भीम आर्मी के चंद्रशेखर को योगी सरकार ने यूं ही 'आजाद' नहीं किया है!
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद की जेल से रिहाई की वजह भी वही है जो उन पर रासुका लगा कर जेल में रखने की रही. सवाल ये है कि मायावती को शह देने के लिए उठाया गया योगी सरकार का ये कदम बीजेपी को कोई फायदा पहुंचाएगा भी या नहीं?
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चंद्रशेखर आजाद रावण की रिहाई को लेकर 19 अगस्त, 2018 को संसद मार्ग पर भीम आर्मी के हजारों समर्थकों ने प्रदर्शन किया था. भीम आर्मी के अध्यक्ष विनय रतन सिंह ने तब कहा था कि उनका संगठन मायावती के साथ है - और मायावती को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहता है. सुनने में ये बात काफी अजीब लगती है क्योंकि उसी दौरान जय प्रकाश सिंह भीम आर्मी में शामिल भी हुए. जय प्रकाश सिंह बीएसपी के उपाध्यक्ष थे और राहुल गांधी के खिलाफ बयान देने के लिए मायावती ने पार्टी से निकाल दिया था.
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण को यूपी की योगी सरकार ने रिहा कर दिया है. कानूनी तौर पर उनकी रिहाई नवंबर से पहले संभव नहीं थी, लेकिन तमाम गुणा-गणित से हिसाब लगाते हुए सरकार ने ये फैसला लिया और अब चंद्रशेखर 'आजाद' हो चुके हैं. यूपी पुलिस ने रिहाई की जो वजह बतायी है वो अपनेआप में मजेदार है.
चंद्रशेखर को योगी सरकार ने रिहा क्यों किया?
मीडिया को जारी यूपी पुलिस का बयान कहता है - 'भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण को सिर्फ बदले हालात और उनकी मां के आग्रह की वजह से रिहा किया गया है.'
पुलिस ने जिस बदले हालात का जिक्र किया है वो किस तरह के हालात हैं? क्या हालात बदल जाने से पुलिस किसी आरोपी को रिहा कर देगी? पुलिस जिन हालात का भी जिक्र किया हो, लगते तो वे राजनीतिक हालात ही हैं. पुलिस से तो एक सवाल ये भी बनता है कि कितने आरोपियों को उसने उनकी मां की अपील पर रिहा किया है. वो भी ऐसा आरोपी जो किसी तरह जमानत पर छूट न जाये इसलिए उसे रासुका में बुक कर दिया गया हो.
मई 2017 में सहारनपुर में जातीय दंगा फैलाने के आरोप में चंद्रशेखर के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. उसके बाद भी चंद्रशेखर भीम आर्मी की रैली में दिल्ली पहुंचे थे. बाद में यूपी पुलिस ने हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी से पहले चंद्रशेखर पर ₹ 12 हजार का इनाम भी रखा गया था.
भला कौन सी बदली परिस्थिति की बात कर रही है पुलिस?
चंद्रशेखर को आधी रात के बाद भीम आर्मी के समर्थकों की मौजूदगी में सहारनपुर जेल से रिहा किया गया. अपनी रिहाई के बाद चंद्रशेखर ने कहा - 'सरकार डरी हुई थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में उसे फटकार लगने वाली थी... अपनेआप को बचाने के लिए सरकार ने जल्दी रिहाई का आदेश दे दिया. मुझे पूरी तरह विश्वास है कि वे मेरे खिलाफ दस दिनों के भीतर फिर से कोई आरोप लगाएंगे. मैं अपने लोगों से कहूंगा कि साल 2019 में बीजेपी को उखाड़ फेंकें.' राजनीतिक वजहों के अलावा सुप्रीम कोर्ट में सरकार को किरकिरी का डर भी हो सकता है. चंद्रशेखर को लेकर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाब मांगा था. माना जा रहा है कि पुलिस तीन महीने के लिए सिर्फ एक बार और रासुका लगा सकती थी. फिर तो ऐन चुनावों के बीच चंद्रशेखर को रिहा करना पड़ता और वो बीजेपी सरकार के लिए बड़ी मुसीबतें खड़ी हो जातीं.
चंद्रशेखर से मायावती को फायदा या नुकसान?
5 मई, 2017 को सहारनपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप जयंती पर एक समारोह आयोजित किया गया था. समारोह को लेकर निकाली गयी शोभायात्रा पर दलितों ने आपत्ति जतायी तो तकरार हुआ. पुलिस भी बुलाई गयी लेकिन बेकाबू भीड़ के पथराव में एक ठाकुर युवक की मौत हो गयी. बाद में हजारों की भीड़ शिमलाना में जुटी और तीन किलोमीटर दूर शब्बीरपुर पहुंच कर धावा बोल दिया.
