Bihar riots : दो पाटों के बीच पिस रहें है नीतीश कुमार
बिहार के 9 जिले इस वक्त सांप्रदायिक दंगों की चपेट में हैं. ये तनाव स्वाभाविक नहीं बल्कि पैदा किया जा रहा है. एक पक्ष वोटों का ध्रुवीकरण चाहता है तो दूसरा पक्ष इसे कानून व्यवस्था का सवाल बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरना चाहता है.
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हमेशा सांप्रदायिक तनाव से दूर रहने वाला बिहार अचानक से सुलगने क्यों लगा है. पिछले 10 दिनों में बिहार के 9 जिले इस तनाव से जल उठे. भागलपुर से शुरू हुई चिंगारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जिले नालंदा में पहुंच चुकी है. आखिर यह कैसे हो रहा है. कई जगहों का दौरा करने के बाद यह पता चलता है कि यह तनाव स्वाभाविक नहीं है बल्कि पैदा किया जा रहा है. कहीं एक पक्ष के द्वारा तो कहीं दुसरे पक्ष के द्वारा. इस पूरे मामले में गहराई में जाने के बाद यह साफ होता है कि एक पक्ष वोटों का ध्रुवीकरण चाहता है तो दूसरा पक्ष इसे कानून व्यवस्था का सवाल बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरना चाहता है.
नीतीश कुमार साप्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाते हैं इससे पहले 12 वर्ष के शासन काल में कही कोई बडा फसाद नहीं हुआ. और इसके लिए उन्होंने पहले नरेन्द्र मोदी को बिहार आने से रोकना भी शामिल रहा जिस समये मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं थे. नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने को लेकर ही उन्होंने 2013 में एनडीए को छोडा था.
साप्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाते हैं नीतीश कुमार
लेकिन अब बिहार की परिस्थिति 2013 से काफी आगे निकल चुकी है. बिहार सरकार मे तब मंत्री रहे अश्वनी चौबे और गिरिराज सिंह अब केन्द्रीय मंत्री बन चुके हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाकर, चुनाव जिताकर, सरकार बनाकर, सरकार चलाकर, सब देख चुके हैं. इस दौरान उन्होंने साम्प्रदायिकता से ज्यादा भ्रष्ट्राचार को तरजीह दी. इसलिए महगठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ एनडीए में शामिल होकर सरकार चला रहे हैं. बीजेपी का लक्ष्य है 2019 का चुनाव जीतना और जिस तरीके का माहौल बन रहा है उससे वोटों का घ्रुवीकरण ही उन्हें फिर से सत्ता में बैठा सकता है. बीजेपी के लिए हिन्दुत्व एक बडा ऐजेन्डा है जिसपर वो लम्बे समय से काम कर रही है. यू कहें तो 2015 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद ही उसने इस रणनीति में काम करना शुरू कर दिया था. और अब वो रणनीति में काफी आगे भी निकल चुकी है. हांलाकि बिहार में इसमें बीजेपी प्रत्यक्ष रूप से कही शामिल नहीं दिखती लेकिन उसके संगठन लगातार इस पर काम कर रहे हैं.
बिहार में साम्प्रदायिक का उन्माद उत्तरप्रदेश से उलट काफी कम रहा है. एक तरह से यहां के लोग आपसी भाई चारे में रहना ज्यादा पसंद करते हैं इसलिए यहां ज्यादा टकराव भी देखने को नहीं मिलता है लेकिन राजनैतिक स्तर और एग्रेसिव करने के लिए लोगों में हिन्दुत्व की भावना भरी जा रही है. मुस्लिमों में यह भावना पहले से ही यहां के हिन्दुओं से ज्यादा रही है. इसका अंदाजा चुनाव के अवसर पर पोलिंग बूथ पर लगी लाईनों से लगाया जा सकता है. यही ऐग्रेशन हिन्दु संगठन के लोग भी चाहते हैं. इसके लिए भडकाऊ भाषण गीत का सहारा लिया जा रहा है.
बिहार के 9 जिलों में तनाव की स्थिति बनी हुई है
2018 का वर्ष इस टेस्ट के लिए है कि वो इस काम में कितने सफल रहें हैं. यही वजह है कि रामनवमी के अवसर पर बिहार में इस तरह के धार्मिक उन्माद देखने को मिल रहा है. काफी सुनियोजित तरीके से इसको अंजाम दिया जा रहा है. रामनवमी में इस बार जिस तरीके से शस्त्र प्रदर्शन हुआ वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. बताया जा रहा है कि लोगों ने रामनवमी के जलूस में शामिल होने के लिए तलवारें खरीदीं. यानी कि डिमांड को देखते हुए भारी संख्या में तलवारें दूसरे राज्यों से बेचने के लिए मगांई गईं.
रामनवमी के लिए तलवारें खरीदते लोग
रामनवमी का जूलूस एक दिन पूरे बिहार में निकलता था लेकिन इस बार यह सिलसिला रामनवमी के चार दिन बाद तक चलता रहा. हांलाकि इसकी शुरूवात भागलपुर से केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे के बेटे ने रामनवमी से आठ दिन पहले ही करके माहौल को तनावपूर्ण कर दिया था. रामनवमी यात्रा अलग अलग दिन करने कि योजना भी सुनियोजित है ताकि बाहर के लोग इसमें शामिल हो सकें. नालंदा के सिलाव में पुलिस अधिकारियों ने बताया कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के पास वॉकी टॉकी भी देखे गए.
रामनवमी पर निकाला गया था इस तरह का जुलूस
दूसरी तरफ औरंगाबाद में जिस तरीके से रामनवमी के एक दिन पहले मोटरसाईकिल यात्रा पर मुस्लिम मुहल्लों से पत्थरबाजी हुई उससे तनाव तो पहले ही फैल चुका था लेकिन इसके बावजूद औरंगाबाद की पुलिस समझ नहीं पाई और जिस दिन रामनवमी का जुलूस था उस दिन फिर वही कहनी दुहराई गई. औरंगाबाद के बीजेपी सांसद सुशील कुमार सिंह ने कहा कि यह पहले से सुनियोजित था. यही वजह है कि लोगों ने अपने घरों में पहले से पत्थर जमा कर रखे थे. एक दिन पहले की हुई घटना पर सुशील कुमार सिंह ने बयान भी दिया था कि क्रिया की प्रतिक्रिया होगी, और वही हुआ. औरंगाबाद में प्रतिक्रिया में दर्जनों दुकानें जला दी गईं. समस्तीपुर के रोसडा में जिस तरह से मूर्ति विसर्जन जुलूस के दौरान एक घर से चप्पल गिरा जिससे तनाव पैदा हुआ.
इन घटनाओं के पीछे भी कोई है जो बिहार को अस्थिर करना चाहता है. यहां की खराब कानून व्यवस्था पर सवाल खडा करना चाहता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को कह चुके हैं कि तनाव में आप भी घी डालने का काम कर रहे हैं. यहां भी का मतलब साफ लग रहा है कि केवल बीजेपी नहीं बल्कि आरजेडी भी इसमें शामिल है.
रामनवमी से शुरू हुई हिंसा
आरजेडी का इसके पीछे अब दुख है कि जिस तरीके से नीतीश कुमार ने उसे छोड़कर बीजेपी का दामन थामा उससे उसके कार्यकर्ताओं में रोष है भले ही तेजस्वी की तरफ से इस तरह का कोई निर्देश न हो लेकिन आरजेडी का आम कार्यकर्ता नीतीश सरकार की मिट्टी पलीद करने के लिए कुछ भी कर सकता है. दूसरी तरफ बीजेपी का एक बार साथ छोड़कर नीतीश कुमार ने दूसरी बार दामन थामा है उसका ऐजेन्डा तय है उसमें वो काफी आगे बढ चुकी है. अब आगे वो क्या कर सकते हैं ये भाव बीजेपी के आम कार्यकर्तोओं में है ऐसे में नीतीश कुमार एक तरह से चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं. कुल मिलकर देखा जाए तो बिहार में ये तनाव राजनैतिक तो है ही साथ ही कई जगहों पर पुलिस प्रशासन की विफलता ने इसे और बढ़ने दिया.
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