रंगदारी से ही होगा ईज ऑफ डूइंग बिजनेस
बिहार में जंगलराज पार्ट टू की वापसी का राग अलापा जा रहा है. क्या वाकई जंगलराज की वापसी हो रही है या फिर कोई बड़ा षडयंत्र रचा जा रहा है? बहरहाल पटना का मोर्या लोक इस बीच दावा कर रहा है कि राज्य में एक बार फिर रंगदारी जरूरी हो रही है.
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पटना के मौर्या लोक की वही साख है जो दिल्ली में कनॉट प्लेस की. बिहार की राजनीति और व्यवसाय का संगम यहीं है. एक हफ्ते में दरभंगा के दो इंजीनियर का कत्ल हो या फिर वैशाली में एक इंजीनियर की एके 47 से भूनकर निर्मम हत्या, मौर्य लोक पर न सिर्फ इसकी गूंज सुनाई दी बल्कि पूरा ब्योरा भी सुनने को मिला कि क्यों इन हत्याओं को अंजाम दिया गया और अब प्रशासन क्या रणनीति बनाने जा रही है. मुख्यमंत्री कार्यालय में हुई कैबिनेट बैठक पर यहां चर्चा कुछ यूं होती है मानो लाइव प्रसारण मौर्य लोक पर किया गया हो. दरभंगा और वैशाली की बैक टु बैक घटना से मौर्य लोक पर बिहार में जंगलराज वापसी की चर्चा उठ खड़ी हुई है. यह भी दलील दी जा रही है कि यह घटनाएं बिहार के सवर्ण जातियों की एक सोची समझी चाल है जिससे सूबे की गरीब और दबे-कुचलों की सरकार की सामाजिक न्याय की कोशिशों को विफल किया जा सके.
बीते एक दशक से बिहार में नीतीश कुमार का सुशासन चल रहा था. लालू प्रसाद यादव और आरजेडी की संगत छोड़कर सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ पकड़ा और राज्य में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए सुशासन का एक नया मॉडल खड़ा किया था. लेकिन 2015 के विधानसभा चुनावों के लिए बने महागठबंधन के गठजोड़ ने सबसे बड़ा धक्का 2005 से राज्य में चले आ रहे सुशासन को दिया है.
2005 में नीतीश के मॉडल ने राज्य से रंगदारी, गुंडागर्दी, मर्डर और किडनैपिंग जैसे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस टूल्स को दरकिनार कर दिया. इन टूल्स के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे प्रोफेश्नल्स को या तो जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया या फिर राजनीति के सफेद रंग से उनके काले धब्बों पर तोपन डाल दी गई. बिहार में अच्छे दिन लौटने के प्रमाण दिखाई देने लगे. पहले कांग्रेस और फिर आरजेडी के कई दशकों का जंगलराज बिहार से विलुप्त होने लगा. राज्य में बदलाव का श्रेय नीतिश की जेडीयू और बिहार बीजेपी को मिला.
2015 के विधानसभा चुनावों से पहले केन्द्र में मोदी की सरकार बन गई. बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी संगत बदल ली क्योंकि लोकसभा चुनावों में बीजेपी सुशासन का पूरा श्रेय अकेले डकार ले गई. लिहाजा, नीतीश ने अपने हिस्से के बचे-कुचे श्रेय को बटोरकर आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जबरदस्त पटखनी दे दी. चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर सत्ता के केन्द्र पर उन्हें बैठा दिया जिन्होंने 2005 के पहले रंगदारी, गुंडागर्दी, मर्डर और किडनैपिंग जैसे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस टूल्स में महारत हासिल कर रखी थी.
