नीतीश कुमार के दलित कार्ड के बाद सवर्ण कार्ड हैं IPS गुप्तेश्वर पांडेय
गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) अगर बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) के मैदान में उतरते हैं तो वो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का सवर्ण चेहरा होंगे - ऐसा नहीं कि बिहार में सवर्ण नेताओं की कोई कमी है, लेकिन बाहुबलियों के बीच एक ऐसा चेहरा होगा जो पूरी जिंदगी कानून का रखवाला रहा हो!
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बिहार के सबसे सीनियर आईपीएस अफसर गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) ने एक बार फिर राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया है. बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) से ठीक पहले गुप्तेश्वर पांडेय की नयी पारी मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की तरफ लगती है.
बतौर डीजीपी तीन दिन पहले ही जब वो कैमूर पहुंचे तो राजनीति में उनके आने की चर्चाओं को लेकर सवाल भी पूछ लिया गया, जवाब था - रिटायरमेंट के बाद राजनीति में आना पाप है क्या?
गुप्तेश्वर पांडेय के वीआरएस लेने के बाद जब यही सवाल हुआ तो इधर उधर टालने की पूरी कोशिश किये - कहने लगे, 'मेरे लिए समाजसेवा चिंता का विषय है. मैं राजनीति में आये बगैर भी समाजसेवा कर सकता हूं.'
रही बात नीतीश कुमार की तो वो हाल फिलहाल चिराग पासवान के चलते दलितों के साथ दरियादिली दिखाते आ रहे थे, कहीं वो सब भारी न पड़ जाये इसलिए बैलेंस करने के लिए अब वो गुप्तेश्वर पांडेय को सवर्ण कार्ड के तौर पर लेकर आ रहे हैं. निश्चित तौर पर गुप्तेश्वर पांडेय की इसमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा होगी ही, लेकिन नीतीश कुमार ने तो बस उसे सही वक्त पर इस्तेमाल करने का फैसला किया है.
खाकी के बाद खादी की तरफ बढ़े गुप्तेश्वर पांडेय
गुप्तेश्वर पांडेय ने फिर से VRS ले लिया है - और जैसे पहली बार पुलिस सेवा में उनकी वापसी हुई थी, वैसे ही नया एप्लीकेशन भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने तत्काल प्रभाव से मंजूर कर लिया है. बतौर बिहार डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को 28 फरवरी, 2021 को रिटायर होना था, लेकिन छह महीने पहले ही अपनी इच्छा से अवकाश ग्रहण कर लिया है.
गुप्तेश्वर पांडे ने 2009 में भी ऐसे ही वीआरएस लिया था - और करीब 9 महीने बाद बिहार सरकार से गुजारिश की कि वो फिर से वर्दी पहनना चाहते हैं - 1987 बैच के IPS गुप्तेश्वर पांडेय तब पुलिस महानिरीक्षक के पद पर थे और फिर 31 जनवरी, 2019 में उनको बिहार का पुलिस महानिदेशक बना दिया गया.
गुप्तेश्वर पांडेय के तब भी चुनाव लड़ने की चर्चा थी - अब भी वैसी ही चर्चाएं हैं. फर्क ये है कि तब बात लोक सभा की रही और अभी तो विधानसभा चुनाव की ही उम्मीदवारी संभव है. हां, इलाका तब भी बक्सर ही था और अब भी वही लगता है क्योंकि वो उसी इलाके से आते हैं.
एक बड़ा फर्क और भी है वो ये कि गुप्तेश्वर पांडेय तब बीजेपी से जुड़ना चाहते थे और अब उनके जेडीयू से जुड़ने की पूरी संभावना बन रही है. ऐसा मौजूदा समीकरणों, हाल के उनके बयानों और राजनीतिक गतिविधियों में दिलचस्पी के चलते लग रहा है. 2009 के आम चुनाव के पहले गुप्तेश्वर पांडेय के बीजेपी नेताओं से सारे समीकरण सेट हो चुके थे. टिकट मिलना भी करीब करीब पक्का हो चुका था, लेकिन जैसे ही ये बात बीजेपी नेता लालमुनि चौबे को मालूम हुई वो बागी रूख अख्तियार कर लिये. बीजेपी नेताओं को गुप्तेश्वर पांडेय से किये गये अपने वादे से पीछे हटना पड़ा - लिहाजा उनको भी कदम पीछे खींचने पड़े.
