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Updated: 16 नवम्बर, 2019 06:43 PM
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महाराष्ट्र की राजनीति किस रास्ते आगे बढ़ रही है, समझना बार बार मुश्किल हो रहा है? जब लगता है कि जनादेश के मुताबिक सरकार (Government Formation in Maharashtra) बनेगी तभी मालूम होता है कि नहीं सब कुछ उलटा-पुलटा होने जा रहा है - और तभी एक नया ट्विस्ट सामने प्रकट हो जाता है.

जब सभी मान कर चलते हैं कि बीजेपी और शिवसेना की गठबंधन (BJP-Shiv Sena Alliance) सरकार बन रही है, तभी शिवसेना गठबंधन तोड़ कर नये तरीके से सरकार बनाने का इशारा कर देती है. शिवसेना अभी NCP और कांग्रेस की मदद से सरकार और उससे पहले कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (CMP) फाइनल कर रहे हैं और बीजेपी एक बार फिर रिवर्स गियर लेकर कहने लगी है कि सरकार तो वही बनाएगी. आखिर चल क्या रहा है महाराष्ट्र में?

ये तो सभी समझ रहे हैं कि महाराष्ट्र में सरकार गठन के केंद्र एनसीपी नेता शरद पवार बने हुए हैं - लेकिन ये सभी के समझ से परे हैं कि 2014 में बीजेपी की सरकार का सपोर्ट कर चुके शरद पवार क्या इस मोड़ पर आकर शिवसेना को झटका दे देंगे?

सरकार बनाने और बिगाड़ने वाले हैं पवार!

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से सारी बातें और मुलाकातें किसानों के नाम पर चल रही हैं. ऐसे ही ताजा घटनाक्रम में कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात कर रहा है. खास बात ये है कि ये मुलाकात सरकार बनाने को लेकर नहीं, बल्कि राज्य में कृषि संकट पर तत्काल सहायता मांगने के लिए है. तीनों दलों ने मिलकर सरकार बनाने का एक फॉर्मूला निकाला है जिसके तहत शिवसेना को पूरे पांच साल के लिए मुख्यमंत्री पद मिलेगा जबकि कांग्रेस और एनसीपी के हिस्से में एक-एक डिप्टी सीएम होंगे. शिवसेना को मुख्यमंत्री पद के अलावा 14 मंत्री भी मिलेंगे. साथ ही एनसपीपी और कांग्रेस को एक-एक डिप्टी सीएम के अलावा क्रमशः 14 और 12 मंत्री पद मिलेंगे.

गनीमत बस ये है कि शरद पवार और सोनिया गांधी की प्रस्तावित मुलाकात को किसानों से नहीं जोड़ा गया है. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड्गे के मुताबिक ये मुलाकात 17 नवंबर को होने जा रही है. अब तक तो यही समझा जाता रहा कि ये मुलाकात महाराष्ट्र में बनने जा रही सरकार पर फाइनल मुहर लगाने की आखिरी मीटिंग होगी - लेकिन बीजेपी के नये बयान के बाद शक की गुंजाइश फिर से बनने लगी है.

अब तक बीजेपी कह रही थी कि वो अगर सरकार बनाएगी तो सिर्फ शिवसेना के साथ, वरना विपक्ष में ही बैठना पसंद करेगी. कहने को तो शरद पवार भी यही कहते रहे कि एनसीपी को विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है और वो उसी पर कायम रहेंगे, लेकिन फिर मालूम हुआ परदे के पीछे सरकार बनाने वाली कोशिशों में व्यूह रचना कर रहे हैं.

devendra fadnavis, sharad pawar, uddhav thackerayफडणवीस की सरकार बनाएंगें या उद्धव ठाकरे की सरकार बिगाड़ेंगे शरद पवार?

लगता है बीजेपी को अब विपक्ष में बैठने का फैसला ठीक नहीं लग रहा है. तभी तो वो फिर से सरकार बनाने का दावा करने लगी है. महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल का दावा है कि महाराष्ट्र बीजेपी ही सरकार बनाएगी. चंद्रकांत पाटिल ने दोहराया कि 'हमारे पास सबसे ज्यादा विधायक हैं'.

महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष ने अपने पक्ष में विधायकों की संख्या 119 बतायी है जिनमें 105 तो पार्टी के ही हैं, बाकी 14 निर्दलीय विधायक हो सकते हैं. अगर बीजेपी के साथ 119 विधायक हैं तो भी सरकार बनाने के लिए उसे 145 विधायकों का समर्थन चाहिये होगा.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एक ट्वीट किया है जो बीजेपी के सरकार बनाने से जोड़ कर देखा जा रहा है - हांलाकि, फडणवीस ने साफ तौर पर बस इतना कहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी को छोड़ कोई स्थाई सरकार नहीं दे सकता.

शिवसेना बार बार बीजेपी को चैलेंज करती रही है कि 145 का नंबर हो तो वो सरकार बना ले - तो क्या बीजेपी ने शिवसेना का चैलेंज स्वीकार कर लिया है?

सवाल है कि बीजेपी के पास 119 के आगे के नंबर जुटाने का प्लान क्या है? अब तक जो कुछ हो चुका है उससे ये तो नहीं संभव नहीं लगता कि शिवसेना और बीजेपी फिर से अभी साथ आ सकते हैं. बाद की बात और है.

