नीतीश कुमार दिल्ली में लेकिन 'दिल्ली अभी बहुत दूर' है
दिल्ली दौरे से पहले नीतीश कुमार ने जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में सारे संशय दूर करने की कोशिश की. नीतीश कुमार ने रविवार को बैठक में कहा कि वो अब कभी भी बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. 2017 में एनडीए में दोबारा से वापस जाना एक बड़ी गलती थी.
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एक कहावत है- ‘दिल्ली अभी दूर है’ लेकिन लगता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली को पास लाने की कवायद में जुटे हैं. यही कारण है कि सोमवार की शाम नीतीश कुमार तीन दिन की यात्रा पर दिल्ली पहुँच गए. अभी अगस्त में ही तो उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने बीजेपी से नाता तोड़ा था और अपने पुराने दोस्त लालू यादव की पार्टी आरजेडी के साथ महागठबंधन किया था. 9 अगस्त को उन्होंने बीजेपी से लगभग हमेशा के लिए दूरी बना ली थी और 10 अगस्त को आरजेडी के तेजस्वी यादव को उप-मुख्यमंत्री बनाकर खुद 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन बैठे थे. उस समय भी बीजेपी से अलग होने के बारे में कई अटकलों को दरकिनार करते हुए नीतीश कुमार ने साफ कहा था कि न तो उनका मकसद राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति बनना था और न ही वे 2024 के लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखते हैं. दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले भी यही बात दोहराई और दिल्ली पहुंचने के बाद भी.
दिल्ली आकर नीतीश कुमार ने राजनीति के गलियारों में नयी चर्चाओं को जन्म दे दिया है
दिल्ली दौरे से पहले नीतीश कुमार ने जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में सारे संशय दूर करने की कोशिश की. नीतीश कुमार ने रविवार को बैठक में कहा कि वो अब कभी भी बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. 2017 में एनडीए में दोबारा से वापस जाना एक बड़ी गलती थी. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस बात का जिक्र करके विपक्षी दलों को ये विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि अब दोबारा से बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगे.
दिल्ली पहुंचने के बाद रिपोर्टर्स से उन्होंने कहा कि वो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति से मिलेंगे लेकिन विपक्ष के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे और अच्छा होगा अगर विपक्ष साथ आये जिससे बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ा जा सके. नीतीश कुमार का कहना है कि जब तक विपक्ष के नेता आपस में साथ नहीं बैठेंगे, बात नहीं करेंगे, तब तक बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्ष कैसे बना पाएंगे.
दिल्ली के लिए रवाना होने से पहले नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव से उनके आवास पर मुलाकात की. इस दौरान बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी भी मौजूद थे. सीएम नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे को लेकर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने कहा था कि आज मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा है. वे कई नेताओं से मुलाकात करेंगे, जो हमारे महागठबंधन के साथी हैं उनसे भी मुलाकात करेंगे.
नीतीश कुमार ने साफ तौर पर कहा है कि देश के विपक्ष को एकजुट करना है. मीडिया के इस सवाल पर कि लालू यादव के साथ क्या बातचीत हुई? सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि हमारी और इनकी बातचीत क्या, हम तो एक ही विचारधारा के लोग हैं. सारी बातों पर हम सब एकमत हैं. दिल्ली आने के बाद, नीतीश कुमार ने सोमवार की देर शाम ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी से करीब 50 मिनट की मुलाकात की.
बिहार में कांग्रेस समर्थित महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार और राहुल गांधी की ये पहली मुलाकात थी. राहुल से मिलने के बाद नीतीश ने मीडिया से कोई बात नहीं की. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस सूत्रों की मानें तो बिहार सरकार को कांग्रेस समर्थन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राहुल गांधी का आभार व्यक्त किया. अटकलें हैं कि दोनों के बीच 2024 के चुनावों की रणनीति पर भी चर्चा हुई जिसमें समान विचारधारा वाली पार्टियों को साथ लाने की संभावना पर बातचीत हुई.
बिहार में नई सरकार बनने के बाद राहुल गांधी ने नीतीश कुमार को फोन पर बधाई दी थी.
राहुल से मुलाकात के पहले नीतीश कुमार ने पत्रकारों से साफ कहा था - प्रधानमंत्री बनने की न तो मेरी कोई इच्छा है, न ही कोई आकांक्षा. ये इच्छा जरूर है कि अधिक से अधिक विपक्ष इकट्ठा हो जाए तो सब बेहतर होगा. इसके लिए हम लोग सहयोग करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए मेरा कोई दावा नहीं है.
नीतीश कुमार का कई बार ये स्पष्ट कर रहे हैं कि वो खुद प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक नहीं हैं बल्कि विपक्ष को इकठ्ठा करना ही उनकी मंशा है. उनकी यही दोनों बात दो सवाल भी खड़े करती है? पहला और बड़ा सवाल तो ये कि जब उनको सत्ता का नशा है तो वो कैसे खुद को प्रधानमंत्री पद से दूर रख पाएंगे. हमारा ये कहने का भी कारण है.
पिछले 8 सालों में उनके मुख्यमंत्री बनने के दौरान ये बात सामने आ चुकी है. वो और उनकी पार्टी जदयू बिहार में चाहे जिससे गठबंधन करें, दूसरी पार्टी की सीटें ज्यादा होने के बावजूद मुख्यमंत्री हर बार नीतीश कुमार ही बनते हैं. ऐसे में विपक्ष के एक साथ होने पर भी तो वो प्रधानमंत्री पद के लिए खुद का नाम प्रस्तावित कर सकते हैं. (iChowk के हमारे पाठकों, आपका क्या मानना है ये बात कमेंट करके हमें जरूर बताएं.)
