2024 चुनाव में विपक्ष एकजुट कैसे होगा? विपक्ष की अपनी ढफली, अपना राग है!
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए भारत जोड़ो पदयात्रा कर रहें है. जिसमें वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित कर रहे हैं. मगर उनके यात्रा में भी कई विपक्षी दलों के नेताओं ने शामिल होने से इंकार कर विपक्ष की एकता को पलीता लगा दिया. विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा उठाकर भाजपा 2024 में तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने की योजना बना रही है.
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कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से राहुल को उम्मीद थी कि यात्रा के दौरान कई दल उसके साथ जुड़ेंगे व विपक्ष का नेता बन 2024 में उन्हें ही भाजपा का विकल्प बन प्रधानमंत्री बनने का मौका मिलेगा. पर लगता है यात्रा के समापन 30 जनवरी तक ऐसी कोई उम्मीद नहीं है. वैसे शेरे कश्मीर स्टेडियम के कार्यक्रम के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत लगाई है. लेकिन ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस के तमाम प्रयासों के बावजूद ज्यादातर विपक्षी पार्टियां इससे दूर रही. तभी कांग्रेस ने सफाई दी है कि यात्रा का समापन कार्यक्रम विपक्षी एकता बनाने का अभियान नहीं है. कांग्रेस महासचिव और संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने यह बात की है. जाहिर है कांग्रेस ने राहुल की समापन रैली में बड़े विपक्षी नेताओं की गैरहाजिरी पर उठने वाले संभावित सवालों को पहले ही टालने का बहाना बता दिया है. सवाल है कि अगर यह विपक्षी एकता बनाने का अभियान नहीं है तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्यों 23 विपक्षी पार्टियों के नेताओं को चिट्ठी लिखी और उनको श्रीनगर के समापन कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया? कांग्रेस इसे अपना ही कार्यक्रम रखती या ज्यादा से ज्यादा यूपीए के घटक दलों को न्योता देती. लेकिन कांग्रेस ने यूपीए से बाहर की भी लगभग सभी विपक्षी पार्टियों को न्योता भेजा. आम आदमी पार्टी, भारत राष्ट्र समिति और डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के अलावा करीब करीब सभी विपक्षी पार्टियों को खड़गे ने चिट्ठी लिखी.
भले ही भारत जोड़ो यात्रा राहुल को फायदा दे दे लेकिन इससे विपक्ष पर कोई खास असर नहीं पड़ा
अब इनमें से कोई पार्टी समापन कार्यक्रम में नहीं शामिल हो रही है. बिहार में कांग्रेस की सहयोगी जनता दल यू के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारत जोड़ यात्रा और समापन रैली को लेकर कहा कि वह कांग्रेस का अपना अभियान है. जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा ने भी खड़गे को चिट्ठी लिख कर यात्रा को शुभकामना दी लेकिन शामिल होने से मना कर दिया. इनके अलावा खड़गे ने जिन लोगों को चिट्ठी लिखी थी उनमें से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस आदि कोई भी पार्टी 30 जनवरी के समापन कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई.
सबसे हैरानी की बात है कि त्रिपुरा में कांग्रेस से तालमेल करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां भी यात्रा में शामिल नहीं हो रही हैं. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से राहुल गांधी के बहुत अच्छे संबंध हैं लेकिन उन्होंने कांग्रेस की यात्रा में कहीं भी अपनी पार्टी को नहीं शामिल किया. इसी तरह का मामला बिहार की सबसे पुरानी सहयोगी राजद का भी है. उसकी ओर से भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि उसका कोई नेता राहुल के कार्यक्रम में शामिल होता है या नहीं.
कांग्रेस की तमाम सहयोगी पार्टियों या यूपीए के घटक दलों के भी बड़े नेता यात्रा में शामिल होने नहीं जा रहे हैं. तभी कांग्रेस की ओर से पहले ही पोजिशनिंग की जा रही है कि इसका मकसद विपक्षी एकता बनाना नहीं है. अब यह सवाल उठना लाजमी है कि अधिकतर दल उनके कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले रहे है तो उनका मकसद क्या है ? देखा जाय तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को जुटाने की कोशिश की है.
