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Updated: 03 अक्टूबर, 2020 07:53 PM
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बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में कुछ ही दिन पहले तीसरे मोर्चे की चर्चा चल रही थी. त्रिकोणीय मुकाबले की तो तब भी गुंजाइश नहीं लग रही थी - क्योंकि मुख्य मुकाबला तो NDA और महागठबंधन में ही माना जा रहा है. अभी एनडीए और महागठबंधन सीटों के बंटवारे में सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरी तरफ मशरूम की तरह ढेर सारे चुनावी गठबंधन अचानक प्रकट हो चुके हैं. दोनों गठबंधन सीट शेयरिंग के लिए मीटिंग पर मीटिंग कर रहे हैं और ये मौसमी गठबंधन उम्मीदवारों की सूची तैयार कर रहे हैं - ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब कई सारे छोटे छोटे दलों के कई चुनावी गठबंधन मुख्य राजनीतिक दलों को चैलेंज करने की तैयारी में जुटे हैं. ये तो नहीं लगता कि ये मुकाबले में किसी का पलड़ा किसी तरफ झुका सकते हैं, लेकिन उन सीटों पर जहां हार जीत का फासला बेहद कम हो सकता है ये अपना असर जरूर दिखा सकते हैं - वैसे भी ये वोटकटवा (Vote Katwa Alliances) कहे भी तो इसीलिए जाते हैं.

और किसी ने तो नहीं लेकिन हैदराबाद वाले असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को ये बात बहुत बुरी लगी है. आरजेडी नेताओं के वोटकटवा कहने पर ओवैसी कहते हैं - 'जो लोग हमें वोटकटवा कहते हैं वे 2019 के लोकसभा चुनाव में हुए अपने हश्र को याद कर लें - कोई मुस्लिम वोटरों पर किस हैसियत से दावा करता है यह समझ में नहीं आता.'

ये जो नये चुनावी गठबंधन हैं, ज्यादातर उन नेताओं ने मिल कर बनाये हैं जिनकी एनडीए या महागठबंधन के साथ किसी तरह की डील नहीं हो पायी. आम चुनाव से पहले एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में आये उपेंद्र कुशवाहा ने 30 सीटों की डिमांड रखी थी, लेकिन तेजस्वी यादव उनको 5 से ज्यादा देने को तैयार न थे. खबर है कि बीजेपी से भी बातचीत चली और वहां 8 सीटें मांग रहे थे. बीजेपी ने साफ साफ बोल दिया कि पहले से ही हाउसफुल है.

बताते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा की तरह पप्पू यादव ने भी कोशिशें कम नहीं की, लेकिन कहीं बात नहीं बन सकी. असल में उपेंद्र कुशवाहा को लगता है कि उनकी बिरादरी वाले उनको नीतीश कुमार का विकल्प मान सकते हैं और पप्पू यादव समझते हैं कि वो तेजस्वी यादव का विकल्प बन सकते हैं - और मुमकिन है नहीं.

मायावती के भरोसे उपेंद्र कुशवाहा

जब उपेंद्र कुशवाहा के हिस्से में कोई भी महागठबंधन दहाई में भी सीटें देने को तैयार न हुआ तो सभी 243 सीटों पर लड़ने का फैसला कर लिया. उपेंद्र कुशवाहा के इस फैसले में यूपी की दलित नेता मायावती भी साथ आ गयी हैं - और घोषणा की है कि उनके गठबंधन पर बिहार के लोगों ने भरोसा जताया तो उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री बनेंगे.

उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाले इस गठबंधन में मायावती की बीएसपी के अलावा भारतीय समाज पार्टी और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी को भी शामिल किया गया है. बीएसपी ने 2005 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल की थी और राज्य के गोपालगंज, रोहतास और कैमूर जैसे यूपी से सटे जिलों में पार्टी का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है.

10 नवंबर को आने वाले नतीजों का अनुमान तो दोनों को पहले से ही होगा और ये भी मालूम होगा ही कि अपने प्रभाव वाले इलाकों में मायावती एनडीए को रामविलास पासवान और जीतनराम मांझी की बदौलत मिलने वाले वोट ही काटेंगी. ठीक वैसे ही उपेंद्र कुशवाहा की हिस्सेदारी भी नीतीश कुमार के खास वोट बैंक में होगी.

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक सेक्युलर अलाएंस

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में अपने चुनावी गठबंधन को नाम दिया है - UDSA. हैदराबाद की सीमा से बाहर ओवैसी को भारतीय राजनीति का वो अंडर करंट मान कर चलना चाहिये जिसके बारे में पहले से पता होता है कि वो किसी फायदा और किसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.