ऐसे में विकल्प बचता ही कितना है? शिवसेना नहीं तो कांग्रेस के साथ तो कोई बात बनने से रही. फिर ले देकर एनसीपी ही बचती है - और एक बार फिर से शरद पवार पर ही सारी संभावनाएं आकर टिक जाती हैं.

क्या बीजेपी के लिए पवार शिवसेना को छोड़ देंगे

एक बात तो पक्की है बीजेपी और शिवसेना के साथ मिल कर सरकार नहीं बनाने की सूरत में शरद पवार की पार्टी एनसीपी ही वो फैक्टर है जो किसी की भी सरकार बनवा सकती है और कोई भी समीकरण बिगाड़ भी सकती है.

अब अगर जनादेश का सम्मान करते हुए शरद पवार शिवसेना के साथ जा सकते हैं तो उसे छोड़ कर बीजेपी के साथ चले जाने में क्या बुराई है?

शरद पवार ने बड़ी ही मुश्किल से बिलकुल प्रतिकूल हालात में एनसीपी को इस चुनाव में खड़ा किया है. चुनाव से पहले उनके एक से बढ़ कर एक करीबी साथी छोड़ कर या तो बीजेपी में चले गये या फिर शिवसेना में. शरद पवार के पास कोई चारा बचा भी न था और एक तरह से सिर पर कफन बांध कर ही वो चुनावी जंग में कूद पड़े.

ED के FIR ने शरद पवार की राजनीतिक मदद की और कहीं कुछ बाकी बच रहा था तो सतारा की बारिश ने पवार विरोधियों के सारे अरमानों पर पानी ही फेर दिया. अब जबकि इतने बड़े तूफान से एनसीपी की छोटी सी कश्ती पवार इस उम्र में निकाल कर लाये हैं तो मौका हाथ से कैसे जाने दें भला. जो भी फैसला लेना है नफा-नुकसान सोच समझ कर ही तो लेना है. वरना, शरद पवार के लिए अगर एनसीपी के पास नेतृत्व नहीं है फि क्या फर्क पड़ता है शिवसेना या बीजेपी के साथ जाने से.

रही बात कांग्रेस की तो फिलहाल महाराष्ट्र में शरद पवार को उसकी कतई जरूरत नहीं है. कांग्रेस के पास महाराष्ट्र में नेताओं के नाम पर चव्हाण और शिंदे जैसे ही हैं और उनमें से कोई भी शरद पवार के कद का नहीं है. कांग्रेस को जो कुछ मिला है उसमें शरद पवार के साथ गठबंधन का भी फायदा मिला ही होगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. वैसे भी शरद पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस को जमने देना तो चाहेंगे नहीं.

महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता शुरू से ही सरकार में शामिल होने के पक्ष में हैं. विधायकों के पाल बदल लेने के डर से कांग्रेस ने राजस्थान के रिजॉर्ट तक में भेज दिया था. विधायकों को होटल में भेजा तो शिवसेना ने भी था. क्या शरद पवार को विधायकों के टूटने का खतरा नहीं लग रहा होगा? वो भी तब जबकि चुनाव से पहले ही पूरा कुनबा तकरीबन खाली हो चुका था.

शिवसेना के साथ सरकार बनाकर शरद पवार को एक कमांड के सिवा क्या हासिल हो सकता है? दूसरी तरफ बीजेपी के साथ हाथ मिलाने का फायदा ही फायदा है. कुछ मीडिया रिपोर्ट भी ऐसे ही इशारे कर रहे हैं.

ऐसी ही एक रिपोर्ट में एक कांग्रेस नेता की दलील है कि NCP महाराष्ट्र के पांच जिलों तक सीमित पार्टी है. पवार को भी मालूम है कि ताउम्र गठबंधन की राजनीति करनी है, ऐसे में वो सूबे के साथ साथ सेंटर में भी ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहेंगे.

रिपोर्ट में कांग्रेस नेता का बड़ा ही जबरदस्त सवाल भी है, 'आखिर शिवसेना का मुख्यमंत्री बनवाने में एनसीपी दिलचस्पी ही क्यों लेगी? ये साफ है कि कई मामलों में फंसे पार्टी नेताओं को दिल्ली के साथ समझौता करके तत्काल राहत मिल सकती है.' बात में दम तो है.

एक घटना और भी हुई है. जब तक शिवसेना और कांग्रेस की सीधी बात नहीं हो रही थी सब कुछ शरद पवार के मन मुताबिक चल रहा था. बात आगे बढ़ी और सीधी मुलाकात तक पहुंच गयी और भेद खुल गया. खबर आयी थी कि शरद पवार शिवसेना और कांग्रेस दोनों को अंधेरे में रख कर अपने मन की बात कर रहे थे. फिर दोनों ने तय किया कि वे आगे से ऐसी बातों का पूरा ख्याल रखेंगे.

शरद पवार को मालूम है कि कांग्रेस क्यों और कैसे उनकी छत्रछाया स्वीकार की है, अगर वो शिवसेना के करीब चली जाये तो उन्हें कौन पूछेगा? वैसे भी कांग्रेस को पांव पसारने और जमाने का मौका किसी भी वजह से मिलने लगे ये तो शरद पवार हरगिज नहीं चाहेंगे - और ऐसे हालात ही हैं जो शरद पवार के शिवसेना और कांग्रेस को छोड़ बीजेपी से हाथ मिलाने का संकेत दे रहे हैं.

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