पर भी गतिविधियां दो अक्टूबर तक चलेंगी. दो अक्टूबर को होने वाले मैराथन को भी अब पार्टी ने चुनावी अभियान से ही जोड़ दिया है.

इसी तरह 13 से 15 अक्टूबर तक बीजेपी घर घर संपर्क अभियान चलाने वाली है जिसका नारा है - 'चलो विकास का दीप जलाएं, अपने वार्ड में भाजपा लाएं'. 29 सितंबर से बीजेपी कार्यकर्ताओं को 'घर-घर जाओ, वोट बढ़ाओ' अभियान के तहत लोगों से फॉर्म भरवा कर बीएलओ के पास जमा कराने को कहा गया है.

बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) ने भी अपनी अलग चुनावी तैयारी शुरू कर दी है. पार्टी की संयोजक और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल खुद जिला स्तर पर इस बात की पैमाइश कर रही हैं कि किसे मैदान में उतारा जाये, खासकर उन इलाकों में जहां पार्टी का मजबूत जनाधार है.

बीजेपी का शाम-ए-अवध कार्यक्रम तो पूरी तरह कामयाब रहा, अब शाम-ए-अयोध्या की बारी है. विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ की रामलीला में शामिल हुए थे - और अब नवंबर में होने वाले निकाय चुनावों से पहले सीएम योगी अयोध्या में दिवाली मनाने जा रहे हैं.

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