बीजेपी का कोरोना मुक्त बूथ अभियान क्या राहुल गांधी के दबाव का नतीजा है
पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियों को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की पहल का ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर असर हो न हो, ऐसा लगता है बीजेपी दबाव में जरूर आ गयी है - जेपी नड्डा (JP Nadda) ने कोरोना मुक्त बूथ अभियान को हरी झंडी दिखायी है.
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कोविड के बुरी तरह फैलने असर राजनीतिक दलों पर पड़ने लगा है. कोविड को लेकर राजनीतिक विरोध तो बढ़ा ही है, बेकाबू कोरोना वायरस और बेहाल परेशान लोगों का जगह जगह फूट रहा गुस्सा राजनीतिक दलों के नेताओं के कानों में भी लगता है गूंजने लगा है.
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पश्चिम बंगाल में अपनी आगे की रैलियां रद्द कर भले ही राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर आ गये हों, लेकिन बीजेपी पर उसका काफी तेज असर हुआ लगता है. दरअसल, राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में आगे की अपनी सारी रैलियां रद्द करते हुए दूसरे राजनीतिक दलों से भी ऐसा ही करने की अपील की है.
अब अगर तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) भी राहुल गांधी की तरह ही अपनी चुनावी रैलियां कैंसल कर दें तो बीजेपी फौरन ही दबाव में आ सकती है, लेकिन ऐसा वो शायद ही कर पायें क्योंकि ये तो किसी की कॉपी करने जैसी तौहीन समझी जाएगी.
बहरहाल, राहुल गांधी की पहल का बीजेपी पर काफी तेज असर हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने एक नया अभियान शुरू किया है - अपना बूथ, कोरोना मुक्त. बीजेपी की ये मुहिम पूरे देश के लिए है, न कि सिर्फ पश्चिम बंगाल के लिए - लेकिन फायदा तो उतना ही पश्चिम बंगाल को भी होगा ही.
कांग्रेस को अपने नेता की इस पहल का पश्चिम बंगाल चुनाव में फायदा मिले न मिले, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी चाहें तो नये सिरे से अपनी छवि निखारने में इसका इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
बीजेपी पर राहुल का दबाव चल गया
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों और प्रदेश अध्यक्षों के साथ हुई एक वर्चुअल मीटिंग में पार्टी के एक बड़े अभियान की शुरुआत की - ‘अपना बूथ-कोरोना मुक्त.’
अभियान के नाम से ही साफ है, बीजेपी बूथ लेवल पर अपने कार्यकर्ताओं को कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में उतारने जा रही है. ये तो जगजाहिर है कि बीजेपी का बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता ही उसकी कामयाबी की सबसे मजबूत कड़ी है. अमित शाह का भी अब तक सबसे ज्यादा जोर बूथ स्तर पर ही लोगों के बीच कार्यकर्ताओं के जरिये पैठ बनाने में रही है.
2019 के आम चुनाव से पहले भी ऐसा ही एक अभियान शुरू किया गया था - 'मेरा बूथ, सबसे मजबूत'. बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बूथ के मजबूत होने का महत्व भी समझाया था. प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि उनका पूरा जोर बूथ जीतने पर होना चाहिये - और अगर बूध जीत लिये फिर तो चुनाव अपनेआप ही जीत जाएंगे.
हालांकि, बीजेपी ये समझाने की कोशिश कर रही है कि कोरोना मुक्त बूथ अभियान चुनावों से जुड़ा न होकर पार्टी के ही पुराने कार्यक्रम का नया रूप है. 2020 में कोरोना वायरस के चलते देश में लागू किये गये संपूर्ण लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को दिहाड़ी मजदूरों और ऐसे ही गरीब लोगों की मदद करने की अपील की थी.
राहुल गांधी के साथ बहुत टकराव का मामला न हो तो बीजेपी पर बंगाल में दबाव बनाने का ममता बनर्जी के पास आखिरी मौका है
2020 में बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना वायरस और लॉकडाउन से पैदा हुए हालात में जरूरतमंदों की मदद के लिए सेवा ही संगठन मुहिम चलायी थी - और अब कोरोना मुक्त बूथ अभियान को उसी मुहिम का एक्सटेंशन बताया जा रहा है.
असल में, देश भर में कोरोना वायरस के फैलने के बाद सवाल चुनावी रैलियों पर सवाल उठाये जाने लगे हैं - और ये दबाव ही रहा होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संतों सी हरिद्वार कुंभ में दो शाही स्नान हो जाने के बाद मेले को प्रतीकात्मक रूप में जारी रखने या कहें कि समेट लेने की अपील की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सिलसिल में जूना अखाड़ा के प्रमुख स्वामी अवधेशानंद से फोन पर बात भी की थी. ये प्रधानमंत्री की अपील और बातचीत का ही असर रहा कि अवधेशानंद ने मोदी के मन मुताबिक ही फैसला लिया.
हो सकता है बीजेपी में पहले से ऐसे कार्यक्रम को लेकर विचार विमर्श चल रहा हो, लेकिन माना तो यही जाएगा कि राहुल गांधी के रैलियां रद्द करने की घोषणा के बाद ही, दबाव में आ कर बीजेपी ने ऐसा फैसला लिया जिससे लोगों के गुस्से को थोड़ा कम किया जा सके.
कुंभ को लेकर अपनी अपील के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी आलोचनाओं से नहीं बच सके कि चुनावी रैलियों में जुट रही भीड़ के दुष्परिणामों की किसी को कोई परवाह नहीं है. बल्कि, सुबह कुंभ को लेकर अपील के बाद जैसे ही दोपहर में प्रधानमंत्री मोदी रैली करने पश्चिम बंगाल पहुंचे लोगों की भीड़ देख कर अपनी खुशी का इजहार भी किया.
प्रधानमंत्री मोदी की रैली के समानांतर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का रोड शो और रैलियों का कार्यक्रम भी चल रहा था - और दोनों ही नेताओं के निशाने पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही रहीं.
मौका तो अभी ममता के पास भी है
ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी के चुनावी रैलियां रद्द कर देने पर चौतरफा जय जयकार होनी शुरू हो जाएगी. राहुल गांधी के राजनीतिक विरोधी बड़े आराम से कह सकते हैं कि जब कांग्रेस हार ही रही थी तो राहुल गांधी रैलियां कर के भी क्या हासिल कर पाते. वैसे ही कौन वो चुनाव प्रचार कर रहे थे. तीन चरणों के चुनाव बीत जाने के बाद भी चौथे चरण में ब्रेक लेने के बाद ही वो पांचवें चरण के चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पश्चिम बंगाल पहुंचे और दो रैलियां की. राहुल गांधी के विरोधियों के लिए ये कहना भी आसान ही होता है कि वो तो बीच में ही चुनाव प्रचार छोड़ कर विदेश दौरे पर छुट्टी मनाने चले जाते हैं. ऐसा वो झारखंड विधानसभा के चुनाव के वक्त कर भी चुके हैं. उनके चले जाने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने खूंटी में कांग्रेस की रैली का नेतृत्व किया था. बाहरियों की कौन कहे, कांग्रेस के ही G-23 नेता भी तो कह ही सकते हैं कि बिहार में ही राहुल गांधी की चुनावी रैलियां करने के बाद भी कांग्रेस को क्या हासिल हुआ.
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियां रद्द करने पर भी राहुल गांधी का मजाक उड़ाने का पूरा स्कोप है - और ऐसी छिटपुट बातें बीजेपी नेताओं की तरफ से शुरू भी हो गयी हैं.
होना तो ये चाहिये था कि राहुल गांधी जैसी पहल तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी शुरू करतीं. ममता बनर्जी चुनाव आयोग से बाकी बचे चरणों के लिए मतदान एक साथ कराने की मांग कर रही थीं, लेकिन चुनाव आयोग ने ठुकरा दिया था.
ममता बनर्जी अगर राहुल गांधी से पहले ही अपनी चुनावी रैलियां रद्द कर देने की घोषणा कर दी होतीं तो उसका अलग असर होता - और चुनाव आयोग के खिलाफ भी ममता बनर्जी की तरफ से गांधीगीरी जैसा संदेश जाता.
फिर भी ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी अब से कोई ऐसा कदम नहीं उठा पाएंगी - अब भी ममता बनर्जी के पास मौका है जब वो राहुल गांधी और सीपीएम की तरफ अपनी आगे की सभी चुनावी रैलियां रद्द कर दें. सीपीएम ने ही सबसे पहले घोषणा की थी कि वो बड़ी चुनावी रैलियां नहीं करने जा रहे हैं - बल्कि सोशल मीडिया का सहारा लेंगे और घर घर जाकर लोगों से वोट मांगेंगे. रैलियां रद्द करने के साथ राहुल गांधी ने सीपीएम की तरह ये नहीं बताया है कि कांग्रेस की आगे की चुनाव प्रचार की रणनीति क्या होगी? फिलहाल कांग्रेस और वाम दलों में चुनावी गठबंधन हो रखा है.
राहुल गांधी ट्वीट कर बताया, 'कोविड संकट को देखते हुए मैंने पश्चिम बंगाल की अपनी सभी रैलियां रद्द करने का फैसला किया है. मैं सभी राजनीतिक नेताओं को सलाह दूंगा कि मौजूदा हालात में बड़ी सार्वजनिक रैलियां करने से पहले उसके नतीजों पर गहराई से विचार करें.'
ममता बनर्जी तो नहीं, लेकिन राहुल गांधी से पहले तृणमूल सरकार में मंत्री और भवानीपुर सीट से टीएमसी उम्मीदवार शोवनदेव चटोपाध्याय ने बड़ी रैली नहीं करने का ऐलान जरूर कर दिया था. शोवन चट्टोपाध्याय का कहना रहा, "कोरोना संक्रमण को बढ़ते देख मैंने भवानीपुर में कोई भी बड़ी रैली नहीं करने का फैसला लिया है.'
राहुल गांधी की ही तरह शोवनदेव चट्टोपाध्याय ने भी सभी राजनीतिक दलों से बड़ी रैली करने से पहले एक जरूर सोच लेने की अपील कर रखी है. भवानीपुर, दरअसल, अब तक ममता बनर्जी का ही विधानसभा क्षेत्र रहा है, लेकिन बीजेपी की तरफ से चुनौती मिलने के बाद वो नंदीग्राम पहुंच गयी हैं जहां उनके ही राजनीतिक सहयोगी रहे शुभेंदु अधिकारी चुनावी मैदान में उनको चैलेंज कर रहे हैं. भवानीपुर में 26 अप्रैल को सातवें चरण में मतदान होना है.
पश्चिम बंगाल में पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं और अभी तीन फेज के बाकी हैं - ऐसा भी नहीं कह सकते कि ममता बनर्जी ने मौका गंवा दिया है, अब भी वो चाहें तो अपनी चुनावी रैलियां रद्द कर बीजेपी और चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ाने के साथ ही कोरोना काल में लोगों की सहानुभूति हासिल कर सकती हैं.
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