New

होम -> सियासत

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 नवम्बर, 2021 06:51 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
  • Total Shares

त्रिपुरा में हुए इन तथाकथित सांप्रदायिक दंगों के विरोध में महाराष्ट्र के कई शहरों में मुस्लिम संगठनों ने बंद का ऐलान किया था. इस दौरान कुछ जगहों से हिंसा की खबरें सामने आई थीं. वहीं, अमरावती में माहौल ज्यादा बिगड़ने की वजह से कर्फ्यू लगाया जा चुका है. महाराष्ट्र में हुई इस हालिया घटना ने एक बार फिर से 2012 में मुंबई के आजाद मैदान में भड़की हिंसा की यादों को ताजा कर दिया है. वैसे, इन घटनाओं में एक बात कॉमन है कि दोनों ही विरोध-प्रदर्शनों का आयोजन रजा अकादमी की ओर से किया गया था. इस पर आगे बात आगे करेंगे. लेकिन, इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि बांग्लादेश की आग त्रिपुरा से होते हुए महाराष्ट्र तक पहुंचाने में दोष किसका है?

13 अक्तूबर को बांग्लादेश के कुमिल्ला शहर में एक दुर्गा पूजा पंडाल में एक मुस्लिम शख्स ने मूर्तियों के पैरों पर कुरान शरीफ रख दी. सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल हुए और कुछ ही देर बाद बांग्लादेश के कई शहरों-कस्‍बों में तोड़फोड़ और हिंदुओं के साथ दुर्गा पूजा पंडाल पर हमले हुए थे. इस घटना के खिलाफ त्रिपुरा में विश्व हिंदू परिषद ने रैली निकाली. इस दौरान दो समुदायों के बीच कुछ झड़प हो गईं. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर दुकानों, घरों और धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ के आरोप लगाए. माहौल बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया पर मस्जिदों में तोड़फोड़ और आगजनी की फर्जी तस्वीरें शेयर की गईं.

पुलिस ने सोशल मीडिया पर स्थिति को ना बिगाड़ने के लिए अपील जारी की. इस दौरान त्रिपुरा पुलिस ने पत्रकारों सहित 102 सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (UAPA) के तहत कार्रवाई की. त्रिपुरा के हालात को सुर्खी बनाने में नेता भी पीछे नहीं रहे. राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि 'त्रिपुरा में मुसलमानों के साथ क्रूरता हो रही है.'

त्रिपुरा हिंसा मामले पर भी स्थानीय लोगों और इन 102 सोशल मीडिया यूजर्स ने लगातार सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचनाएं फैलाईं. इन लोगों के बचाव में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) की ओर से की गई निंदा ने आग में घी का काम किया.

Bangladesh s communal fire came to Maharashtraमाहौल बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया पर मस्जिदों में तोड़फोड़ और आगजनी की फर्जी तस्वीरें शेयर की गईं.

कब होगा जिम्मेदारी का अहसास?

आज के समय में सोशल मीडिया एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है. फर्जी ज्ञान वाली वॉट्सएप यूनिवर्सिटी से लेकर फेक खबरों से भरे ट्विटर तक जहां हर ओर सूचनाओं का इस्तेमाल अपनी विचारधारा, जाति, धर्म, राजनीतिक प्रतिबद्धताओं जैसी चीजों के लिए खुलेआम किया जा रहा हो, वहां भ्रम फैलाने में ज्यादा समय नहीं लगता है. ऐसी घटनाओं पर कोई एक आम शख्स से लेकर देश के बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट्स वर्ग के कुछ लोग बड़ी आसानी से माहौल को बिगाड़ने में जुट जाते हैं.

बीते महीने लखीमपुर खीरी में भड़की हिंसा के बाद अचानक फेसबुक और वॉट्सएप बंद होने के बाद ट्विटर पर एक बड़ा वर्ग ये कहते पा जा रहा था कि केंद्र सरकार ने जान-बूझकर इन सोशल मीडिया माध्यमों पर रोक लगा दी है. खैर, हमारे देश में ऐसी किसी भी घटना पर लोगों से इस तरह का जिम्मेदारी भरा व्यवहार करने की अपेक्षा करना सिर्फ मूर्खता ही कहा जाएगा. ये तमाम लोग जानते-बूझते हुए भी देशहित को किनारे रखते हुए स्वहित में पूरे जी-जान से माहौल खराब करने में जुट जाते हैं.

हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने वाली जानकारियों के सहारे लोगों को भड़काने का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है. बीते एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन की वजह से कई बार देश का माहौल खराब बिगड़ने की स्थिति तक पहुंच चुका है. आसान शब्दों में कहें, तो एक देश के तौर पर भारत के खिलाफ बाह्य ताकतें अब छोटे-छोटे आंतरिक मुद्दों के जरिये हावी हो रही हैं.