असदुद्दीन ओवैसी की नजर बिहार के थोड़े बहुत मुस्लिम और यादव वोटों पर है. कहने का मतलब वो लालू यादव के MY समीकरण को टारगेट कर रहे हैं, साफ है इसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा.

asaduddin owaisi, upendra kushwaha, pappu yadavबिहार में तीसरे मोर्चे की कौन कहे, ऐसा लगता है जैसे पांचवां-सातवां मोर्चा भी बन चुका है!

आरजेडी नेताओं के ओवैसी को वोटकटवा बताने पर वो 2019 के आम चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व और पार्टी के प्रदर्शन पर सवाल उठाते हैं. असदुद्दीन ओवैसी ने समाजवादी जनता दल के साथ ये गठबंधन बनाया है. समाजवादी जनता दल के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव हैं. बिहार के किशनगंज और उसके आसपास के सीमांचल के इलाकों पर ओवैसी की हमेशा से नजर रही है क्योंकि वहां की करीब दो दर्जन सीटों पर मुस्लिम वोट का दबदबा है.

उपचुनाव में किशनगंज सीट जीतने के बाद से असदुद्दीन ओवैसी का हौसला पहले से ही बढ़ा हुआ है. असदुद्दीन ओवैसी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है और 32 सीटों के लिए तो उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया है.

प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन

पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन तो असदुद्दीन ओवैसी से दो कदम आगे ही नजर आ रहे हैं. पप्पू यादव मुस्लिम और यादव के साथ दलित वोट बैंक पर भी फोकस कर रहे हैं. प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन में पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के साथ आजाद समाज पार्टी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को भी शामिल किया गया है.

आजाद समाज पार्टी यूपी में भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण का राजनीतिक दल है और उनके जरिये पप्पू यादव बिहार में दलित वोटों में घुसपैठ की कोशिश में हैं. बिहार के पूर्णिया, मधेपुरा और उसके आसपास के इलाकों में पप्पू यादव का प्रभाव रहा है - और हाल फिलहाल वो किसी न किसी बहाने मीडिया में सुर्खियां बनने का जुगाड़ भी करते रहे हैं. जब चीन के सामानों का विरोध हो रहा था तो पप्पू यादव जेसीबी पर सवार होकर चीन के सामानों की होर्डिंग पर कालिख पोत रहे थे. यूपी में विकास दुबे एनकाउंटर पर भी सवाल खड़ा किया था - और पटना में बाढ़ आयी थी तो नाव लेकर लोगों को घर घर दूध ब्रेड पहुंचाने जैसे नेक काम भी कर रहे थे.

यूनाइटेड डेमोक्रेटिक अलाएंस

बिहार चुनाव में एक गठबंधन के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी खासे एक्टिव हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ बगावत के बाद बीजेपी छोड़ देने वाले यशवंत सिन्हा ने 16 राजनीतिक दलों को मिलाकर यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एएलायंस बनाया हुआ है.

गठबंधन की तरफ से 10 सितंबर को समस्तीपुर में मीटिंग बुलायी गयी थी जिसमें पूर्व मंत्री नागमणि, रेणु कुशवाहा और अरुण कुमार जैसे कई नेता शामिल हुए थे.

आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी की नजर में गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतर रहे इन नेताओं का बिहार में कोई जनाधार नहीं है. आरजेडी का मुकाबला बीजेपी से होने का दावा करते हुए शिवानंद तिवारी कहते हैं कि ये नाम के गठबंधन हैं और शायद ही किसी की सेहत पर इनकी वजह से कोई फर्क पड़ता हो.

बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी शिवानंद तिवारी से इत्तफाक रखते हैं. 2015 विधानसभा चुनावों की याद दिलाते हुए सुशील मोदी कहते हैं कि ऐसे गठबंधन एक भी सीट नहीं जीत सके और उनके उम्मीदवारों के वोट भी 2000 से 3000 के बीच ही सिमटे रहे.

अगर जीतनराम मांझी को भी नीतीश कुमार का साथ नहीं मिला होता तो ऐसे ही वो भी किसी न किसी गठबंधन का हिस्सा बने होते जैसे खुद को सन आॉफ मल्लाह कहने वाले मुकेश साहनी भी हाथ पैर मार रहे हैं. विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश साहनी खुद को बिहार के डिप्टी सीएम की कुर्सी का दावेदार मानते हैं - और ठीक उनकी ही तरह अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन देकर बिहार चुनाव में बांकीपुर सीट से खुद किस्मत आजमाने जा रहीं लंदन में पढ़ी लिखी पुष्पम प्रिया की नजर तो सीधे नीतीश कुमार की कुर्सी पर है.

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