बिहार चुनाव में अब दूसरा 'मांझी' फैक्टर
'मांझी फैक्टर' सबसे ऊपर रहेगा. महीनों पहले ही इस बात का हर किसी को अहसास हो गया था. लेकिन 'मांझी फैक्टर' डबल धमाका लेकर आएगा, ये किसी ने नहीं सोचा था.
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'मांझी फैक्टर' सबसे ऊपर रहेगा. महीनों पहले ही इस बात का हर किसी को अहसास हो गया था. लेकिन 'मांझी फैक्टर' डबल धमाका लेकर आएगा, ये किसी ने नहीं सोचा था.
बड़ा वोट बैंक
बीजेपी ने तो बहुत पहले ही भांप लिया था कि जीतन राम मांझी के कंधे पर बंदूक रख कर बिहार में काफी कुछ हासिल किया जा सकता है. इसीलिए बीजेपी ने मांझी को खुल्लम खुल्ला समर्थन देने की घोषणा की - और आखिरकार मांझी को साथ रखा. जीतन राम मांझी की अहमियत तो नीतीश कुमार भी समझ रहे थे, लेकिन हालात के आगे मजबूर थे. सवाल दरअसल 16 फीसदी महादलित वोटों का है - और हर पार्टी की इस एक मुश्त वोट बैंक पर नजर है. इसीलिए लालू ने भी गठबंधन में मांझी को साथ लेने का प्रस्ताव रखा. बात न बननेवाली थी, न बन सकी. राह में नीतीश ने ही नहीं बल्कि खुद मांझी ने भी रोड़े अटका दिए. पप्पू यादव तो आरजेडी के साथ जनता परिवार में भी मांझी को शामिल किए जाने की वकालत करते रहे. मांझी को भी ये सब अच्छी तरह समझ में आ रहा था. मांझी ने सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी के साथ देखा और उसी के साथ हो लिए.
दूसरा 'मांझी फैक्टर'
दशरथ मांझी की जिंदगी पर ही फिल्म 'मांझीः द माउंटेन मैन' बनी है. इसी महीने 21 अगस्त को ये फिल्म रिलीज होने जा रही है. खास बात ये है कि रिलीज से पहले ही नीतीश कुमार सरकार ने इसे टैक्स फ्री करने का एलान कर दिया है. दरअसल, जीतन राम मांझी ने दशरथ मांझी को भारत रत्न देने सहित एक साथ कई मांगे पेश कर दीं. जीतन राम मांझी गया के रहनेवाले हैं. दशरथ मांझी भी गया के ही रहने वाले थे. नीतीश ने मौके की नजाकत को समझा और आनन फानन में फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर दी. बाकी दल भी फिल्म का फायदा उठाने की अपने अपने तरीके से तैयारी कर रहे हैं. इसके चलते और कुछ हो न हो दशरथ मांझी के परिवार को इसका फायदा जरूर मिला है.
परिवार की पूछ बढ़ी
दशरथ मांझी के बेटे भगीरथ मांझी सहित पूरा परिवार इन दिनों खुश है. हुआ ये है कि अचानक हर कोई उनका हाल चाल पूछने उनके घर पहुंच रहा है. कभी लालू के दाहिने हाथ रहे पप्पू यादव से लेकर नीतीश के लोग तक भगीरथ से मुलाकात कर बड़े से बड़ा वादा कर रहे हैं. खुशी इस बात की भी है कि शहर से बड़े बड़े लोग उनके यहां पहुंच रहे हैं - उनके दलित होने से किसी को फर्क नहीं पड़ रहा. लोग उनके घर का पानी पीते हैं. खा-पी भी लेते हैं. सबसे बड़ा फायदा आर्थिक हुआ है. फिल्म के डायरेक्टर केतन मेहता की ओर से भगीरथ माझी को 51 हजार रुपये मिले हैं. रिलीज के बाद और पैसे मिलेंगे - ऐसा कहा गया है.
तब मांझी को मुख्यमंत्री बने दो दिन हुए थे. मांझी जब भगीरथ के गांव गहलौर पहुंचे तो उन्होंने एक मांग रखी, "साहब, झोपड़ी में रहते हैं आप जैसे घरों में रहते हैं उसी तरह का एक घर बनवा दीजिए." इस पर मांझी ने मजाकिया लहजे में झोपड़ी में ही खुश रहने की सलाह दी थी. मांझी का कहना था कि कोई खराब थोड़े ही है झोपड़ी में रहना. तब से लेकर करीब नौ महीने तक मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे.
भगीरथ को लगता है कि फिल्म रिलीज होने के बाद और पैसे तो मिलेंगे ही, शायद चुनावी बयार तेज होते होते पिता की वजह से सिर पर छत भी मयस्सर हो जाए.
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