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Updated: 29 जुलाई, 2021 06:54 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने अपने दिल्ली दौरे पर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात की. भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक संयुक्त विपक्ष के लिहाज से इस मुलाकात के मायने काफी बढ़ जाते हैं. पश्चिम बंगाल में बुरी तरह से हारी कांग्रेस तमाम गिले-शिकवे भुलाकर ममता बनर्जी के साथ एकजुट विपक्ष का संदेश दे रही है. राहुल गांधी ट्रैक्टर लेकर संसद पहुंच रहे हैं और मिशन 2024 के लिए पीएम मोदी के खिलाफ खुद को मजबूत चेहरा दिखाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. पंजाब में बीते कई महीनों से कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चली आ रही 'जंग' को भी खत्म किया जा चुका है. माना जा रहा है कि राजस्थान में भी जल्द ही कांग्रेस आलाकमान के फैसले को ध्यान में रखते हुए अशोक गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे. पंजाब की ही तर्ज पर चार कार्यकारी अध्यक्ष का फॉर्मूला राजस्थान में भी लागू होगा. इन सबके बावजूद कांग्रेस के मिशन 2024 में पार्टी के आंतरिक विवाद सबसे बड़ा रोड़ा हैं.

2022 की पहली तिमाही में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं.2022 की पहली तिमाही में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं.

दरअसल, 2024 में होने वाले आम चुनाव से पहले देश के करीब 15 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. देश में हर छह महीने के अंतराल पर चुनावी उत्सवों का दौर शुरू हो जाएगा. जो कांग्रेस के लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं कहा जा सकता है. 2022 की पहली तिमाही में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं. जिनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के नाम शामिल हैं. पंजाब कांग्रेस में चल रहा आंतरिक विवाद आलकमान ने निपटा लिया है. लेकिन, उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत को पार्टी के ही नेता प्रीतम सिंह से लगातार चुनौती मिल रही है. उत्तराखंड में हरीश रावत खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट करने में लगे हुए हैं. वहीं, प्रीतम सिंह संयुक्त नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कहते दिख रहे हैं. प्रीतम सिंह कहा कहना है कि पार्टी ने कमेटी की घोषणा की है, सीएम के चेहरे की नहीं.

2022 के आखिरी महीनों में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इन दोनों ही राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होना है. लेकिन, दोनों राज्यों में भी गुटबाजी अपने चरम पर पहुंच चुकी है. गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी नहीं दी जाती है. गुजरात कांग्रेस के ही अन्य नेताओं उन्हें किनारे लगाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री भरत सोलंकी, कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद शक्ति सिंह गोहिल, अर्जुन मोडवाडिया जैसे नेता प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए खेमेबाजी में लगे हुए हैं. वहीं, हिमाचल प्रदेश की बात करें, तो कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद पार्टी में गुटबाजी हावी हो गई है. दोबारा सत्ता में आने की कोशिशों में लगी कांग्रेस के सामने यहां एक चेहरे पर सहमति बनाना टेढ़ी खीर साबित होगा.

2023 में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होने हैं. इसके बाद मई में कर्नाटक का विधानसभा चुनाव होगा. कर्नाटक में पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच भी सियासी खींचतान चरम पर है. दरअसल, डीके शिवकुमार कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए विधायकों की पार्टी में वापसी के लिए कोशिशें कर रहे हैं. लेकिन, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इसके लिए तैयार नही हैं. 2023 के आखिरी महीने में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना राज्यों में विधानसभा चुनाव होंने हैं. मध्य प्रदेश की बात करें, तो कमलनाथ सरकार गिराने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस में पकड़ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इस बात की पूरी संभावना है कि अगली बार कमलनाथ का नाम आगे होने पर कोई अन्य कांग्रेस नेता भड़क जाए.

वहीं, माना जा रहा है कि राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सचिन पायलट शांत हो जाएंगे. लेकिन, 2023 के विधानसभा चुनाव में वो खुद को सीएम फेस न बनाने पर फिर से विद्रोही रुख अख्तियार कर सकते हैं. छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर सीएम की रेस से पीछे हटे टीएस सिंहदेव की नाराजगी मौके-बेमौके पर सामने आ ही जाती है. भूपेश बघेल के फैसलों पर लगातार सवाल उठाकर वो कांग्रेस आलाकमान के सामने अपनी नाराजगी दर्ज कराने में कोई कमी नहीं छोड़ते हैं. फिलहाल कांग्रेस में सर्वोच्च से लेकर राज्य स्तर पर सियासी घमासान मचा हुआ है. ये सियासी खींचतान चुनावी राज्यों से इतर अन्य राज्यों में भी जारी है.

हरियाणा में सोनिया गांधी की करीबी कही जाने वाली कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने मोर्चा खोल दिया था. झारखंड में कांग्रेस के विधायक गठबंधन सरकार में अपनी बातों को अनसुना करने के आरोप लगाकर पार्टी को नुकसान झेलने की चेतावनी दे चुके हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले के बयानों से राज्य में एनसीपी और शिवसेना के साथ चल रही पार्टी की गठबंधन सरकार पर हमेशा ही खतरा मंडराता नजर आता है. कहना गलत नहीं होगा कि मिशन 2024 के सपने संजो रही कांग्रेस को अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है. सबसे पहले उसे पार्टी के भीतर ही सिर उठा रहे विवादों का हल खोजना होगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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