गुप्तेश्वर पांडेय को काफी दिनों से वर्दी में होने के बावजूद राजनीति के करीब देखा जाने लगा था. बताते हैं कि बक्सर जाने के बाद वो जेडीयू नेताओं से बराबर मुलाकात करते रहे हैं - और पूछे जाने पर उसे या तो व्यक्तिगत बताते हैं या फिर शिष्टाचार से जोड़ देते हैं. वैसे सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच को लेकर जब राजनीति जोर पकड़ने लगी तो वो भी खुल्लम खुल्ला मैदान में गुर्राते देखे गये.
जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत सिंह राजपूत केस में सीबीआई जांच की मंजूरी दी, डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय और जेडीयू प्रवक्ताओं या बीजेपी नेताओं के बयानों में कोई खास फर्क तो नहीं नजर आया. दो-चार शब्दों की हेरफेर हुई हो तो बात अलग है.
जीतनराम मांझी के बाद नीतीश कुमार के दूसरे ट्रंप कार्ड हो सकते हैं गुप्तेश्वर पांडेय
सुशांत सिंह केस की जांच के लिए जब पटना के एसपी विनय तिवारी को मुंबई में क्वारंटीन किया गया तो गुप्तेश्वर पांडेय की बातें अपने अफसर के साथ हुए दुर्व्यवहार पर रिएक्शन लगा, लेकिन सीबीआई जांच करेगी और वो केस बिहार पुलिस के FIR से जांच आगे बढ़ेगी, ऐसी खबर आते ही गुप्तेश्वर पांडेय मोर्चे पर हाजिर हो गये, बोले - 'रिया चक्रवर्ती की औकात नहीं है कि वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर टिप्पणी करें.'
किसी पुलिस अधिकारी के मुंह से ये सब सुनने के बाद ज्यादा कुछ सोचने समझने की गुंजाइश रह भी कहां जाती है. वैसे वीआरएस मंजूर होने के बाद मीडिया से बातचीत में गुप्तेश्वर पांडेय बोले, 'मेरे लिए समाजसेवा चिंता का विषय है. मैं राजनीति में आए बिना भी समाजसेवा कर सकता हूं. मैं कभी नहीं कहा कि मैं चुनाव लड़ूंगा. बक्सर, औरंगबाद, वाल्मीकिनगर से भी लोग चुनाव लड़ने के लिए बोल रहे हैं. मैंने अभी कोई फैसला नहीं किया है.'
हो सकता है चुनाव लड़ने का कार्यक्रम न भी हो, लेकिन चुनाव प्रचार तो करेंगे ही - बीजेपी की तरफ से महाराष्ट्र से देवेंद्र फडणवीस मैदान में पहले से ही उतर चुके हैं. अब नीतीश कुमारी की तरफ से भी तो कोई होना ही चाहिये - गुप्तेश्वर पांडेय पूरी तरह फिट हैं इसके लिए.
3-इन-1 पैकेज हैं गुप्तेश्वर पांडेय
यूपी और बिहार की राजनीति में सबसे ज्यादा बोलबाला जाति का होता है - और कन्हैया कुमार को अपवाद मान लें तो पार्टी के साथ साथ जाति बिरादरी की भूमिका वोट दिलाने में सबसे ज्यादा होती है. गुप्तेश्वर पांडेय से पहले एक और आईपीएस अफसर सुनील कुमार ने हाल ही में राजनीति का रुख किया है और वो भी नीतीश कुमार के साथ ही. गुप्तेश्वर पांडेय ब्राह्मण हैं जबकि सुनील कुमार दलित समुदाय से आते हैं. समझने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार के पास जीतनराम मांझी के अलावा सुनील कुमार जैसे चेहरे भी हैं.