आमतौर पर ऐसी हर घटना के बाद लोग राजनीति और धर्म के कॉकटेल पर जिम्मेदारी डालकर खुद को बचा ले जाते हैं. लेकिन, अहम सवाल ये है कि ऐसी घटनाओं के लिए लोगों को जिम्मेदारी का अहसास कब होगा? और, इस जिम्मेदारी का भार किसी एक पक्ष पर नहीं डाला जा सकता है. अगर किसी मामले पर लोगों की भावनाएं आहत होती हैं, तो इस देश के संविधान और कानून किस लिए बनाए गए हैं? देश में हर वर्ग की धर्मांधता जिस तेजी से बढ़ रही है, वो सांप्रदायिक सद्भाव को चुटकियों में निगल सकती है.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो लोगों की भावनाएं भड़काने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई ही इस धर्मांधता को कम कर सकती है. क्योंकि, अभिव्यक्ति की आजादी और रचनात्मकता के नाम पर हमारे देश में लोगों के बीच जहर घोलने वालों की कमी नहीं है. किसी की आस्था से जुड़े मामलों पर अपनी रचनात्मकता या अभिव्यक्ति की आजादी थोपना किसी भी हाल में सही नहीं कहा जा सकता है.

फोर्थ जेनरेशन वारफेयर बन चुकी है सिविल सोसाइटी

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने एक कार्यक्रम में कहा कि राजनीतिक और सैन्य उद्देश्यों को हासिल करने के लिए युद्ध अब सीधा जरिया नहीं रह गए हैं. युद्ध लड़ना महंगा है और इसके नतीजे भी अनिश्चित हैं. किसी देश के राष्ट्रीय हितों को चोट पहुंचाने के लिए अब सिविल सोसाइटी को निशाना बनाया जाता है. सिविल सोसाइटी फोर्थ जेनरेशन वॉरफेयर बन चुकी है. दरअसल, सांप्रदायिक मामलों या दंगे जैसी स्थिति में सिविल सोसाइटी के जरिये इन मुद्दों को लेकर प्रॉपेगेंडा फैलाया जाता है. जो सीधे तौर पर लोगों के बीच न भरने वाली दरार पैदा करता है. सिविस सोसाइटी यानी नागरिक समाज में एक्टिविस्ट्स, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, एनजीओ वगैरह आते हैं. क्या आज के समय में कोई इस बात की गारंटी दे सकता है कि फलां एक्टिविस्ट या बुद्धिजीवी या कोई भी शख्स निष्पक्ष होकर किसी घटना के बारे में जानकारियां दे रहा है. 

कोई किसी से कम नहीं...

महाराष्ट्र में हालिया हिंसा के बाद चर्चा में आई रजा अकादमी ने अगस्त, 2012 में म्यांमार और असम में मुस्लिमों के खिलाफ हुई हिंसा को लेकर मुंबई के आजाद मैदान में एक रैली का आयोजन किया था. जिसमें कुछ भड़काऊ भाषणों के बाद भीड़ हिंसक हो गई. इस दौरान मैदान के बाहर अमर जवान ज्योति को भी नुकसान पहुंचाया गया था. इस हिंसा में दो लोग मारे गए थे और दर्जनों लोग घायल हुए थे. जनवरी, 2020 में रजा अकादमी के प्रमुख सईद नूरी ने कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी ना होने की जांच करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखा था. पैगंबर मोहम्मद का कार्टून बनाने वाले स्वीडिश कार्टूनिस्ट लार्स विक्स की मौत के बाद रजा अकादमी ने उनकी मौत का जश्न मनाया था.

वहीं, हिंदू संगठनों की बात करें, तो हाल ही में वेब सीरीज आश्रम की टीम पर बजरंग दल की ओर से किए गए हमले और सेट पर मचाए गए उत्पात को किसी भी हाल में जस्टिफाई नहीं किया जा सकता है. 2018 में करणी सेना द्वारा फिल्म 'पद्मावत' को लेकर संजय लीला भंसाली पर किए गए हमले और एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की नाक काटने की धमकी दी थी. अब्बास अली जफर की वेब सीरीज 'तांडव' को लेकर भी भरपूर विवाद हुआ था. जिसके बाद इससे जुड़ी टीम ने माफी मांगते हुए तमाम आपत्तिजनक दृश्यों को हटा दिया था. इस वेब सीरीज पर भगवान शिव का मजाक उड़ाकर हिंदुओं की भावनाओं पर ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था.

वैसे, इस देश के नागरिक के तौर पर हर शख्स की ये जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे तमाम मामलों पर खुद की ओर से एक्टिव होने की जगह कानूनी प्रक्रिया को अपनाने की ओर बढ़े. लेकिन, भारत में ऐसा होना आसान नजर नहीं आता है. हालांकि, अभी भी हमारे देश में धर्मांधता से ऊपर सांप्रदायिक सद्भाव को तवज्जो दी जाती है. जिसे देखकर इस बात की आशा की जा सकती है कि धर्म को लेकर नफरत की राजनीति करने वाले लोग आसानी से कामयाब नहीं होंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय