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Updated: 09 जून, 2016 04:44 PM
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आखिरकार न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) में शामिल जिस देश में प्रधानमंत्री पहुंचते है वहां पर क्यों एनएसजी को लेकर चर्चाएं शुरू हो जाती है. क्यों भारत को इस ग्रुप में शामिल करने के लिए स्विट्जरलैंड से लेकर अमेरिका और अब मेक्सिको तक अपना हाथ आगे बढ़ा रहे है.

एनएसजी की सदस्यता लेना भारत के लिए कितना आवश्यक है और इसके मिलने से भारत को क्या फायदे हो सकते है? आखिर क्यों एनएसजी से जुड़े जिस भी देश में प्रधानमंत्री जा रहे है वहां के राष्ट्राध्यक्ष भारत को शामिल करने के लिए अपना समर्थन देने पर हामी भर रहे है. पहले स्विटजरलैंड, फिर अमेरिका और अब यात्रा के आखिरी पड़ाव पर मेक्सिको से भी भारत को एनएसजी में शामिल किए जाने पर मंजूरी मिल गई है.

क्या है एनएसजी? एनएसजी 48 देशों का वह अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसका मकसद परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और सदस्य देशों द्वारा मिलकर परमाणु संयंत्र के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन कार्य पर जोर देना है. ऊर्जा उत्पादन का ये कार्य परमाणु सामग्री के आदान प्रदान से ही संभव है इसलिए केवल शांतिपूर्ण काम के लिए इसकी आपूर्ति की जाती है. गौरतलब है कि इस ग्रुप में शामिल होने से लिए पहले भारत को एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफरेशन ट्रीटी) की सदस्यता लेनी होगी. एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है.

एनएसजी की सदस्यता से क्या फायदा सदस्यता मिलते ही भारत परमाणु से जुड़ी सारी तकनीक और यूरेनियम सदस्य देशों से बिना किसी समझौते के हासिल कर सकेगा. सदस्य देशों से काफी मदद मिल सकती है. एनएसजी के सभी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार रहता है जिसका इस्तेमाल वह नए सदस्य को ग्रुप में शामिल करने के लिए कर सकते हैं. लिहाजा, एक बार सदस्य बनने के बाद भारत की अंतरराष्ट्रीय साख में वृद्धि होगी.

भारत में दुनिया का हर छठा व्यक्ति रहता है. लेकिन दुनिया के कुल उर्जा उत्पादन का महज 2 से 3 फीसदी यहां पैदा होता है. लिहाजा, भारत के लिए ऊर्जा की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए इसे एनएसजी का सदस्य बनना बेहद जरूरी है.

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नरेंद्र मोदी और बराक ओबामा

देश मे मौजूदा वक्त में शहरीकरण बढ़ा है जिसके बढ़ने के बाद लोगों को ऊर्जा की खपत की जरुरतों को पूरा करने में यह राह कारगर साबित होगा. भारत के ऊर्जा संकट को खत्म करने और तरक्क़ी की तरफ जाने का यह एक सफल प्रयोग साबित होगा और अब तक भविष्य को लेकर इसकी जो समस्यायें थी, इस संगठन से जुड़कर उसपर निजात पाया जा सकता है. इसमें सफल होते ही भारत विकसित देशों में भी बहुत जल्द ही साबित हो जायेगा और दुनिया के सामने एक मिसाल कायम कर पायेगा.

स्विट्जरलैंड के इस दौरे से मोदी को बड़ा तोहफा मिला है. स्विट्जरलैड ने भारत को एनएसजी सदस्यता देने के लिए अपना समर्थन दे दिया है. गौरतलब है कि जब 1974 में यह ग्रुप बना था तब इसमे महज 7 देश थे – कनाडा, पश्चिम जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, यूनाइटेड किंगडम, और अमेरिका. बाकी देशों को धीरे-धीरे इस ग्रुप में जगह मिलती रही है.

