यूपी का रिकॉर्ड गुजरात में दोहराने की रणनीति बनना शुरू
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिली 300 से ज्यादा सीटों की जीत ने गुजरात के बीजेपी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है, दरअसल गुजरात में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं
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उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिली 300 से ज्यादा सीटों की जीत ने गुजरात के बीजेपी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा दिया है, दरअसल गुजरात में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वैसे गुजरात भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश की ये जीत काफी मायने रखती थी, क्योंकि इस जीत से ही उसे गुजरात चुनाव के लिए हौसला मिला है.
उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजों के बाद बार-बार ये कहा जा रहा था कि अगर बीजेपी पुर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतती है तो गुजरात में जल्द ही चुनाव कि धोषणा भी हो सकती है. आज जब युपी चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी दफ्तर पर नारे लगना शुरु हो गए- 'युपी 300 तो गुजरात 150 साफ है.' ये नारा गुजरात में आने वाले चुनाव कि आहट के तौर पर सुनाए दिए जा रहे हैं.
गुजरात में बीजेपी के लिए इस साल सबसे बडी समस्या नेतृत्व कि कमी को ही माना जा रहा है, दरअसल नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनकर 2014 में दिल्ली जाने के बाद गुजरात में आनंदीबेन ने कमान संभाली. लेकिन, आनंदीबेन के नेतृत्व में हुए पाटीदार आंदोलन, दलित आंदोलन ओर ओबीसी आंदोलन ने गुजरात कि राजनीति में चिंगारी को ऐसी हवा दि जो आग बन कर खुद आनंदीबेन पटेल को ही जला गई.. वेसे में विजय रुपानी को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन पहले से अमित शाह के रबर स्टेम्प के तौर पर पहचाने जाने वाले विजय रुपानी के आने के बाद भी बीजेपी की अंदर की राजनीति खत्म होने का नाम नही ले रही है.
वैसे सबसे बडा सवाल यही है कि आखिर गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी कि ओर से वो चहेरा कोन सा होगा... लेकिन युपी में बीना चहेरे की मिली इस जीत ने गुजरात बीजेपी के कार्यकर्ता को अब सिर्फ नरेन्द्र मोदी का चहेरा बना दिया गया है. लोग अब बीजेपी पार्टी को नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को वोट दे रहे हैं. जो सीधा-सीधा गुजरात में खाली पडी नेतृत्व की कमी को पुरा कर पायेगा.
2002 के दंगो के बाद गुजरात में हिन्दू V/S मुस्लीम यानी बीजेपी बनाम कांग्रेस की ये लडाय चल रही थी, जहां नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुओ कि अंदर की जाती को खत्म कर उन्हे हिन्दू बनाया था.. वहीं नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरु हुई पाटीदार, दलित ओर ओबीसी कि अलग-अलग मांग और आंदोलनों ने एक बार हिन्दू बनी गुजरात कि जनता को जातीवादी राजनिती में बाट दिया है. वैसे युपी की जीत ने उस जातीवादी राजनीति को करारा जवाब दिया है जिसे अब तक समाजवादी पार्टी ओर बहुजन समाजवादी पार्टी खेला करते थे...
हिन्दुत्व कि प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में बीजेपी इस साल बीजेपी ओर कांग्रेस के साथ-साथ अरविंद केजरीवाल कि आम आदमी पार्टी भी मैदान में है, वेसे आम आदमी पार्टी बीजेपी के लिए एक बडा खतरा मानी जा रही थी, क्योंकि जो वर्ग बीजेपी से नाराज चल रहा है, हो सकता है वो कोग्रेस को वोट ना देकर आम आदमी पार्टी को वोट दे. लेकिन, जिस तरा पंजाब में आम आदमी पार्टी का सुपडा साफ हो गया है उससे बीजेपी का आत्मविश्र्वास भरा है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ओर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दोनों का ये गृहराज्य है और खास कर भाजपा के लिए गुजरात नाक का सवाल रहता है, वैसे बीजेपी कौन सी नई रणनीति अपनाती है गुजरात के लिये ये देखना तो काफी दिलचस्प होगा. लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव ने नतीजों ने काफी हद तक बीजेपी कि अंधरूनी राजनीति को सतह पर आने से रोक दिया है.
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