राहुल गुरु! बनारस के कांग्रेसियों की व्यथा सुनिए, नाराज हैं आपसे
वाराणसी में जिस तरह राहुल गांधी का मेनिफेस्टो देखकर खाटी कांग्रेसियों ने कांग्रेस छोड़ी है वो ये साफ बताता है कि आम लोगों को कांग्रेस का मेनिफेस्टो समझ में नहीं आया है और वो राहुल गांधी के रवैये से खासे नाराज हैं.
-
Total Shares
बनारस भले पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के रूप में जाना जाता हो, लेकिन यह शहर किसी व्यक्ति से पहचान के लिए मोहताज नहीं है. खास बात यह कि इस अल्हड़ मिजाज और बेलौस बोल वाले शहर में सब गुरु हैं, चेला कोई नहीं. शायद इसीलिए, जब पानी सर से गुजरने की नौबत आ जाए तो आम बनारसी भी भगवान शंकर की तरह अपना त्रिनेत्र खोल रंग में आ जाता है.
बनारस एक समय कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन स्व कमलापति त्रिपाठी के साथ ही शहर में कांग्रेस की बादशाहत भी खत्म हो गई. अब स्व कमलापति की परम्परा नहीं कमल का राज है. कमल का फूल आजादी की लड़ाई के समय से ही राष्ट्र और राष्ट्रावाद का प्रतीक माना जाता है.
कांग्रेस के मेनिफेस्टो से बनारस के लोग खासे खफा हैं
बनारसियों में भी राष्ट्रावाद कूट-कूट कर भरा है. माहौल भी कुछ ऐसा बना है कि इस समय पूरे देश मे राष्ट्रवाद उफान पर है. कुछ लोग जेनुइनली राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम प्रकट कर रहे हैं तो कुछ इसकी लहरों पर सवार होकर अपनी नैया पार लगा रहे हैं. लेकिन लगता है राहुल गांधी जी राष्ट्रप्रेम की भावना को चंद लोगों के चलते हल्के में ले बैठे हैं. इसी का नतीजा है कि बनारस में उनकी पार्टी के दो पदाधिकारियों ने बड़े ही धीरे से उनको जोर का झटका दिया है.
राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कांग्रेस के श्रम प्रकोष्ठ के डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट और वाइस- प्रेसिडेंट ने लकुटी कमरिया राहुल जी को वापस सौंप दी है. दो दिन पहले शहर में कांग्रेस के मजबूत स्तम्भ माने जाने वाले श्रम प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष अरविंद मिश्रा पार्टी के घोषणा पत्र से बहुत नाराज हुए और इस्तीफा दे दिया. पूछने पर उन्होंने बताया कि जिस तुष्टिकरण के चलते पार्टी 400 से 44 पर सिमट गई, इस बार के घोषणापत्र में फिर वही मुद्दे ले आए.
उनका मानना है कि जब पूरा देश नेशन फर्स्ट के सिद्धान्त पर चल रहा है तो पार्टी देशद्रोह कानून को लचीला करने का वादा कर रही है. उनके मुताबिक कांग्रेस बेबी संगठन है, जिसमें केवल बड़े नेताओं की बड़ी फैमिलीज के बेबीज को बढ़ावा मिलता है. आम कार्यकर्ता की बात सुनने वाला कोई नहीं. बस इसी मुद्दे पर उन्होंने अपना 'लव लेटर बम' कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भेज दिया.
वाराणसी में पुराने कांग्रेसियों का पार्टी छोड़ना चुनाव से पहले राहुल गांधी को बड़ी मुसीबत में डाल सकता है
अभी 24 घंटा नहीं बीता था कि उनके डिप्टी रहे कांग्रेस श्रम प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष अभिषेक पांडेय ने पार्टी से ब्रेकअप कर लिया. अभिषेक पांडेय ने भी कांग्रेस आलाकमान पर देशद्रोह कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी जिस तरह से सैन्य कार्यवाही का सबूत मांग रही है और जिस प्रकार का देशद्रोह हटाने वाला मेनिफेस्टो लेकर आई है उससे मन बहुत ही व्यथित है.
अभिषेक पांडेय ने सीधा-सीधा राहुल गांधी को लपेटे में लिया है. उनके मुताबिक कार्यकर्ताओं के मन की व्यथा को कोई भी व्यक्ति जो नेतृत्व सम्भाल रहा है, वो सुनने के लिए तैयार ही नही है. उनका कहना है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं का महत्व ही नही बचा और कांग्रेस केवल घराने में सिमट कर रह गयी है.
सुन रहे हैं न राहुल जी, अब आपकी पार्टी के लोग ही आप पर देशद्रोहियों के साथ नरमी वाला रवैया बरतने का आरोप लगा रहे हैं. साथ ही बनारस बीजेपी के लोगों की उस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता सिर्फ दरी बिछाने के लिए है. समय है अभी भी, कहीं जमीन ही दरक गई तो दरी कहां बिछेगी हुजूर?
ये भी पढ़ें -
चिदंबरम के ये सवाल तो कांग्रेस की जड़ में मट्ठा डाल रहे हैं...
वायनाड में भाजपा है नहीं, सीपीएम के खिलाफ राहुल बोलेंगे नहीं, तो वहां करने क्या गए हैं?
मायावती ने तो मोदी को राहुल-ममता से आगे बढ़कर चैलेंज कर दिया है
आपकी राय