अंतर महज इतना है कि इस बार नीतीश के सामने अपने एक दशक के सुशाषन मॉडल में कांग्रेस और आरजेडी के दशकों पुराने मॉडल का समावेश करना है. क्योंकि चुनाव के नतीजों से यह साफ है कि नीतीश कुमार इस बार मुख्यमंत्री बने नहीं बल्कि बनाए गए हैं. लिहाजा, उन्हें अपने उस मॉडल में परिवर्तन करना होगा जो उन्होंने बीजेपी की संगत में रहकर बिहार के लिए गढ़ा था. मौर्य लोक पर डंके की चोट पर कहा जा रहा है कि विधानसभा में लालू की ज्यादा सीटें है इसलिए इन घटनाओं पर लालू प्रसाद की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. दलील यह है कि लालू खुद चाहते हैं कि इस राज में नीतीश कुमार की बदनामी कुछ इस तरह हो जाए की भविष्य में उनकी सत्ता को चुनौती देने का साहस कोई और नीतीश कुमार न करे. लालू की चुप्पी इसलिए है कि जल्द होने राज्य सभा चुनावों में उन्हें पत्नी राबड़ी और बेटी मीसा को राज्यसभा पहुंचाने का रास्ता साफ करना है.
इसमें कोई शक नहीं है कि आरजेडी और जेडीयू की सरकार बनने के बाद राज्य में सड़कें और पुल बनाकर इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा रहा है. लेकिन राज्य में हत्याएं भी शुरू हो गई हैं. मौर्य लोक पर ठेकेदारों, व्यापारियों और धनाड्यों के जमघट में यह आम चर्चा है कि प्रदेश में रंगदारी फिर से शुरू हो चुकी है. धमकी भरे फोन कारोबारियों को लगातार किए जा रहे हैं. जंगलराज दस्तक दे रहा है. हालांकि राज्य के कारोबारियों को अभी नीतीश कुमार के सुशासन पर कुछ भरोसा है और अगले 6 महीने तक वेट एंड वॉच पॉलिसी अपनाई जा रही है. इस भरोसे का ही नतीजा है कि वैशाली की घटना के बाद पुलिस के आला अधिकारियों को तलब कर मुख्यमंत्री ने पहले तो जमकर खरी-खोटी सुनाई और फिर रणनीति बनाने के पहले कुछ संदिग्ध अधिकारियों को कमरे से बाहर जाने को कह दिया. अब इसे मौर्या लोक की खासियत ही कहेंगे वहां इस बात की भी चर्चा हो रही है कि नीतीश ने बिहार से ऑर्गनाइज्ड क्राइम के सफाए के लिए एसटीएफ का गठन कर दिया है और उन्हें माफियाओं के नाम की एक लंबी-चौड़ी हिटलिस्ट थमा दी गई है.
राज्य सरकार दावा कर रही है कि दरभंगा और वैशाली की वारदात राज्य में एक बार फिर से रंगदारी को स्थापित करने की कोशिश है. लेकिन सवाल यह है कि ये कोशिश क्यों ऐसे जिलों से शुरू हो रही है जो जंगलराज पार्ट 1 के दौर में भी सुरक्षित और शांत माने जाते थे. दरभंगा और वैशाली बिहार के उन जिलों में शुमार हैं जहां क्राइम रेट आमतौर पर कम रहता है. इस सवाल से भी पर्दा मौर्या लोक उठाने की कूबत रखता है. बड़े कारोबारियों के झुंड में यह दावा किया जा रहा है कि नीतीश ृ कुमार के सुशासन के दौर में शुरु हुई दबिश से पटना और इर्दगिर्द के जिले से ज्यादातर गिरोह पलायन कर चुके हैं. सरकार की धरपकड़ से बजने के लिए ज्यादातर गिरोहों ने उन जिलों में अपना नया हेडक्वार्टर बना लिया है जहां क्राइम कम हो और जो नेपाल की सीमा से ज्यादा दूर न हों.
लिहाजा आज आरजेडी-जेडीयू की सरकार में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुशासन के पुराने मॉडल को बचाने की है. आने वाले दिनों में कुछ और वारदात और इस बात से भी सस्पेंस उठ जाएगा कि नीतीश के मॉडल में जंगलराज मॉडल का कितना समावेश हो चुका है. फिलहाल, मौर्य लोक के महत्व को समझिए और मान लीजिए कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिए रंगदारी जरूरी है.
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