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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 20 सितम्बर, 2019 10:06 PM
आईचौक
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अभी तो ऐसा लग रहा है जैसे अयोध्या मसले को लेकर बीजेपी से ज्यादा उसके समर्थक एक्टिव हैं? लेकिन ये कौन से समर्थक हैं, ये समझना ज्यादा जरूरी है. बीजेपी के ये वे समर्थक हैं जो अयोध्या मसले पर सिर्फ सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. सोशल मीडिया से इतर वो कितने सक्रिय रहेंगे, नही मालूम. शायद बीजेपी नेतृत्व को भी नहीं मालूम.

सवाल ये है कि क्या ऐसे समर्थकों की सक्रियता तब भी वैसे ही आक्रामक बनी रहेगी जब बीजेपी इन्हें कारसेवा के लिए अयोध्या कूच करने को कहे? 1992 और 2019 में बड़ा फर्क हो गया है - वक्त ही ही नहीं जमाना भी काफी बदल चुका है. कहना मुश्किल है. समझना भी मुश्किल ही है.

2011 के अन्ना हजारे के रामलीला मैदान आंदोलन को जरा याद करें. भ्रष्टाचार के खिलाफ जुटे लोगों के बारे में राय यही बनी थी कि अन्ना हजारे की लड़ाई को वो भीड़ वहीं तक सपोर्ट कर रही थी, जहां तक उसे वीकेंड पर तफरीह का मजा आ रहा था. याद कीजिए जब अन्ना हजारे ने जब सरकार के न मानने पर जेल भरो आंदोलन शुरू करने बात कह डाली थी तो कैसे टीम अन्ना के सदस्यों के चेहरे पर हैरानी नजर आने लगी थी. दरअसल, वे जान रहे थे कि वहां जुटी भीड़ जेल भरो आंदोलन करने वाली नहीं है - क्योंकि कैंडल मार्च और जेल भरो आंदोलन में फर्क होता है.

लगता है बीजेपी नेतृत्व अयोध्या मामले को भी अब इसी नजरिये से देख रहा है - क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बयानों में इसकी बहुत साफ झलक देखने को मिल रही है. सुप्रीम कोर्ट को लेकर अमित शाह का साल भर पुरानी बातें सुनें और ताजा बयान से तुलना करें तो पूरी तरह अलग तस्वीर नजर आ रही है.

मोदी-शाह के मैसेज को समझना जरूरी है

अक्टूबर, 2018 की बात है. अभी साल भर भी नहीं हो पाये हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अमित शाह की तब के नजरिये और अभी की राय में बहुत बड़ा फासला देखा जा सकता है.

तब पूरे देश में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हो रही थी. एक पक्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में खड़ा रहा, तो दूसरा पक्ष विरोध में. बीजेपी दूसरे पक्ष के साथ खड़ी हो गयी थी.

आम चुनाव की तैयारियों में व्यस्त अमित शाह केरल के दौरे पर गये थे. कन्नूर में अमित शाह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जतायी - और सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी - 'जिनका पालन हो सके, वही फैसले सुनाए कोर्ट और सरकार'

बीजेपी के एक कार्यक्रम में अमित शाह बोले, 'सरकार और कोर्ट को ऐसे आदेश देने चाहिए, जिनका पालन हो सके. उन्हें आदेश ऐसे नहीं देने चाहिए जो लोगों की आस्था का सम्मान न कर सकें. आर्टिकल 14 की दुहाई दी जाती है और 25 व 26 के तहत धर्म के अनुसार रहने का मुझे अधिकार है.' फिर सवाल दाग दिये, 'एक मौलिक अधिकार दूसरे को नुकसान कैसे पहुंचा सकता है?'

हिंदी दैनिक अखबार हिंदुस्तान के साथ इसी हफ्ते इंटरव्यू में अमित शाह का पूरा जोर इसी बात पर नजर आता है कि हर सूरत में सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होकर ही रहेगा.

अमित शाह से 'हिंदुस्तान' का सवाल रहा - 'अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर बनने के पक्ष में आता है तो क्या आप स्थितियों से निपटने के लिए तैयार हैं?