बिहार की राजनीति में गुप्तेश्वर पांडेय को काफी लोग जन्म से ब्राह्मण और कर्म से भूमिहार भी मानते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस सेवा के दौरान गुप्तेश्वर पांडे भूमिहारों की आबादी और दबदबे वाले इलाकों में भी खूब काम किये हैं और अपराध पर काबू पाने में कामयाब रहे हैं - ये एक बड़ी वजह रही है कि भूमिहार समुदाय के लोग भी उनको अपने जैसा ही मानते हैं. राजनीति में कदम रखने जा रहे किसी भी व्यक्ति के लिए इससे बड़ी बात हो भी क्या सकती है.
शराबबंदी लागू करवाने में भी गुप्तेश्वर पांडेय की अहम भूमिका मानी जाती है और ये बात भी उनको नीतीश कुमार के करीब लाने में महत्वपूर्ण साबित हुई है. शराबबंदी नीतीश कुमार का 2015 का चुनावी वादा रहा और इसे लागू कराना शुरू शुरू में बड़ी चुनौती साबित हो रही थी.
गुप्तेश्वर पांडेय पुलिस सेवा में तभी आये थे जब 80 और 90 के दशक में नरसंहार की घटनाएं काफी हुआ करती रहीं. नक्सलियों के मुकाबले ब्रह्मेश्वर मुखिया ने रणवीर सेना बनायी जिसे लेकर माना जाता है कि सिर्फ भूमिहारों का ही नहीं बल्कि सभी सवर्ण जातियों का दबी जबान समर्थन हासिल रहा. ब्रह्मेश्वर मुखिया को तो भूमिहार समुदाय के लोग देवता की तरह पूजते रहे हैं. उसी दौरान मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की गयी थी और लालू प्रसाद यादव की तरफ से नारा आया - 'भूरा बाल' साफ करो. भूरा बाल से आशय सवर्णों से ही रहा.
अब अगर नीतीश कुमार और बीजेपी बीलालू-राबड़ी शासन के जंगलराज की याद दिलाते हैं तो बाकियों के लिए भले ही विकास और कानून व्यवस्था का मतलब हो, लेकिन सवर्णों के लिए 'भूरा बाल' की ही याद दिलाने की कोशिश होती है.
हाल फिलहाल सवर्णों में जो भी नेता हैं वे बाहुबली हैं और ये बड़े दिनों बाद हो रहा है कि कोई कानून का रखवाला उनके बीच आ रहा है - इस तरह खुद की सुशासन बाबू वाली छवि के साथ नीतीश कुमार अपने दलित चेहरे जीतन राम मांझी और ब्राह्मण फेस गुप्तेश्वर पांडेय के साथ चुनाव मैदान में ताकत बढ़ाने में लगे हुए हैं.
एक अनुमान के मुताबिक बिहार में करीब 5 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं - और इसी के इर्द गिर्द भूमिहार और राजपूत वोट भी. गुप्तेश्वर पांडेय को खुद के ब्राह्मण होने का फायदा तो मिलेगा ही, भूमिहार वर्ग के अपनाफन का भी लाभ मिलेगा ही और जब ये सब हो सकता है तो राजपूतों को जोड़ लेने की कोशिश तो हो ही सकती है. गुप्तेश्वर पांडेय चुनाव प्रचार में ये तो बताएंगी ही कि कैसे नीतीश कुमार की बदौतल वो सुशांत सिंह राजपूत केस को जांच तक पहुंचाने में लगे रहे और फिर पीछे पीछे बीजेपी के लोग भी तो याद दिलाते ही रहेंगे - ना भूलेंगे, ना भूलने देंगे. ऐसा देखा जाये तो नीतीश कुमार के लिए गुप्तेश्वर पांडेय अकेले ही 3-इन-1 पैकेज साबित हो सकते हैं.
अभी तो हाल यही है कि गुप्तेश्वर पांडेय का भी भविष्य और किस्मत कनेक्शन नीतीश कुमार से वैसे ही जुड़ा हुआ है जैसे खुद उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से - क्योंकि बिहार में सत्ता विरोधी लहर की काट तो सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं.
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