दूसरा सवाल ये है कि जो इंसान बिहार से दिल्ली आकर विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने की कवायदों में जुटा है, वही तो विपक्ष के मोर्चे का नेता कहलायेगा? नीतीश कुमार ने कई बार ये घोषणा की है कि उनका मकसद 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सत्ता से दूर रखने का है, इसीलिए विपक्ष के नेताओं से नीतीश मेल-मुलाकातें कर रहे हैं. दिल्ली से तो उन्होंने दौरे की शुरुआत भर की है. कुछ खबरों के मुताबिक, वे इसके बाद, आने वाले कुछ महीनों में और भी यात्राएं करेंगे और विपक्षी नेताओं को पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट करेंगे. ऐसे में ये सवाल तो उठेगा कि जो व्यक्ति इतनी मेहनत करेगा वो इसका फल भी तो चाहेगा- पीएम की रेस का मुख्य उम्मीदवार बनकर?
खैर हम फिलहाल नीतीश कुमार के कहे पर विश्वास कर लेते हैं कि वो पीएम पद के उम्मीदवार नहीं बनना चाहते क्योंकि यही बात उन्होंने सीताराम येचुरी से मिलने के बाद भी कही. नीतीश कुमार ने मंगलवार को दिल्ली में को सीपीआई (एम) महासचिव सीताराम येचुरी से मुलाकात की. नीतीश कुमार और सीताराम येचुरी ने बैठक के बाद मीडिया से भी बात की.
इस दौरान नीतीश कुमार ने कहा, ‘हम साथ हैं, इसलिए मैं यहां आया हूं. हम विपक्ष को एक साथ लाने की कोशिश में हैं. हमने चर्चा की है कि अगर वाम दल, विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय दल और कांग्रेस एक साथ आते हैं तो ये बहुत बड़ी बात होगी. हमारे पुराने रिश्ते हैं. हालांकि, बीच में अलगाव हो गया था. हम पहले भी मजबूती से साथ रहे हैं. आगे भी मजबूती से साथ रहेंगे.’
उधर, सीताराम येचुरी ने कहा,'धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एक साथ आना चाहिए. नीतीश कुमार का साथ आना विपक्ष के लिए सुखद संदेश है. हम स्वागत करते हैं कि वे फिर यहां आए और ये देश के प्रति एक बेहतर संकेत दिया गया है. विपक्ष की पार्टियां को एक होकर देश के संविधान को बचाना है. पहला टास्क है सबको एकजुट करना.'
पीएम उम्मीदवार बनने के सवाल पर नीतीश ने फिर वही कहा कि उनकी ऐसी कोई इच्छा नहीं है. नीतीश कुमार कई नेताओं से मिल रहे हैं लेकिन कुछ से दूरी भी बना रखी है और इनमें सबसे ऊपर नाम है- प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का. खबरों के मुताबिक, बिहार के महागठबंधन की ओर से टीएमसी से कोई आधिकारिक संवाद नहीं हुआ. ऐसे में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी जदयू से दूरी बनाए रखने का फैसला किया.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, ममता बनर्जी का मानना है कि क्षेत्रीय पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ लड़ना चाहिए और अपने-अपने क्षेत्र में बीजेपी को हराना चाहिए. उनको समर्थन के लिए दिल्ली नहीं आना चाहिए. वैसे ये वही ममता बनर्जी हैं जो कुछ समय पहले नीतीश कुमार की ही तरह दिल्ली भी आई थीं और महाराष्ट्र भी गई थीं. ममता बनर्जी ने भी केसीआर, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव समेत कई नेताओं से मुलाकात की थी. तब भी कोशिश यही थी कि विपक्ष को एकजुट किया जाए.
वैसे एक बात तो माननी होगी कि नीतीश कुमार ही नहीं बल्कि ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और अरविंद केजरीवाल तक 2024 के चुनाव में विपक्ष का चेहरा बनने की कवायद में जुटे हैं और इसीलिए वो खुद को एक दूसरे से बेहतर बताने में लगे रहते हैं. नीतीश कुमार और ममता बनर्जी से पहले तेलंगाना सीएम केसीआर भी विपक्ष को एकजुट करने के लिए नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव जैसे नेताओं से मिल चुके हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में पीएम मोदी को चुनौती देना इन सबकी प्राथमिकता हो सकती है लेकिन कांग्रेस को लेकर स्थिति अक्सर असमंजस में दिखती है.
हालांकि जेडीयू कांग्रेस को साथ लेकर चलने के मूड में दिखाई देती है. जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि बिना कांग्रेस और वामदल के बीजेपी के खिलाफ मजबूत लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है. इसलिए विपक्षी पार्टियों को आपसी मतभेद मिटाकर एक साथ आना होगा.
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव चाहते हैं कि बीजेपी के खिलाफ जो गठबंधन बने, उसमें कांग्रेस को शामिल नहीं किया जाए, लेकिन जेडीयू इससे सहमत नहीं है. जेडीयू का मत है कि देश में कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है. ऐसे में नीतीश कुमार अब बीजेपी से पाला बदलने के बाद, विपक्षी एकजुटता की दिशा में अपने कदम बढ़ा रहे हैं.
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए देशभर में विपक्षी दलों को नीतीश कुमार एकजुट करने का बीड़ा उठाया है. विपक्ष उनके इस कदम पर कैसे रियेक्ट करता है और कौन-कौनसी पार्टियाँ उनके साथ हाथ मिलाती हैं ये देखने वाली बात होगी क्योंकि उसके लिए नीतीश कुमार को अपने कहे अनुसार अभी कई और दौरे और बैठकें करनी होंगी ताकि विपक्ष एकजुट हो सके वरना तब तक तो हम यही कहेंगे कि, दिल्ली अभी दूर है नीतीश बाबू...
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