4 कारण, जिससे यूपी में बीजेपी का सपना टूट सकता है
इंडिया टुडे - एक्सिस ओपिनियन पोल सर्वे बता रहा है कि यदि आज चुनाव हो जाएं उत्तर प्रदेश में भाजपा को सीधा-सीधा बहुमत मिल रहा है. लेकिन इस सर्वे के नतीजे और चुनावी नतीजे के बीच बहुत बड़ी खाई है.
-
Total Shares
यदि उत्तर प्रदेश के वोटरों को मिलाकर एक देश बना दिया जाए तो आबादी के मान से यह दुनिया का दसवां सबसे बड़ा देश होगा. इतने लोगों की पसंद बनना आसान नहीं है. लेकिन बीजेपी 14 साल बाद ये सपना देख रही है. दाव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि, नोटबंदी को मिले जनसमर्थन और विकास के दावे पर. लेकिन यूपी का दिल जीतना इतना भी आसान नहीं है.
|
12-24 दिसंबर 2016 के बीच हुए 'इंडिया टुडे - एक्सिस ओपिनियन पोल सर्वे' के बाद से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में काफी हवा बदली है. नोटबंदी वाला '50 दिन' का दौर पूरा हो गया है. समाजवादी पार्टी का गृह कलह और तीखा हुआ है. अखिलेश यादव को सपा का सर्वेसर्वा घोषित कर दिया गया है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की चर्चा हो रही है. और बसपा ने बढ़-चढ़कर मुसलमानों को टिकट दिए हैं.अब बड़ा सवाल, क्या ये बातें चुनावी नतीजों को सर्वे के नतीजों से दूर ले जाएंगी?
इसकी संभावना बिलकुल बनी हुई है. क्योंकि बसपा ही नहीं, आपसी झगड़े में उलझी हुई सपा अब भी दोबारा सत्ता में आने की गंभीर कोशिश कर रही है. अब देखिए क्या परिस्थितियां हैं, जो बीजेपी की बनती बात बिगाड़ सकती है:
1. चूंकि, नोटबंदी का कोई बड़ा सीधा-सीधा फायदा सामने नहीं आया है. एटीएम और बैंकों में कैश की कमी अब भी जारी है. यदि ऐसा दो महीने और चलता रहा तो लोगों की परेशानी बीजेपी के खिलाफ गुस्से में बदल सकती है. और यह बीजेपी के लिए चुनाव में नुकसानदायक हो.
2. अखिलेश यादव ने सभी राजनीतिक पंडितों को चौंकाते हुए समाजवादी पार्टी पर लगभग कब्जा कर लिया है. पूरी सपा उनके पास रहे न रहे, लेकिन अपनी कोशिशों से उन्होंने यह जता दिया है कि वे रिमोट कंट्रोल से संचालित होने वाले नेता नहीं हैं. एक मुख्यमंत्री के रूप में इंडिया टुडे का सर्वे उन्हें सबसे पसंदीदा (33%) उम्मीदवार बना रहा है. जैसा कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ था. चूंकि बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी भाजपा बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ने जा रही है. ऐसे में उसका दावा कमजोर होने की आशंका है.
मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव पहली पसंद. |
3. यूपी में कांग्रेस अपना दावा छोड़ चुकी है. छह महीने पहले प्रशांत किशोर के नेतृत्व में उसने सत्ता में आने की कोशिश शुरू की थी, लेकिन अब पार्टी की सीएम उम्मीदवार शीला दीक्षित कह रही हैं कि अखिलेश के रूप में उन्हें सीएम उम्मीदवार मंजूर है. यानी कांग्रेस अखिलेश यादव के साथ गठबंधन के लिए एक पैर पर तैयार है. जबकि बीजेपी अब तक यूपी में कांग्रेस के आरोपों का ही जवाब देती रही है, ऐसे में कांग्रेस विरोध उत्तर प्रदेश में किसी काम नहीं आने वाला है.
4. उत्तर प्रदेश में एक लंबे अरसे से समाजवादी पार्टी के असंतोष का फायदा सबसे पहले बसपा को मिलता आया है. यदि सपा सरकार के राज में यदि कानून-व्यवस्था पर सवाल उठते हैं तो उसी समय यह भी कहा जाता है कि मायावती को पता है कि कानून-व्यवस्था कैसे ठीक की जाती है. आगामी चुनाव के लिए मायावती ने मुस्लिम वोटबैंक को अपनी ओर खींचने की आक्रामक रणनीति बनाई है. यूपी की सभी सीटों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित करते हुए मायावती ने 97 टिकट मुसलमानों को दिए हैं. तो यदि सपा का झगड़ा नहीं सुलझता है. तो परंपरागत दलित और उसमें जुड़ जाने वाले मुसलमानों के वोट के साथ बसपा यूपी में बड़ा कमाल करते हुए सर्वे के विपरीत तीसरी पार्टी से सत्ताधारी पार्टी बन सकती है.
मोदी उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि कह रहे हैं. लेकिन उनके इस भावनात्मक नारे को बड़ा धक्का पहुंच सकता है. असली तस्वीर फरवरी के पहले सप्ताह में सामने आने वाले ओपिनियन पोल सर्वे के बाद ही पता चलेगी, जब यूपी में चल रहा सियासी भंवर थमेगा.
#Battle2017 Who is going to win if elections are held today? Find out what India Today-Axis Opinion Poll says.Watch https://t.co/K98uRtPVDd pic.twitter.com/94UDMtc3Wd
— India Today (@IndiaToday) January 4, 2017
आपकी राय