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Updated: 16 अगस्त, 2016 07:45 PM
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लाल किले से छोड़ी गयी बलूचिस्तान मिसाइल का व्यापक असर देखने को मिल रहा है. पाकिस्तान ने न सिर्फ बलूच नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है, बल्कि भारत के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता की फिर से पेशकश की है.

देश के अंदर की बात करें तो कांग्रेस भी बैकफुट पर आ गयी है - वरना, विदेश मंत्री रह चुके अपने नेता की बात काटने के लिए बयान देने की जहमत नहीं उठानी पड़ती.

लेकिन क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिर्फ इतने भर के लिए बलूचिस्तान का मुद्दा उठाया है? या मोदी की निगाह कहीं और है?

ब्रांड मोदी फिर से

दिल्ली में शिकस्त खाने के बाद, बिहार से सबक लेकर बीजेपी ब्रांड मोदी को लेकर असम में सूझबूझ से काम लिया. असम से यूपी पहुंचते ही फिर चेहरे का टोटा पड़ने लगा. जिन चेहरों पर कयास लगाये जा रहे थे वे शंटिंग में भेज दिये गये हैं - जो नजर आ रहे हैं वो 'खद्योत सम जहं तहं करत प्रकाश' के लेवल से ऊपर नहीं उठ पा रहे. ऐसा नहीं है कि बीजेपी यूपी में अखिलेश यादव, मायावती और अब शीला दीक्षित को चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही, लेकिन वो बनारस में केजरीवाल जैसा दुस्साहस भी नहीं दिखाना चाहती. बीजेपी को येन केन प्रकारेण यूपी चुनाव जीतना है, बिलकुल वैसे ही जैसे समाजवादी पार्टी, बीएसपी या फिर कांग्रेस को.

ऐसी हालत में ले देकर बीजेपी को फिर से ब्रांड मोदी का ही ध्यान आ रहा है.

ये ठीक है कि दिल्ली और बिहार में ब्रांड मोदी का करिश्मा काम नहीं आया. ये ठीक है कि बिहार में न तो दादरी और न ही डीएनए फैक्टर काम आया. लेकिन लोक सभा के बाद वही ब्रांड पूरा महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और आधा कश्मीर बटोर लिया, है कि नहीं?

अगर नई पैकेजिंग के साथ उसे फिर से मार्केट में उतार दिया जाये तो लोगों का क्या, वे तो यूं भी गुजरते वक्त के साथ सब बातें भूल ही जाते हैं.

ये मिसाइल ब्रह्मास्त्र है

सलमान खुर्शीद यूपीए सरकार में विदेश मंत्री रह चुके हैं - जब भी बीजेपी की फॉरेन पॉलिसी या पाकिस्तान से संबंधित मामले उठते हैं तो कांग्रेस उन्हें बतौर एक्सपर्ट मैदान में उतार देती रही है. कम से कम इस मामले में उन्हें दिग्विजय सिंह और मणिशंकर अय्यर से तो ज्यादा ही तवज्जो मिलती रही है. बलूचिस्तान पर खुर्शीद ने ये सोच कर तो बोला नहीं होगा कि पार्टी उनकी बात को नामंजूर कर देगी, लेकिन हुआ तो वही.

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कांग्रेस प्रवक्ता ने सामने आकर साफ तौर पर, जोर देकर कहा कि बलूचिस्तान पर कांग्रेस सरकार के साथ है और खुर्शीद की राय निजी मानी जानी चाहिये.

कांग्रेस की मजबूरी भी थी. आखिर सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस ने सरकार के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया था. अब पीछे हटती तो कैसे? वैसे भी खुर्शीद ने बलूचिस्तान और पीओके का फर्क ही तो समझाने की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस को समझ आया कि इससे गलत मैसेज जाएगा. बीजेपी की कोशिश वैसे भी ऐसे मुद्दों पर विपक्ष को तार तार करने की ही रहती है. कांग्रेस ने वक्त रहते इस राजनीतिक चाल को समझ लिया, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो इसके चक्रव्यूह से पूरी तरह बच चुकी है.

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"समझने वाले समझ रहे होंगे..."

बलूचिस्तान, बीजेपी सरकार की ओर से छोड़ी गई कोई आम मिसाइल नहीं ब्रह्मास्त्र है - क्योंकि इसके अनलिमिटेड फायदे हैं. प्रधानमंत्री मोदी की ओर से चलाया गया ये सबसे कारगर हथियार है.

ध्रुवीकरण तो होगा

बीजेपी पर ज्यादातर धर्म को लेकर और कभी कभी जाति को लेकर भी ध्रुवीकरण के आरोप लगते रहे हैं, अगर आरक्षण पर मोहन भागवत के बयान को किसी खास रेफरेंस में देखा जाये तो.

इस फेहरिस्त में मुजफ्फरनगर से लेकर दादरी तक को शुमार किया जाता रहा है. अब बलूचिस्तान का जो मामला उछाला गया है वो ऐसा है कि इस पर न तो धर्म न ही जाति को लेकर उंगली उठायी जा सकेगी - और असर चौतरफा होगा.

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राष्ट्रवादी और देशद्रोही की बहस भले ही थोड़ी नरम पड़ गयी हो, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. जेएनयू को लेकर जगह जगह बवाल और पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में वकीलों का उत्पात बहुत पहले की बात नहीं है.

बीजेपी जानती है कि मुस्लिम वोट उसे मिलेंगे नहीं और मायावती का वोट बैंक उन्हें छोड़ेगा नहीं, थोड़ा बहुत ऊंच नीच होने का स्कोप तो नेचुरल है. ऐसे में बीजेपी चाहती है कि कम से कम मिडिल क्लास एकजुट हो जाए - वो ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया आदि का भेदभाव भूल कर सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रवादी बन जाए.

देश की बात होगी तो बीजेपी पर कोई सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का इल्जाम भी नहीं लगा पाएगा. मुलायम सिंह यादव या नीतीश-लालू भी नहीं. कांग्रेस की ओर से आया बयान इसकी पहली मिसाल है.

ऊपर से नैशनलिज्म का मुद्दा लोगों को एकजुट करने में हिंदुत्व के एजेंडे जैसा ही प्रभावी है - राजनीतिक रूप से तो कहीं ज्यादा ही असरदार है.

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