New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 25 जून, 2016 11:14 AM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
  • Total Shares

दो साल पहले केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार बनी थी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की जुबां पर हर तरफ इस बदलाव के पीछे अपने परिश्रम पर फख्र था. भगवा परिवार में ऐसी खुशी देश की आजादी के बाद पहली बार मिली थी. जिस आजादी में सियासी वजहों से तीन-तीन बार आरएसएस को प्रतिबंधों की मार सहनी पड़ी, उसी सियासत के सर्वोच्च सिंहासन पर स्वयंसेवक प्रधानमंत्री पूरी ताकत के साथ बैठेगा, इसकी झलक मात्र देखकर कितने ही स्वयंसेवकों की आंखें अपनी कुर्बानी को याद कर नम हो आईं.

और दो साल बाद तस्वीर मोदी सरकार के लिए, बीजेपी समर्थकों के लिए उतनी ही खुशगवार नहीं रह गई है. नागपुर में उसी जमीन से मोदी सरकार के विरुद्ध स्वयंसेवकों ने ताल ठोक दी है, जिस जमीन पर गर्मी की तपिश में महीने भर तक पसीना बहाकर संघ के स्वयंसेवक अपने संगठन के प्रशिक्षण में सबसे मुश्किल संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष की ट्रेनिंग पूरी करते हैं.

नागपुर के रेशिमबाग में संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार के समाधि मंदिर के सामने मौजूद उसी भवन में 23 जून से 24 जून तक आरएसएस से जुड़े बीएमएस के मजदूर स्वयंसेवकों ने दो दिन में 16 घंटे तक लगातार आठ सत्रों में जो मंथन किया, उसमें मोदी सरकार के खिलाफ हलाहल विष ज्यादा उगला गया. साफ तौर पर संकेत भेजा गया कि मोदी सरकार के अमृत का रास्ता इस हलाहल विष में से होकर ही आगे बढ़ेगा.

bms-650_062516105149.jpg
 मोदी सरकार से मजदूर संघ के टकराव को रोक पाएगी RSS? 

भारतीय मजदूर संघ के 52 प्रमुख केंद्रीय पदाधिकारियों ने दो दिन तक चली इस बैठक में हिस्सा लिया. मोदी सरकार की आर्थिक नीति के हर पहलू पर गहराई से विचार विमर्श किया. इस पूरी प्रक्रिया में आरएसएस की ओर से खुद सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले मौजूद रहे. पहले दिन और दूसरे दिन दो सत्रों में दत्तात्रेय होसबले ने भी देश के आर्थिक हालात पर चर्चा में हिस्सा लिया और भारतीय मजदूर संघ के नेताओं का मार्गदर्शन ऐसा किया कि बीएमएस की पूरी केंद्रीय टोली ने एक सुर से मोदी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पासकर भविष्य के संघर्ष का रास्ता प्रशस्त कर दिया. सूत्रों के मुताबिक, ‘मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलन का प्रस्ताव उनकी मौजूदगी में लिखा गया और प्रस्ताव की तल्ख भाषा और हर पंक्ति पर दत्तात्रेय होसबले ने अपनी मंजूरी प्रदान की.’

आरएसएस से जुड़े मजदूर नेताओं के इस नागपुर चिंतन का नतीजा मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है. भारतीय मजदूर संघ ने एजेंडा साफ कर दिया है कि मजदूर हितों के सवाल पर केंद्र सरकार को अब और ज्यादा प्रयोग करने की छूट नहीं दी जाएगी. बीएमएस ने इस लिहाज से 8 जुलाई को देश भर में मोदी सरकार की आर्थिक और श्रमिक नीति के खिलाफ प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है वहीं ये चेतावनी भी दे डाली है कि संसद के मॉनसून सत्र में अगर सरकार का मजदूर विरोधी रवैया नहीं बदला तो भोपाल में 12 से 14 अगस्त तक होने वाली बीएमएस कार्यकारिणी की बैठक में देश व्यापी हड़ताल का फैसला लेने में भी उन्हें अब कोई हिचक नहीं होगी.

भारतीय मजदूर संघ ने नागपुर प्रस्ताव में मोदी सरकार को जिन बातों पर निशाने पर लिया है उनमें अहम मुद्दा इस बात का है कि सरकार बीएमएस से किए गए वायदों से मुकर रही है. प्रस्ताव में कहा गया है कि ‘28 अगस्त 2015 को सरकार ने बीएमएस के साथ श्रमिक हितों को लेकर जो वायदे लिखित में किए, उसे अब सरकार फौरन लागू करे और श्रमिक विरोधी आर्थिक और कानूनी सुधारों को भी फौरन रोका जाए.’