कुछ दिन खामोश रहने के बाद मायावती शब्बीरपुर पहुंचीं और बगैर भीम आर्मी का नाम लिये दलित युवकों को बीएसपी के साथ जुड़ने की सलाह दी, लगे हाथ फायदा भी बता दिया - फिर कुछ भी होगा तो पुलिस परेशान नहीं करेगी. मायावती की सभा से लौट रहे युवकों पर भी हमला हुआ और एक दलित युवक की मौत हो गयी.
भीम आर्मी से मायावती को कितना खतरा?
भीम आर्मी की पैदाइश भी उसी जाटव और गैर जाटव समुदाय में हुई है जो मायावती का ठोस वोट बैंक रहा है. अभी तक ये साफ नहीं है कि चंद्रशेखर मायावती के साथ चले जाएंगे या विरोध में खड़े होंगे? मायावती की सलाह पर भीम आर्मी की ओर से कोई रिएक्शन नहीं आया था. मायावती ने भी बाद में चंद्रशेखर की रिहाई को लेकर कभी खुल कर कुछ बोला नहीं, जैसे वो रोहित वेमुला या दलितों से जुड़े मामलों पर बोलने न देने की बात कर राज्य सभा की सदस्यता तक से इस्तीफा दे डालती हैं.
भीम आर्मी की ओर से सिर्फ मायवती तो नहीं, लेकिन विपक्षी महागठबंधन के सपोर्ट में एक ही बात सामने आयी है - कैराना उपचुनाव में जेल से चंद्रशेखर ने बीजेपी के खिलाफ वोट देने की लोगों से अपील जरूर की थी. गोरखपुर और फूलपुर लोक सभा सीटों के बाद कैराना में बीजेपी की तीसरी हार हुई थी.
चंद्रशेखर के 'आजाद' होने से किसे और कितना फायदा?
कैराना के हिसाब से देखें तो भीम आर्मी सीधे सीधे बीजेपी के खिलाफ और विपक्षी महागठबंधन के साथ खड़ी लगती है. अब सवाल ये उठता है कि भीम आर्मी महागठबंधन का हिस्सा बनती है तो उसकी शर्तें क्या होंगी. चंद्रशेखर से बीजेपी को फायदा तभी है जब भीम आर्मी और बीएसपी एक दूसरे की दुश्मन बनी रहें. ऐसा होने पर वोटों का बंटवारा होगा और बीजेपी को सीधा फायदा.
2019 में चंद्रशेखर की भूमिका क्या होगी?
हो सकता है बीजेपी ये मान कर चल रही हो कि चंद्रशेखर बीएसपी के खिलाफ खड़े हों, जैसा अब तक संकेत मिला है. फिर तो चंद्रशेखर को बीजेपी वैसे ही इस्तेमाल करना चाहेगी जैसे फिलहाल शिवपाल यादव अपने भतीजे अखिलेश यादव और 2015 में जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी.
चंद्रशेखर की रिहाई के पीछे एक बड़ा फैक्टर एससी-एसटी एक्ट पर बीजेपी का घिरा होना भी है. कानून को पुराने स्वरूप में कायम रखने के लिए बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खत्म कर दिया है. मोदी सरकार के इस कदम से सवर्ण समुदाय नाराज हो गया है. फिर भी बीजेपी दलित समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती.
चंद्रशेखर की रिहाई के लिए गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने भी दिल्ली में मार्च किया था - लेकिन वो सिर्फ एक दिन का शो बन कर रह गया. माना गया था कि कांग्रेस मेवाणी के जरिये चंद्रशेखर को अपने साथ या यूपी में प्रस्तावित गठबंधन का हिस्सा बनाना चाहती है.
चंद्रशेखर पर डोरे डालने वालों में तो अरविंद केजरीवाल भी शामिल रहे हैं. केजरीवाल तो सहारनपुर जेल जाकर चंद्रशेखर से मुलाकात करने वाले थे, लेकिन उन्हें परमिशन नहीं मिली. केजरीवाल की पार्टी के मुताबिक कांग्रेस के हरीश रावत जेल में चंद्रशेखर से मुलाकात कर चुके हैं.
यूपी पुलिस ने चंद्रशेखर को रिहा करने की जो वजह बताई है वो बहुत ही बचकानी लगती है - जिस शख्स से देश को खतरा हो, उसे अचानक आजाद कर दिया जाये, ताज्जुब तो होगा ही. जिस आरोपी पर रासुका लगा हो उसे समय से पहले जेल से रिहा कर दिया जाये, फिर हैरानी तो होगी ही. 16 महीने से जेल में बंद किसी आरोपी को रात के ढाई बचे सिर्फ उसकी मां के कहने पर छोड़ दिया जाये, ये बात यूं ही गले के नीचे कैसे उतरेगी भला.
वैसे यूपी पुलिस का क्या, जब वो मौके और दस्तूर को देखते हुए रेप के आरोपी विधायक का नाम बगैर माननीय लगाये नहीं ले सकती, फिर NSA में बुक किसी आरोपी को उसकी मां की अर्जी पर भी रिहा करने की दलील दो दे ही सकती है.
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