अमित शाह का जवाब रहा - 'मंदिर मुझे नहीं बनाना है. सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर से जिस ट्रस्ट के पास जमीन जाएगी, उसके हिसाब से कार्रवाई आगे बढ़ेगी.'

modi shah loses charm in ayodhya issueअयोध्या मुद्दे में मोदी-शाह की दिलचस्पी कम क्यों होने लगी?

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अमित शाह आगे कहते हैं, 'अदालत का जो भी फैसला आता है, वो अंतत: सबको स्वीकारना पड़ता है.'

ये क्या अमित शाह के रूख में कोई बदलाव आया है? क्या नजरिये में ये बदलाव अयोध्या मसला आम चुनाव में होल्ड करके सत्ता में वापसी के बाद आया है? क्या आगे से अमित शाह ये बिलकुल नहीं बोलेंगे कि सुप्रीम कोर्ट को कैसा फैसला सुनाना चाहिये? क्या अमित शाह को अब वो फैसला भी मंजूर होगा जो 'पालन करने योग्यट न भी हो?

अमित शाह के इस बयान को समझने की कोशिश करें तो ऐसा लगता है जैसे वो मंदिर समर्थकों को खिलाफ भी फैसला आने पर सवाल नहीं उठाने वाले!

अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों को समझने की कोशिश करते हैं. 1 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी का एक इंटरव्यू आया और उसमें उन्होंने अयोध्या मसले पर जो बात कही उसे संघ प्रमुख मोहन भागवत के मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने की मांग का जवाब समझा गया. इंटरव्यू में मोदी ने साफ कर दिया था कि सरकार अपना निर्णय तभी लेगी जब सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना देगा.

अगर अमित शाह के सबरीमाला वाले फैसले पर भाषण को देखें तो मोदी का जवाब उन पर भी लागू होता है. शायद प्रधानमंत्री मोदी का ये बयान ही आगे चल कर आम चुनाव के दौरान मंदिर मुद्दे को होल्ड करने के फैसले का आधार भी बना.

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीचों बीच प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में कहा, 'कुछ बड़बोले लोग अयोध्या राम मंदिर को लेकर अनाप-शनाप बयान देना शुरू कर देते हैं, देश के सभी लोगों के मन में सुप्रीम कोर्ट का सम्मान होना जरूरी है... मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है... कोर्ट में सभी लोग अपनी बात रख रहे हैं... ऐसे में ये बयान बहादुर कहां से आ गए? मैं ऐसे बयान बहादुर लोगों को हाथ जोड़कर निवेदन करता हूं कि भगवान के लिए, भगवान राम के लिए भारत की न्याय प्रणाली में विश्वास रखें और आंख बंद करके कुछ भी अनाप-शनाप न बोलें.'

हाल फिलहाल तो बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी ही ऐसे रहे हैं जो दावा कर रहे हैं कि सु्प्रीम कोर्ट नवंबर में फैसला सुना देखा. फैसला भी मंदिर निर्माण के पक्ष में आएगा और इसी साल मंदिर निर्माण शुरू भी हो जाएगा.

बीजेपी नेता स्वामी का ये बयान भी सुप्रीम कोर्ट से उस खबर के आने से पहले का है जब मालूम हुआ कि अदालत 18 अक्टूबर तक सुनवाई और महीने भर में फैसला सुना सकती है. CJI जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होने जा रहे हैं.

अयोध्या से आगे निकल चुकी है बीजेपी

अयोध्या केस की सुनवाई में अदालती जिरह को लेकर सोशल मीडिया पर गला काट बहस चल रही है. बीजेपी और राम मंदिर समर्थक मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन का नाम ले लेकर निशाना बना रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील राजीव धवन ने मंदिर को लेकर पेश किये गये सबूत, गवाही और इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज की राय को अपनी दलीलों से एक एक कर काटने की कोशिश कर रहे हैं. अदालत की बातें मीडिया के जरिये जब लोगों तक पहुंच रही हैं - तो वे सोशल मीडिया पर राजीव धवन का नाम लेकर बहस कर रहे हैं.

