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Updated: 20 अप्रिल, 2017 07:08 PM
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बाबरी मस्जिद केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश बीजेपी के खिलाफ है. फिर भी नेताओं के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. वैसे भी बीजेपी की राजनीति जिस एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश उसके लिए फायदेमंद ही नजर आता है.

1992 में लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोकने वाले लालू प्रसाद यादव इसे अलग तरीके से देखते हैं. लालू की नजर में इसके पीछे साफ मकसद है - राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की रेस से आडवाणी को बाहर करना. मालूम नहीं राष्ट्रपति पद के लिए आडवाणी की उम्मीदवारी को लेकर लालू कब से इतने गंभीर हो गये? दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने भी लालू की बात को खारिज नहीं किया है.

ताज्जुब की बात ये है कि बात बात पर सत्ता पक्ष के नेताओं का इस्तीफा मांगनेवाली सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने ऐसी कोई औपचारिक मांग रखी ही नहीं. आखिर क्यों? क्या कांग्रेस की खामोशी में कट्टर हिंदुत्व एजेंडे के खिलाफ सीधे खड़े होने से किसी तरह के परहेज की बात है?

बोलती बंद

अपनी दलील को सही साबित करने के लिए लालू ने सीबीआई को टूल बनाया है. लालू का इल्जाम है कि ये सभी जानते हैं कि सीबीआई वही करती है जो केंद्र सरकार चाहती है क्योंकि सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन आती है. लालू ने बीजेपी और उसके सहयोगी संगठनों को बेहद खतरनाक बताते हुए कहा है कि ये लोग अपने पराये का भी ख्याल नहीं रखते. मीडिया से बातचीत में लालू बोले, 'नरेंद्र मोदी के हाथ में ही सीबीआई है, इसलिए इस तरह के कारनामों के लिए वह क्या कह सकते हैं?'

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका था - और कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया को बीजेपी नेताओं के खिलाफ बड़े हमले की अपेक्षा थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. कांग्रेस नेता अमेरिका के वीजा नियमों से होने वाले नुकसान और राहुल गांधी के कश्मीर पर ट्वीट में ज्यादा दिलचस्पी दिखी. बाबरी केस में नाम आने के बाद केंद्रीय मंत्री उमा भारती के इस्तीफे की बाबत पूछे जाने पर भी जवाब मिला - 'ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नैतिकता की समझ पर निर्भर है.'

rahul-gandhi-ayodhya_042017040152.jpgयूपी चुनाव से पहले राहल गांधी अयोध्या भी गये थे...

रणदीप सूरजेवाला ने कहा - 'न्याय होना चाहिये और दोषियों को सजा मिलनी चाहिये,' तो कपिल सिब्बल बोले, 'अब कम से कम ये पता चल गया है कि कानून का महत्व बरकरार है.'

एके एंटनी को छोड़ कर किसी भी कांग्रेस नेता ने सीधे सीधे न तो उमा भारती के इस्तीफे की मांग की और न कल्याण सिंह के. एंटनी ने जरूर कहा, 'उमा भारती को केंद्रीय मंत्री के तौर पर और कल्याण सिंह को राज्यपाल के तौर पर इस्तीफा दे देना चाहिये.'

क्या धर्मनिरपेक्षता पर सीधी बहस में कांग्रेस पिछड़ रही है? या फिर लगातार हार से हताश कांग्रेस कोई जोखिम मोल लेने को तैयार नहीं है? वस्तुस्थिति तो ये है कि हर पार्टी के पास अपना अपना प्रासंगिक एजेंडा है - और उसके बल पर वे सभी अपने अपने वोट बैंक से लगातार संवाद स्थापित किये हुए हैं.

यूपी में मायावती लगभग जीरो बैलेंस पर चल रही हैं, लेकिन उनके एजेंडे में कोई दुविधा नहीं है - दलितों की आवाज. और कुछ नहीं तो EVM के झुनझुने की मदद से भी मायावती कुछ दिन दलितों के दिल में बनी रह सकती हैं.

