बिहार की जनता सो रही है और तेजस्वी-पुष्पम प्रिया जैसे नेता भी
बिहार चुनाव (Bihar Elections) में कुछ समय शेष है ऐसे में वो चाहे तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) हों या पुष्पम प्रिया (Pushpam Priya) जनता की फ़िक्र किसी को नहीं है. बीते दिन ही राज्य में एक 8 साल की बच्ची का बलात्कार हुआ है जिसको पुष्पम प्रिया और तेजस्वी दोनों ने ही सिरे से इग्नोर कर दिया है.
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चाहे पुष्पम प्रिया (Pushpam Priya) हों या तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav). किसी की भी बातों में सच्चाई नज़र नहीं आती है. बिहार में चुनाव (Bihar Elections) को हफ़्ता भर बाक़ी है और बलात्कार (Rape) की घटनाएं रोज़ हो रही हैं लेकिन उस पर किसी को कुछ बोलना नहीं है. कल एक आठ साल की लड़की का बलात्कार हुआ है लेकिन न तो पुष्पम प्रिया को इसके बारे में ख़बर होगी और न तेजस्वी जी को. दोनों को झूठे सपने दिखाने से फ़ुर्सत कहां है? तेजस्वी, दस लाख बेरोजगारों को नौकरी के दिव्यस्वप्न दिखाने में जुटे हैं तो वहीं पुष्पम प्रिया फ़ोटोशूट करवा रही हैं और और बिहार (Bihar) को अनलॉक करवाने का सपना देख रही हैं. जबकि ये बिहार की जनता को भी पता है कि ये मुंगेरीलाल के हसीन सपनों से ज़्यादा कुछ भी नहीं है. आप ख़ुद सोचिए कि जब राज्य के पास पैसे ही नहीं हैं तो तेजस्वी यादव क्या लालू (Lalu Yadav) जी के घोटाले वाले पैसों से युवाओं में नौकरियां बांटेंगे या पहिए वो अपनी पटना वाला प्रॉपर्टी नीलाम करेंगे?
बिहार में चाहे वो पुष्पम प्रिया हों या तेजस्वी यादव किसी को ज़मीनी मुद्दों से कोई मतलब नहीं है
पुष्पम प्रिया पुराने पापियों के बीच में अंग्रेज़ी बोल कर नवयुवकों में अपनी पहचान बनाने की कोशिश में जुटी हैं. लेकिन उनके पैंतरे वही पुराने हैं. वो ग़रीबों के घर जा कर ख़ोईछां यानि आंचल में एक मुट्ठी चावल और साथ में वोट देने का वादा मांग रहीं हैं. जबकि हक़ीक़त उनको भी पता है कि वो कहां स्टैंड करती हैं और बिहार के लिए वो कितना कर पायेंगी.मैंने पिछले दिनों उनका ट्वीटर हैंडल देखा वही आरोप-प्रत्यारोप वाले ट्वीट्स दिखें मुझे.
न तो महिला की सुरक्षा पर उनका एक ट्वीट दिखा और न ही घरेलू हिंसा पर उन्होंने कोई बात की थी. और ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पूरे देश की तरह बिहार में भी स्त्रियों की स्थिति कितनी ख़राब है. आप ऐसे में जब बदलाव की बात करती हैं तो एक औरत होने के नाते मैं उम्मीद करती हूं कि आपकी बातों में इन समस्याओं का भी ज़िक्र हो.
जैसा कि मैंने ऊपर लिखा कि कल बिहार में एक आठ साल की बच्ची का बलात्कार हुआ लेकिन मुझे इस पर न तो पुष्पम प्रिया का ट्वीट दिखा है और न तेजस्वी यादव का. क्या बलात्कार पर आवाज़ तभी उठाना होता है जब लड़की मार दी जाए या मर जाए बताइए?
बिहार से हूं और अभी बिहार में हूं यहां के हालात देख कर सिवाय निराशा के कुछ भी फ़ील नहीं होता है. भीड़ रैलियों में सिर्फ़ नेता जी को देखने या भर पेट भोजन मिल जाए इस लालच में इकट्ठी होती है. ख़ुद सोचिए जो भीड़ खाने के लालच में किसी रैली में शामिल हो रही है वो किस हद तक मजबूर होगी और मज़बूर भीड़ क्या सवाल करेगी?
बिहार को क्रांति की दरकार है लेकिन क्रांति हो इसके लिए न तो हालात हैं और न ही किसी में उतना पैशन. बिहार एक सोया हुआ राज्य है जहां नेता हाईब्रनेट कर रहे हैं. बस.वैसे आप सोच रहे होंगे कि नीतीश कुमार का ज़िक्र यहां क्यों नहीं किया गया है तो वो इसलिए कि मैं उनसे नाउम्मीद हो चुकी हूं. उनसे बदलाव की उम्मीद नहीं है अब. वो मुख्यमंत्री बनें या न बनें बिहार की सेहत पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा तो उनका ज़िक्र क्यों हो भला.
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