Punjab Elections 2022: कांग्रेस की चुनावी राह में हैं ये 4 सबसे बड़े स्पीड-ब्रेकर
पंजाब चुनाव 2002 (Punjab Elections 2022) को कांग्रेस (Congress) के लिए राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. क्योंकि, पांच चुनावी राज्यों में से सिर्फ पंजाब (Punjab) में ही कांग्रेस के पास सत्ता है.
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अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में से एक पंजाब को कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ऐसा कहने की एक वजह तो यही है कि पंजाब में पहले से ही कांग्रेस सरकार है, तो पार्टी के सामने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. दूसरी वजह सीधे तौर पर कांग्रेस आलाकमान से जुड़ी है. अगर पंजाब में कांग्रेस अपनी उम्मीदों के हिसाब से प्रदर्शन नहीं कर पाती है, तो राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर होने वाली ताजपोशी के लिए बनाया आधार ही हिल जाएगा. कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का पहला दलित मुख्यमंत्री बनाने का मास्टरस्ट्रोक खेलते हुए वोटों के समीकरण को साधने की कोशिश की.
किसान आंदोलन के सहारे भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ पंजाब की बहुसंख्य किसान आबादी में पकड़ भी बना ली. कैप्टन अमरिंदर सिंह को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उपजी गुटबाजी को मंत्री पद देकर संभालने की कोशिश की. लेकिन, इतना सब कुछ करने के बाद भी पंजाब चुनाव 2022 में कांग्रेस की राह आसान नजर नहीं आ रही है. आइए जानते हैं कि कांग्रेस की चुनावी राह में 4 सबसे बड़े स्पीड ब्रेकर कौन हैं?
कई सियासी समीकरण साधने के बावजूद पंजाब चुनाव 2022 में कांग्रेस की राह आसान नजर नहीं आ रही है.
अमरिंदर सिंह-भाजपा गठबंधन
कैप्टन अमरिंदर सिंह की मानी जाए, तो कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें बेइज्जत कर पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाया था. इसी वजह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया गया. वैसे, कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ने के साथ ही अपने इरादे जता दिए थे कि वह किसी भी हाल में कांग्रेस को पंजाब में वापसी नहीं करने देंगे. हालांकि, अमरिंदर सिंह ने ये निशाना पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के सहारे साधा था. लेकिन, चुनौती उन्होंने सीधे कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार को ही दी थी. इसी के साथ उन्होंने साफ कर दिया था कि अगर किसान आंदोलन का हल किसानों के हित में निकल आता है, तो उनकी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस का भाजपा से गठबंधन हो सकता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा के लिए ये भी कहा था कि वह सांप्रदायिक पार्टी नहीं है. खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद किसान आंदोलन खत्म हो चुका है. और, अमरिंदर सिंह की लोक कांग्रेस पार्टी, सुखदेव सिंह ढींढसा की शिअद (संयुक्त) और भाजपा का गठबंधन भी तय हो चुका है.
हाल ही में पंजाब कांग्रेस के कई विधायक पार्टी छोड़कर अमरिंदर सिंह-भाजपा गठबंधन में शामिल हुए हैं. काफी हद तक संभावना है कि भविष्य में कैप्टन अमरिंदर सिंह के कई और करीबी विधायक कांग्रेस का दामन छोड़कर पाला बदल सकते हैं. पंजाब में कांग्रेस के 'ओल्ड गार्ड' रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह का पार्टी संगठन से लेकर जनता के बीच भी व्यापक प्रभाव है. अमरिंदर सिंह-भाजपा गठबंधन का सीट शेयरिंग फॉर्मूला भी लगभग तय माना जा रहा है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो दोनों दलों के बीच किसी तरह का विवाद नहीं है. अकाली दल के एनडीए छोड़ने के बाद भाजपा के लिए पंजाब चुनाव 2022 खुद को स्थापित करने का मौका है. वहीं, कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए ये नाक का सवाल बन चुका है. वैसे, माना जा रहा है कि पंजाब की हिंदू बहुल सीटों के साथ ही हर सीट पर अमरिंदर सिंह-भाजपा गठबंधन कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कैप्टन-भाजपा गठबंधन की नजर जीत से ज्यादा कांग्रेस को कमजोर करने पर ही है.
आम आदमी पार्टी
पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा विपक्षी दल बनी आम आदमी पार्टी की ओर से सूबे में राजनीतिक बदलाव लाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है. आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त बिजली-पानी के चुनावी वादे से इतर लोगों के लिए कई आकर्षक योजनाओं का ऐलान किया है. कई चुनावी सर्वे में भी आम आदमी पार्टी को पंजाब में बढ़त मिलती दिखाई जा रही है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस के सामने मुख्य चुनौती के तौर पर आम आदमी पार्टी ही नजर आती है. हालांकि, सर्वे को लेकर कहा जा सकता है कि जरूरी नहीं है कि ये सही ही निकलें. लेकिन, इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. हाल ही में चंडीगढ़ नगर निकाय के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने चौंकाने वाला प्रदर्शन किया है. अगर आम आदमी पार्टी अपना यही प्रदर्शन पंजाब चुनाव 2022 में दोहरा देती है, तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.
किसान संगठन
यूं तो किसान आंदोलन खत्म हो गया है और इसके खत्म होने की पहले ही भविष्यवाणी करने का श्रेय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ले रहे हैं. लेकिन, एक साल तक चले किसान आंदोलन का फायदा कांग्रेस को मिलता नहीं दिख रहा है. क्योंकि, संयुक्त किसान मोर्चा में जुड़े कई किसान संगठन अब पंजाब में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने तो बहुत पहले ही अपनी राजनीतिक मंशा जाहिर कर दी थी. वहीं, पंजाब के किसान संगठनों के यूनाइटेड फ्रंट ने बलबीर सिंह राजेवाल को अपना सीएम चेहरा घोषित कर दिया है. खबर है कि किसान का ये सियासी फ्रंट आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर बातचीत भी कर रहा है. अगर ऐसा हो जाता है, तो ये अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए एक बड़ा प्लस प्वाइंट साबित हो सकती है. हालांकि, किसान संगठनों के चुनाव लड़ने से किसे राजनीतिक नफा-नुकसान होगा, इसका अंदाजा अभी से नहीं लगाया जा सकता है. लेकिन, इतना तय है कि किसान संगठन कांग्रेस की चुनावी राह में रोड़ा जरूर बनेंगे.
नवजोत सिंह सिद्धू
पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह के खिलाफ कांग्रेस आलाकमान की ओर से फ्री हैंड मिलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन को सीएम पद के साथ ही पार्टी से बाहर निकाल कर ही दम लिया. लेकिन, अमरिंदर सिंह के बाद कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की जगह दलित सीएम के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी के नाम का ऐलान कर दिया. इसके बाद से ही सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी के बीच सियासी खींचतान शुरू हो गई थी. बेअदबी और ड्रग्स माफिया जैसे मुद्दों के साथ कैप्टन के खिलाफ बगावत करने वाले सिद्धू ने चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया. वहीं, नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस आलाकमान पर खुद को सीएम चेहरा घोषित करने का भी दबाव बना रहे हैं. कांग्रेस में चल रही ये अंदरूनी खींचतान पार्टी को नुकसान ही पहुंचा रही है. अगर समय रहते कांग्रेस आलाकमान सिद्धू को शांत करने में कामयाब नहीं पाता है, तो पार्टी को पंजाब में नुकसान होना तय माना जा सकता है.
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