उनकी रैली में केजरीवाल, भगवंत मान और अखिलेश यादव समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता पहुंचे, जिससे ये साफ संकेत जाता है कि केसीआर एक ऐसा मोर्चा बनाने की कोशिश में हैं जो गैर कांग्रेसी हो. हम इसे कई नजरिए से देख सकते हैं. केसीआर ने अपनी पार्टी भारत राष्ट्र समिति की एक मेगा रैली की, जिसमें विपक्ष के ऐसे नेता पहुंचे जिन्हें कांग्रेस ने न्योता नहीं दिया था. वहीं ऐसे नेता भी केसीआर के साथ दिखे जिन्हें कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए न्योता दिया था. ये भारतीय राजनीति में काफी अहम वक्त है. इस वक्त सभी ये चाहेंगे कि कहीं न कहीं उनकी जगह बनी रही.
केसीआर की काफी पहले से ये कोशिश रही है कि भाजपा के खिलाफ वो अपना दम दिखाएं और लोगों को जुटाकर आगे की इच्छाओं को पूरा करें.केसीआर के साथ केरल के सीएम पिनराई विजयन, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान जैसे नेताओं का पहुंचना काफी दिलचस्प है. वहीं ये भी काफी खास बात है कि सीपीआई के डी राजा भी वहां पहुंच जाते हैं. सवाल ये उठता है कि एक तरफ कांग्रेस ने उन्हें भारत जोड़ो यात्रा के लिए न्योता दिया है, वहीं दूसरी तरफ वो लोग केसीआर के साथ पहुंच जाते हैं.
इससे यही साफ होता है कि सभी दल अपने-अपने दांव बचाकर रखना चाहते हैं.एक बात और है साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं. वहां, केसीआर की सरकार है और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस है. भाजपा भी तेलंगाना में अपना आधार बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रही है. भाजपा की हाल ही में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जेपी नड्डा ने जिन 9 राज्यों में जीत का लक्ष्य रखा है, उसमें तेलंगाना मुख्य रूप से है. क्योंकि, इससे भाजपा के लिए साउथ की राह आसान हो जाएगी.
ऐसे में के सी आर नहीं चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वे ऐसे किसी गठबंधन में शामिल हो, जिसमें कांग्रेस या भाजपा शामिल हो. इस पूरी पिक्चर में लेफ्ट फ्रंट की रणनीति को भी समझने की जरूरत है. एक तरफ तो लेफ्ट फ्रंट का कुछ हिस्सा त्रिपुरा में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ केसीआर की रैली में जा रहे हैं. ऐसे में लेफ्ट फ्रंट की मनोस्थिति समझने की जरूरत है. क्या लेफ्ट फ्रंट अलग चलने की कोशिश कर रहा है या फिर दोनों नाव में पैर रखने की कोशिश में है. लेफ्ट अपने अस्तित्व को बचाने की भी कोशिश में जुटा है.
कुल मिलाकर लेफ्ट अपनी सही जगह तलाशने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस से इतर थर्ड फ्रंट बनाने की सिफारिश करने वाले नेताओं में ममता बनर्जी का नाम सबसे ऊपर आता है. लेकिन, ममता बनर्जी का के सी आर की रैली में न शामिल होना कई सवाल खड़े कर रहा है. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी के सी आर के नेतृत्व में खड़े हो रहे थर्ड फ्रंट में वामदलों की एंट्री से खफा हैं. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में वामदल ममता बनर्जी की खिलाफत करता है. लिहाजा, ममता बनर्जी नहीं चाहती कि थर्ड फ्रंट में वामदल की एंट्री हो.