नागपुर बैठक में बीएमएस के अध्यक्ष बैजनाथ राय ने साफ कहा कि ‘मोदी सरकार को मजदूरों की कोई परवाह नहीं है. श्रमिकों की ताकत की बजाए पूंजीपतियों और कॉरपोरेट धनिकों के मकड़जाल पर सरकार को ज्यादा भरोसा है, जिसका मूल उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ श्रमिकों के बेइंतहा शोषण का रास्ता बनाना है.’

यही कारण है कि बीएमएस ने आर्थिक सुधारों के मोदी सरकार के हर कार्यक्रम पर बैठक में करारा हमला किया. प्रस्ताव में साफ कहा गया है कि ‘हर दिन एकतरफा श्रमिक सुधार के नाम पर मजदूर विरोधी फैसले पारित हो रहे हैं. ईपीएफ और ईएसआई पर सरकार ने दोबारा निशाना साधा है, टेक्सटाइल नीति का ताजा प्रस्ताव मजदूर हितों के खिलाफ है, सार्वजनिक उपक्रमों पर नीति आयोग की सिफारिशें, महंगाई, बैंकिंग सुधार, आईएलओ के श्रमिक मापदंड पर नकारात्मक भूमिका, और देश के श्रमिकों के शोषण के लिए एफडीआई के जरिए सस्ते श्रम की खुले शोषण को सरकार प्रोत्साहित कर रही है. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और ठेका श्रमिकों के हालात पहले से ज्यादा विकट हो गए हैं. सरकार खुले तौर पर बड़े औद्योगिक घरानों के साथ खुलकर खड़ी है.’

fdi-650_062516105347.jpg
 

बीएमएस से महामंत्री विरजेश उपाध्याय के मुताबिक, ‘मोदी के राज में श्रमिक हितों की अनदेखी हो रही है तो दूसरी ओर श्रमिक कानून बदलकर उसे औद्योगिक पूंजीपतियों के हितों के अनुकूल बनाया जा रहा है. यह प्रयास असहनीय है. हमारे सामने सरकार ने कोई और रास्ता नहीं छोड़ा है इसलिए हम इस सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन के लिए बाध्य हैं.’

बीएमएस के आंदोलन की त्रिसूत्रीय रणनीतिः

1. पहले चरण में 8 जुलाई को मोदी सरकार की आर्थिक और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन होगा.

2. दूसरे चरण में संसद के मॉनसून सत्र में सांसदों से मिलकर उन्हें मांग पत्र सौंपा जाएगा। संसद में मजदूर विरोधी श्रमिक सुधार और आर्थिक सुधार रोकने की मांग की जाएगी.

3. संसद के मॉनसून सत्र में अगर सरकार का रुख बीएमएस समेत अन्य मजदूर संगठनों की मांगों को लेकर लचीला दिखता है तो उस हिसाब से रणनीति बदलेगी. लेकिन अगर सरकार श्रमिक सुधारों और आर्थिक सुधारों पर नहीं झुकती है तो 12 अगस्त को भोपाल में बीएमएस से जुड़ीं सभी ट्रेड यूनियनों को देश व्यापी हड़ताल का आह्वान किया जा सकता है.

बीएमएस की सरकार से नाराजगी का कारणः

श्रमिक हितों और आर्थिक सुधारों को लेकर भारतीय मजदूर संघ बीते दो साल से लगातार प्रधानमंत्री से सीधी बातचीत की मांग कर रहा है. बीएमएस के संगठन महामंत्री केसी मिश्रा कहते हैं कि प्रधानमंत्री के पास देश और दुनिया के बड़े उद्योगपतियों से मिलने का समय है लेकिन भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधि मंडल से बातचीत करने के लिए उनके पास समय नहीं है. वो हर बात वित्त मंत्री, श्रम मंत्री और पीएमओ के अफसरों पर डालकर बीएमएस से मुलाकात से परहेज कर रहे हैं. तो जब पीएम को ही मजदूर संगठनों से परहेज है तो फिर मजदूर संगठनों के पास भी ऐसी सरकार के तर्कों को सुनने की फुरसत नहीं है जिसमें सारा काम उद्योपतियों के हितों के लिए किया जा रहा है और श्रमिकों के जबर्दस्त शोषण के लिए सारे कानून ढीले किए जा रहे हैं.

बीएमएस और केंद्र सरकार के टकराव में आरएसएस की भूमिकाः

आरएसएस की कोशिश रही है कि भारतीय मजदूर संघ और मोदी सरकार के बीच टकराव के आसार न पैदा हों. लेकिन बीते दो सालों में आरएसएस की कोशिशों के बावजूद बीएमएस और केंद्र सरकार के बीच बातचीत पटरी पर नहीं आ सकी है. बदले हालात में नागपुर की बैठक में आरएसएस के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने बीएमएस को हरी झंडी दे दी है कि वो मोदी सरकार के सामने आंदोलनात्मक तरीके से अपनी मांग रखने के लिए स्वतंत्र है.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय