मोदी विरोध का नया टूलकिट है वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर भूपेश बघेल की तस्वीर!
एक और पॉलिटिकल टूलकिट भी तैयार हो रहा है - अब तक वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट (Vccination Certificate) पर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की तस्वीर लगी होती थी और बवाल भी खूब हुआ, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में मोदी की जगह भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) का फोटो लगा दिया गया है.
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संबित पात्रा ने न जाने कितनी मशक्कत के बाद वो टूलकिट ट्विटर पर शेयर किया होगा जिसे नाम दिया है - कांग्रेस टूलकिट. जिसे ट्विटर ने 'मैनिपुलेटेड मीडिया' करार दिया और संसद मार्ग थाने में यूथ कांग्रेस नेता ने FIR भी दर्ज करा दी - और अब केंद्र सरकार को जांच के नाम पर ट्विटर को मैनिपुलिटेड कैटेगरी से हटाने की रिक्वेस्ट भेजनी पड़ी है.
ये सवाल अभी अलग है कि क्या जांच के नाम पर ट्विटर या किसी भी सोशल मीडिया फोरम को उसके एक्शन वापस लेने के लिए सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर कहा जा सकता है - और अगर ऐसी व्यवस्था विकसित हो चुकी है तो क्या ट्विटर या कोई भी सोशल मीडिया फोरम भारत सरकार के आदेश को मानने के लिए बाध्य है?
संबित पात्रा को अगर पहले ही मोदी सरकार के विरोध के लिए नये टूलकिट का पता चल गया होता तो शायद वो पहले वाली मुश्किल राह बीच में ही छोड़ देते - अब तक वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट (Vccination Certificate) पर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की तस्वीर लगी हुआ करती थी और बवाल भी खूब हुआ, चुनाव आयोग ने तो आचार संहिता लागू होने तक बैन ही कर दिया था.
अब छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर हटा कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) का फोटो लगा दिया गया है - और उसके पीछे सूबे की कांग्रेस सरकार की दलील भी है. ये दलील भी करीब करीब वैसी ही है जैसी आयुष्मान भारत योजना लागू न करने के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विधानसभा चुनावों से काफी पहले तर्क दिया करती थीं.
वैक्सीन पर छत्तीसगढ़ से शुरू हुई ये सियासत कहां तक आगे जाती है देखना होगा, वैसे देखने में ये आया है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की राजनीति ऑक्सीजन वाली राह छोड़ कर वैक्सीन पर शिफ्ट हो चुकी है - और दिल्ली में नौजवानों के लिए वैक्सीनेशन का काम बंद हो गया है.
वैक्सीन को लेकर अरविंद केजरीवाल के साथ साथ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. अरविंद केजरीवाल के मुताबिक, दिल्ली में हर महीने करीब 80 लाख वैक्सीन की जरूरत है - तभी तीन महीने में दिल्ली में सबको वैक्सीन लगायी जा सकेगी.
जगनमोहन रेड्डी की शिकायत है कि आंध्र प्रदेश में वैक्सीन की सप्लाई सीमित है और वैक्सीनेशन सेवा देने वाले निजी अस्पतालों को वैक्सीन बनाने वालों से सीधे खरीद की अनुमति से सही संदेश नहीं जाता - और वे अनाप शनाप कीमत वसूलते हैं. रेड्डी ने पत्र में लिखा है कि दूसरी राज्य सरकारों की तरह उनकी सरकार ने भी 18-44 साल की उम्र के लोगों को मुफ्त वैक्सीन लगाने का वादा किया है, लेकिन वैक्सीन की कमी के कारण सिर्फ 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को ही टीके लगाने पड़ रहे हैं.
मोदी विरोध का नया तरीका छत्तीसगढ़ में लॉन्च
पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार में बीजेपी का दो बातों पर खास जोर हुआ करता था. एक, ममता बनर्जी केंद्र की मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को राज्य में लागू नहीं करतीं - और दो, लोगों ने अगर राज्य में डबल इंजिन की सरकार बनवा दी तो उनको पूरा फायदा मिलेगा. बीजेपी नेता ऐसे ही दावे किसानों के मामले में भी किया करते थे, जबकि दिल्ली की सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन कर रहे किसानों के छह महीने पूरे होने वाले हैं. मोदी सरकार की जिन योजनाओं का जिक्र बीजेपी नेता करते रहे उनमें से एक आयुष्मान भारत योजना भी है.
पश्चिम बंगाल में आयुष्मान योजना न लागू करने को लेकर केंद्र सरकार के प्रति आक्रामक लहजे में ममता बनर्जी का तर्क हुआ करता रहा, 'आयुष्मान भारत में वो केवल 40 फीसदी देंगे - और क्रेडिट पूरा लेंगे!'
फोटोशॉप वाले आईटी सेल के जमाने में छत्तीसगढ़ से देश में फोटो-पॉलिटिक्स का आगाज हो चुका है!
2019 के आम चुनाव के पहले ही ममता बनर्जी ने एक मीटिंग में साफ साफ बोल दिया था, 'मेरा राज्य आयुष्मान योजना के लिए 40 फीसदी रकम का योगदान नहीं देगा - केंद्र अगर योजना चलाना चाहता है तो उसे पूरे पैसे देने होंगे.' ये तभी की बात है जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बने भी मुश्किल से महीना भर ही हुआ होगा.
ठीक वैसे ही विधानसभा चुनावों के दौरान ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगाये जाने का कड़ा विरोध किया था.
टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सर्टिफिकेट पर मोदी की तस्वीर को आचार संहिता का उल्लंघन होता वैसे ही समझाया था जैसे 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान अंबेडकर पार्कों में हाथियों की मूर्तियों से मतदाताओं के प्रभावित होने के तर्क दिये गये थे - और फिर चुनाव आयोग ने आचार संहिता लागू होने तक पत्थर की मूर्तियों को ढकने का आदेश दिया था.
मोदी की तस्वीर का मसला उठा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही था, लेकिन चुनाव आयोग ने आचार संहिता लागू होने की अवधि के दौरान उन सभी राज्यों में ऐसे सर्टिफिकेट बांटे जाने पर पाबंदी लगा दी थी जिन पर वो फोटो छपे हों. बाकी राज्यों में सर्टिफिकेट की तस्वीर अगर लाइव टीवी पर भी लोगों को नजर आये तो आचार संहिता का उल्लंघन नही होता क्योंकि चुनाव आयोग भी तो पुलिस की तरह अंग्रेजों के जमाने के बनाये नियमों से ही चलता है.
अभी तो विधानसभा चुनाव बीत चुके हैं और अब संबंधित राजनीतिक दल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में लग गये हैं. छत्तीसगढ़ में तो चुनाव होने में अभी दो साल का वक्त बाकी है - 2023 में. अगले आम चुनाव से ठीक पहले.
पूरे देश में जहां कोविन और आरोग्य सेतु के जरिये वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन होते हैं, छत्तीसगढ़ सरकार ने अपना अलग ऐप बनवा रखा है - CGTEEKA. छत्तीसगढ़ में लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए इसी ऐप पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है - और उसके बाद 18-44 साल वाले ग्रुप के लोगों को जो सर्टिफिकेट मिलता है - उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि न होकर मुख्यमंत्री भूपेश की तस्वीर छपी होती है.
बीजेपी को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि कैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट से प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर हटा सकती है, लेकिन मजबूरी ये है कि उसके लिए सिवा बयानबाजी के कोई एक्शन भी नहीं लिया जा सकता. बाकी मामलों राजनीतिक विरोधियों पर लगाये जाने वाले इल्जामों की तरह बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस आपदा में भी प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.
क्या गजब के तर्क हैं - अगर उसी वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फोटो लगा है तो कोई बात नहीं, लेकिन उसी पर अगर भूपेश बघेल का फोटो लग जाता है तो ये आपदा में अवसर नजर आने लगता है. अब ये मजाकिया इल्जाम नहीं है तो आखिर क्या है?
लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार के पास अपने तर्क हैं और वो तर्कसंगत भी लगते हैं. आज तक से बातचीत में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव पूछे जाने पर पलट कर खुद ही सवाल खड़ा कर देते हैं - 'गलत क्या है?'
सीधा, सरल और सपाट जवाब हाजिर होता है, टीएस सिंह देव कहते हैं, 'केंद्र सरकार से जो वैक्सीन मिले हैं और जिनको वे वैक्सीन लगाये जा रहे हैं उनके सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री का ही फोटो लगा है. ऐसे में जो वैक्सीन छत्तीसगढ़ सरकार ने खरीदे हैं - 18 से 45 साल की उम्र वाली जनता के लिए उसमें अगर मुख्यमंत्री का फोटो है तो आपत्ति क्यों?'
लॉकडाउन से लेकर वैक्सीन पॉलिटिक्स तक
कोरोना वायरस जो न कराये. पहले लॉकडाउन पर राजनीति हुई अब वैक्सीनेशन पर हो रही है. अब तो मामला थोड़ा ठंडा हो गया, नहीं तो कुछ ही दिन हुए जब ऑक्सीजन पर पहले की प्याज जैसी राजनीति देखने को मिल रही थी.
जैसे 2020 में गैर बीजेपी दलों के मुख्यमंत्री लॉकडाउन लागू करने के मामले में प्रधानमंत्री मोदी से आगे आगे चल रहे थे, 2021 में वे बीजेपी शासित राज्यों को पीछे छोड़ चुके हैं. ये बात अलग है कि बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी टुकडे़ टुकडे़ में वैसे ही कदम उठा रही हैं जैसा इस बार सबसे पहले महाराष्ट्र और दिल्ली की सरकार ने आगे बढ़ कर हिम्मत दिखायी. असल में केंद्र सरकार ने तो पिछले ही साल साफ कर दिया था कि राष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण लॉकडाउन का फैसला तो वो लेने से रही. इस बात तो प्रधानमंत्री मोदी ने बस इतना ही कहा था कि लॉकडाउन लागू करने का फैसला आखिरी विकल्प होना चाहिये.
अब देखना ये बाकी है कि क्या लॉकडाउन लागू करने को लेकर बीजेपी और गैर बीजेपी सरकारों में जो होड़ देखने को मिली है, वही अब वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट के मामले में भी नजर आने वाली है?
भले ही जगनमोहन रेड्डी ने प्रधानमंत्री मोदी को अरविंद केजरीवाल की तरह ही पत्र लिखा हो, लेकिन अभी तक उनका रुख मोदी सरकार के सपोर्ट में ही देखने को मिला है. हाल ही में इसकी बड़ी मिसाल तब देखने को मिली जब प्रधानमंत्री मोदी के फोन आने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्विटर पर लिखा कुछ इस अंदाज में शिकायत की कि वो अपनी तो कविता सुना डाले लेकिन मेरी सुने बगैर ही निकल लिये. जगनमोहन रेड्डी ने हेमंत सोरेन के उस ट्वीट को देश को कमजोर करने वाला करार दिया था.
फिर तो मान कर चलना चाहिये कि जगनमोहन रेड्डी तो नहीं लेकिन ऑक्सीजन से वैक्सीन की सियासत पर शिफ्ट हुए अरविंद केजरीवाल मोदी विरोध में भूपेश बघेल वाला तरीका अपना सकते हैं, बशर्ते वैक्सीन का खर्च दिल्ली सरकार उठाती हो.
लेकिन तब क्या होगा जब जगनमोहन रेड्डी को भी लगे कि जिस पर आंध्र प्रदेश सरकार का पैसा खर्च हो उस कागज पर मोदी की जगह उनकी तस्वीर क्यों नहीं छपे? राजनीति में त्याग की इतनी भावना तो होती नहीं. अगर ऐसा होता तो भला लालकृष्ण आडवाणी मार्गदर्शक मंडल से बालकनी की तरह ट्रेलर भी और पिक्चर भी पूरी देखने को मजबूर किये गये होते.
अब जबकि भूपेश बघेल ने रास्ता दिखाया है तो धीरे धीरे ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, अशोक गहलोत, हेमंत सोरेन, पिनराई विजयन और एमके स्टालिन जैसे नेताओं के मन में भी तो लड्डू फूट ही रहे होंगे, बशर्ते छत्तीसगढ़ वाली खर्च वहन किये जाने की शर्त उनके राज्यों में भी लागू होती हो.
बीजेपी के अलावा अगर किसी को इस बात का अफसोस या दुख होगा वो नीतीश कुमार ही हो सकते हैं क्योंकि वो प्रधानमंत्री पद के तब से दावेदार रहे हैं जब बीजेपी ने अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी नहीं घोषित किया था.
ये सब होने पर क्या बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मन ही मन फ्रस्टेट नहीं होंगे? लेकिन ऐसा वे मुख्यमंत्री ही सोच सकते हैं जिनको अपने दम पर सत्ता में वापसी का पक्का यकीन हो, लेकिन अफसोस की बात अभी तो बीजेपी का ऐसा कोई भी चीफ मिनिस्टर नहीं है जो इतनी कुव्वत रखता हो - न तो यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और न ही गुजरात वाले अमित शाह के फेवरेट विजय रुपाणी.
अब सवाल ये है कि क्या वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर न्यूटन का तीसरा नियम लागू होगा? हर क्रिया की प्रतिक्रिया तय होती है - या फिर 'महाजनो येन गतः स पंथाः' के हिसाब से ही देश के भीतर की दुनिया चलती रहेगी?
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