मेक्सिको से भी मिली मंजूरी मेक्सिको ने भी भारत को एनएसजी से जोड़ने के प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी है. प्रधानमंत्री मोदी के पांच दिवसीय विदेश यात्रा का सफल अंतिम दिन साबित हुआ. जब मेक्सिको के राष्ट्रपति ने एनएसजी का सदस्य बनने की दिशा में आगे भारत के बढ़ते हुए कदम से ये साफ दो रहा है कि अब वे दिन दूर नहीं जब भारत इसका सदस्य बनकर देशज समस्यओं से निपटने की पहल कदमी कर चुका होगा. प्रधानमंत्री मोदी का ये विदेश दौरा अपने आप में किसी बड़े बदलाव की शुरूआत से बिल्कुल भी कम नहीं है. क्योकि एनएसजी से जुड़ने के लिए भारत को इसके हर सदस्य देश की मंजूरी चाहिए.

एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम) का सदस्य बना भारत 7 जून को अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री मोदी के बीच जिन मुद्दों पर वार्ता हुई, उसमें एक एमटीसीआर का सदस्य बनने का प्रस्ताव भी था. व्हाइट हाउस में बातचीत के दौरान भारत के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया. एमटीसीआर 35 देशों का एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका काम दुनिया भर में मिसाइल द्वारा रासायनिक, जैविक, नाभिकीय हथियारों के प्रसार पर नियंत्रण रखना है. हालांकि इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग कोई भी देश केवल अपनी सुरक्षा के लिए कर सकता है.

एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत के लिए एनएसजी की सदस्यता हासिल करने में आसानी होगी. एमटीसीआर का गठन 1997 में दुनिया के सात बड़े विकसित देशों ने किया था. बाद में 27 अन्य देश भी इसमें शामिल हुए हैं. भारत एमटीसीआर का सबसे नया और 35वां सदस्य बन चुका है.

एमटीसीआर का सदस्य होने का मतलब एमटीसीआर में शामिल होने के बाद भारत को अपनी मिसाइल तकनीक व प्रक्षेपण से जुड़ी हर जानकारी सदस्य देशों को देनी होगी. सदस्य बनने के बाद भारत के लिए दूसरे देशों से मिसाइल तकनीक हासिल करना आसान हो जाएगा लेकिन अगर भारत किसी दूसरे देश को इस तरह की कोई तकनीक बेचता है या उसका कारोबार करता है तो उसकी पूरी जानकारी सभी सदस्य देशों को देनी होगी.

सबका साथ जरूरी है अब भारत के लिए अहम है कि एनएसजी की सदस्यता को हासिल करने को एक मिशन की तरह लेकर आगे बढ़े. देश की उर्जा जरूरतों के साथ-साथ सुरक्षा और मेक इन इंडिया जैसे कई कार्यक्रमों को इस ग्रुप में शामिल होकर रफ्तार दी जा सकती है.

कौन कौन है भारत के साथ अमेरिका, स्विटजरलैड और मेक्सिको के अलावा एनएसजी के कुछ सदस्य देश भारत के साथ खड़े है. जिनमें फ्रांस, युनाइटेड किंगडम, रूस और जापान है. चीन का समर्थन है लेकिन उसके कुछ शर्तों के साथ. एक बात तो तय है कि सदस्यता के लिए चीन पाकिस्तान को भी दावेदार मान रहा है, शायद पाकिस्तान को भी एनएसजी से जोड़ना उसका शर्त हो. अब भारत बाकी के सारे देशों से समर्थन प्राप्त कर कब इस मुकाम को हासिल कर पाता है, यह उसके सदस्य देशों के साथ संबंधो के बदौलत ही हो सकता है. फिलहाल विदेश रणनीतिकारों का मानना है कि सदस्य देश कभी भी चीन के साथ ध्रुवीकरण नहीं कर सकते. लेकिन एनएसजी की सदस्यता पा लेना केवल भारत के विदेश संबंध पर निर्भर करता है.

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