यूपी में ही समाजवादी पार्टी भी अपने यादव वोट बैंक और बीजेपी विरोध के एजेंडे के साथ अभी कई साल तक मजबूती से खड़ी रह सकती है. लालू प्रसाद यादव के पास भी आरक्षण खत्म करने के विरोध में खड़े होने का मजबूत एजेंडा है जो ऐसी किसी स्थिति में शोर मचाने के लिए काफी है. वैसे तो बीजेपी अपनी सियासी चाल से केजरीवाल की कमर तोड़ने में जुटी हुई है - फिर भी केजरीवाल के पास आम आदमी को जोड़े रखने के लिए भ्रष्टाचार और विरोध की निडर आवाज जैसे हथियार हैं जो उन्हें कई साल तक टिकाये रख सकते हैं.

लेकिन कांग्रेस क्या करे? कांग्रेस ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं पेश कर पाई है जिससे लोगों को कोई उम्मीद बंधे. यूपी में कांग्रेस ने किसानों से मांग पत्र भरवाये, समाजवादी गठबंधन के संयुक्त कार्यक्रम में भी शामिल कराया - लेकिन बीजेपी की सरकार बन गई और योगी आदित्यनाथ ने उसे पूरा कर दिया. साल दर साल के गुजरते वक्त के साथ जो वोट बैंक कांग्रेस से समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने छीन लिया था - फिलहाल वो बीजेपी की ओर जा चुका है. ले देकर मुस्लिम वोट बचा है तो कांग्रेस के अलावा अब भी उसके दो दावेदार अखिलेश यादव और मायावती हैं. हो सकता है दलित-मुस्लिम गठजोड़ का एक्सपेरिमेंट फेल होने के बाद मायावती मुस्लिम वोट का चक्कर त्याग दें - फिर भी क्या उसी वोट के भरोसे कांग्रेस कुछ कर भी सकती है?

बल्ले बल्ले

नये जमाने की बीजेपी इतना फासला लेकर तेजी बढ़ती जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उसके मेनस्ट्रीम की सेहत पर असर नहीं होने वाला. प्रभावित वे लोग हैं जो हाशिये पर भेजे जा चुके हैं या फिर पहुंच गये हैं. मेनस्ट्रीम से ले देकर एक उमा भारती हैं - और कुछ हद तक कल्याण सिंह. बीजेपी को सबसे बड़ा फायदा मिलेगा कि अगले दो साल तक योगी-योगी कराने के लिए हर रोज नये नये मुद्दे तलाशने की जरूरत नहीं पड़ेगी. 2019 तक एक एक करके कई विधानसभाओं के चुनाव भी हो चुके होंगे.

बीच बीच में अयोध्या मामला यानी मंदिर कहां बनेगा - का हल भी ढूंढा जाता रहेगा. दो साल की सुनवाई के बाद यानी 2019 में संभव है चुनाव से पहले कोर्ट का फैसला आ जाये. फैसला जो भी आये बीजेपी को फायदा मिलना तय है.

अगर बीजेपी नेताओं को दोषी करार दिया जाता है तो सियासी शहीदों की नयी कतार सहानुभूति बटोरने निकल पड़ेगी - और अगर बाइज्जत बरी हो गये तो वैसे भी बल्ले बल्ले है.

ये तो साफ है कि कांग्रेस के लिए आगे कुआं और पीछे खाई जैसी स्थिति पैदा हो गयी है. मामला हिंदूत्व का है - बीजेपी नेताओं के खिलाफ बोल कर वो एक साथ बहुसंख्यक हिंदू वोटों को नाराज नहीं करना चाहती, ऐसी भी वजह हो सकती है.

ज्यादा दिन नहीं हुए, यूपी चुनाव में कसाब से लेकर कब्रिस्तान विमर्श तक छाया रहा और कांग्रेस सेफ मोड में चलने को मजबूर दिखी. यूपी चुनाव से पहले पिछले साल सितंबर में अयोध्या भी गये थे. एमसीडी चुनाव सिर पर है - हिमाचल प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरे हैं - और जल्द ही उसे गुजरात के मैदान में भी उतरना है. तो क्या कांग्रेस अब इसलिए खामोश है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से तीन दिन पहले ही उसने अपना राजनीतिक दर्शन बता दिया है?

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