फेसबुक और ट्विटर पर ऐसी पोस्ट भरी पड़ी हैं जिनमें मुस्लिम पक्ष के वकील से कहा जा रहा है - '...वो अपने बाप का सबूत दे.' असल में अनौपचारिक बहसों में राम मंदिर के मुद्दे पर संघ और बीजेपी ने ही ये लाइन ली थी - तर्कों को आस्था और विश्वास जैसी भावनाओं में घोल कर गोल कर देने के मकसद से. अभी तो 5-ट्रिलियन-इकनॉमी को भी आस्था, विश्वास और आकांक्षा से हासिल करने के सपने दिखाये जा रहे हैं और ऐसा हो भी क्यों नहीं - ऐसा नहीं होगा तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप 'हाउडी मोदी' कैसे कहेंगे?

एक दूसरे को ये लोग तसल्ली भी दे रहे हैं - 'चिंता मत कीजिए ऐसे लोग छाती पीटते रह जाएंगे.'

कहा तो यहां तक जा रहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई 'लोगों ने लाइव देख लिया ना तो फिर वो किसी लायक नहीं बचेगा.'

राम जेठमलानी का नाम देश के महानतम वकीलों में शुमार है, लेकिन उनके विवादित कानूनी पैरवियों को भी पेशेवराने अंदाज में लिया गया - राजीव धवन टारगेट पर इसलिए आ जा रहे हैं क्योंकि ये धर्म का मामला है. ऐसी क्यों अपेक्षा है कि एक सीनियर वकील आस्था विशेष की वजह से अपने पेशेवर हुनर का इस्तेमाल छोड़ देगा और केस हार जाएगा?

'ये नये मिजाज का शहर है,' लगता है बीजेपी अपने न्यू इंडिया को ऐसा ही मान कर चल रही है - और इसीलिए थोड़ा फासले से चलने का फैसला कर चुकी है.

सवाल ये है कि क्या बीजेपी नेतृत्व के नजरिये में ये बदलाव 2019 का आम चुनाव पहले के मुकाबले ज्यादा वोट शेयर और सीटें जीतने के बाद आया है?

क्या बीजेपी नेतृत्व को लगने लगा है कि अब चुनाव में धारा 370, तीन तलाक और पाकिस्तान जैसे मुद्दे ट्रेंडिंग-कीवर्ड साबित हो रहे हैं - और अयोध्या राम मंदिर ओल्ड फैशन हो चुका है.

फिर तो समझ लेना चाहिये कि चुनाव से पहले ही मंदिर मुद्दा इसलिए होल्ड कर लिया गया था क्योंकि मंदिर से बड़ा मुद्दा बीजेपी के हाथ नया मुद्दा लग चुका था - राष्ट्रवाद.

अब तो चुनावी वादा निभाते हुए बीजेपी की मोदी सरकार 2.0 ने जम्मू कश्मीर को लेकर धारा 370 को भी हटा दिया है. बीजेपी का ये ऐसा दांव है जिससे पूरा विपक्ष जहां तहां ढेर हो चुका है.

मंदिर अब पूरी तरह ओल्ड फैशन हो चुका है और वो पुरानी पीढ़ी भी कहां रही - नये मिजाज को राष्ट्रवाद खूब भा रहा है. अयोध्या में राम मंदिर को बीजेपी ने मुद्दा तब बनाया था जब खड़े होने के लिए उसे कोई सहारा नहीं मिल पा रहा था. वैसे भी बीजेपी ने तो एनडीए की सरकार बनाने के लिए चुनाव घोषणा पत्र तक में इसे शामिल नहीं किया - और अब तो जरूरत ही कहा रही?

1991 में आडवाणी ने जो रथयात्रा की थी. बीजेपी अब उससे काफी आगे निकल चुकी है - और वैसे भी योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या कर ही दिया है. अब और क्या चाहिये भला?

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