दही-चूड़ा के बहाने नीतीश-भाजपा में खिचड़ी तो नहीं पक रही?
बिहार में इस मकर संक्रांति एक अन्य स्वाद की खिचड़ी तैयार की जा रही है. इस राजनीतिक खिचड़ी को बनाने के लिए सारे मसाले आ गए हैं और हांडी भी तैयार है. अब देखना ये है कि इस खिचड़ी का स्वाद किसे अच्छा लगता है और किसका मुंह जलता है.
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मकर संक्रांति यानि दही-चूड़ा और खिचड़ी का भोज. बिहार, यूपी में बिना चूड़ा, दही और खिचड़ी के मकर संक्रांति का पर्व अधूरा माना जाता है. ये तो बात हुई धार्मिक पर्व की. दरअसल हम जो आज बात करने जा रहें हैं वो है सियासत की दही-चूड़ा और खिचड़ी.
आपने इस देश में चौपाल से लेकर चाय पर राजनीतिक चर्चा तो सुनते ही आ रहें हैं लेकिन आज यह चर्चा दही-चूड़ा तक का सफर तय कर लिया है. जी हाँ, हम बात कर रहें हैं बिहार की जहां मकर संक्रांति के पूण्य पर्व पर जमकर सियासत देखने को मिल रही है. सर्द मौसम में भी गर्म है सियासत की राजनीति.
एक तरफ जहां मकर संक्रांति के भोज पर लालू यादव के घर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहुंचे वहीं जेडीयू ने अगले ही दिन दही-चूड़ा का भोज रखा है जिसमे बीजेपी नेता सुशील मोदी को भी निमंत्रण दिया गया है, जिस पर कांग्रेस ने नाराजगी जाहिर की है. जदयू की ओर से चार साल में पहली बार भाजपा को न्योता दिया गया है.
बिहार की राजनीति अब गठबंधन के करीब पहुंच रही है |
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच बढ़ती नजदीकियों से कांग्रेस परेशान नजर आ रही है. कांग्रेस ने भोज में शामिल नहीं होने के संकेत दिए हैं
बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा, "जेडीयू ने बीजेपी को भोज पर क्यों बुलाया, ये तो वशिष्ठ नारायण सिंह ही बता सकते हैं. पिछले दो साल से भाजपा को न्योता नहीं दिया गया. इस साल ऐसी क्या बात हो गई कि उन्हें न्योता मिला है. मुझे नहीं लगता कि अभी महागठबंधन में कोई दिक्कत है.
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बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा "इतने सम्मान से बुलाया गया है, तो मैं जरूर आऊंगा. कल नितिन गडकरी भी आ रहे हैं, लेकिन इन व्यस्तताओं के बाद भी मैं जाऊंगा. इस भोज का राजनीतिक मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए. हालांकि, हमने मिलकर साढ़े सात साल सरकार भी चलाई है. लेकिन, ये केवल एक भोज है."
इन सभी बयानबाजियों के बीच सवाल उठना वाज़िब ही है कि दही-चूड़ा पर भोज के बहाने नीतीश और बीजेपी में कहीं कुछ 'खिचड़ी' तो नहीं पक रही?
हाल के दिनों में नीतीश कुमार के फिर से उभरते 'बीजेपी प्रेम' किसी से छिपा नही है. पहले नोटबंदी पर पीएम मोदी की तारीफ फिर प्रकाश पर्व पर पटना में मंच साझा कर नीतीश ने ऐसी चर्चाओं को और बल दिया है. जब प्रकाश पर्व में नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सीट साझा की थी तब भी राजद ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की थी.
जब मोदी सरकार ने PoK में सर्जीकल स्ट्राइक की थी तब भी नीतीश कुमार का सपोर्ट प्रधानमंत्री को मिला था. ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी ने भी बिहार में शराबबंदी पर नीतीश कुमार का जमकर तारीफ की थी.
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राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बीच 10 माह से अघोषित शीत युद्ध जारी है. कहा जाता है कि इस शीत युद्ध का मुख्य कारण है शराबबंदी. सूत्रों का कहना है कि शराबबंदी को लेकर लालू और नीतीश के बीच देशी शराब की बिक्री पर रोक की बात हुई थी लेकिन नीतीश कुमार ने देशी और विदेशी दोनों तरह की शराब की बिक्री राज्य में बंद करा दी.
इन सारे समीकरणों को देखने के बाद यही समझ में आता है कि नीतीश और बीजेपी के बीच खिचड़ी जल्द ही पक कर तैयार होने वाली है और इस खिचड़ी से किसी को स्वाद मिलेगा तो किसी का मुह भी जल सकता है!
हालांकि, समय-समय पर महागठबंधन की राजनीति के तीनों धड़े - जदयू-राजद-कांग्रेस यह बयान जरूर जारी करते रहे हैं कि गठबंधन में कोई समस्या नहीं है. लेकिन यह कहावत भी सही है कि राजनीति में कोई स्थाई रूप से ना तो दोस्त होता है और ना कोई दुश्मन!
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