क्योंकि, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी राजनीति वामदलों के खिलाफ ही की और उन्ही की राजनीति को पछाड़ते हुए अपनी राजनीति चमकाई. चर्चा यह भी है कि उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अंदर खाने तालमेल हो गया है. जिसके चलते वह विपक्ष से अलग हटकर अपना अलग ही राग अलापने लगी है. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कुछ दिनों पूर्व अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर विपक्षी दलों को झटका दिया है. मायावती ने कहा है कि वह किसी भी राजनीतिक दल से चुनावी गठबंधन नहीं करेगी.
कांग्रेस ने असम में अपने गठबंधन सहयोगी सांसद बदरुद्दीन अजमल की आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी से गठबंधन को समाप्त कर दिया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बदरुद्दीन अजमल असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के इशारों पर कांग्रेस को कमजोर करने का काम कर रहे हैं. यह सब कुछ ऐसी ताजा घटनाएं है जो देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करेगी. विपक्ष की राजनीति कर रहे कुछ दलों को कांग्रेस से आपत्ति है. वह कांग्रेस व भाजपा से समान दूरी बना कर रखना चाहते हैं.
हालांकि केरल, त्रिपुरा में वामपंथी दल और कांग्रेस आमने-सामने चुनाव लड़ते हैं. मगर पश्चिम बंगाल व देश के अन्य प्रदेशों में एक साथ गठबंधन कर लेते हैं. समाजवादी पार्टी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से गठबंधन करने से इंकार कर दिया था.इस कारण कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा था. तमिलनाडु में पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में द्रमुक ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. जिसमें दोनों ही दलों को जबरदस्त सफलता मिली थी. द्रमुक को विधानसभा में अकेले ही बहुमत मिलने के कारण उसने राज्य सरकार में कांग्रेस को अभी तक शामिल नहीं किया है.
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल व जनता दल यूनाइटेड की सरकार में कांग्रेस भी शामिल है. मगर कांग्रेस को सत्ता में नाम मात्र की हिस्सेदारी मिली है. जिससे बिहार के कांग्रेसी नेता संतुष्ट नहीं है.पिछले विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र में शिवसेना नेता उद्धव बालासाहब ठाकरे ने भाजपा को दूर कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के साथ मिलकर एक नया प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार बनाई थी. जो सफलतापूर्वक चल भी रही थी. मगर शिवसेना के कुछ नेताओं द्वारा बगावत करने के कारण अघाड़ी सरकार गिर गई थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र सरकार का नेतृत्व करते हुए करीबन पौने नौ साल का समय हो चुका है. वह बिना किसी चुनौती के एक छत्र राज कर रहे हैं.हालांकि कई प्रदेशों में क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत है तथा वहां उनकी सरकार चल रही है. मगर केंद्र से मिलने वाले लाभ की बदौलत कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं यथा उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी सहित अन्य कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र सरकार से अघोषित समझौता कर रखा है. जब भी केंद्र को शक्ति प्रदर्शन करने की जरूरत होती है तो विपक्षी दलों के कई नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़े नजर आते हैं.
ये नेता किसी भी पार्टी से चुनावी गठबंधन नहीं करना चाहते हैं. पूर्वात्तर राज्यों की क्षेत्रीय पार्टी के नेता भी आर्थिक हितों के चलते केन्द्र सरकार को नाराज नहीं करना चाहते हैं. इससे विपक्ष की राजनीति कमजोर होती है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी के जनाधार को मजबूत करने के लिए भारत जोड़ो पदयात्रा कर रहें है. जिसमें वह भाजपा विरोधी सभी दलों के नेताओं को आमंत्रित कर रहे हैं. मगर उनके यात्रा में भी कई विपक्षी दलों के नेताओं ने शामिल होने से इंकार कर विपक्ष की एकता को पलीता लगा दिया. विपक्षी दलों की आपसी फूट का फायदा उठाकर भाजपा 2024 में तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने की योजना बना रही है. यदि विपक्षी दलों की सिर फुट्टवल इसी तरह चलती रही तो भाजपा को लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है.
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