राष्ट्रीय जनसंख्या नीति - भाजपा के नेता मांगे दो संतान नीति, पर शीर्ष नेतृत्व चुप
जनसंख्या नीति पर अगर भाजपा गंभीर है तो आखिर शीर्ष नेतृत्व कोई बयान क्यों नहीं देता? भाजपा के सांसद प्राइवेट मेंबर बिल के द्वारा इस विषय को क्यों उठाते हैं, मोदी सरकार इस विषय पर कोई क़ानून क्यों नहीं बनाती है? क्या भाजपा भी चुनावी फ़ायदों के लिए चुप बैठी है?
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लोकसभा में भाजपा सांसदों ने मांग उठाई है कि राष्ट्रीय जनसंख्या नीति में सुधार कर, दो संतान नीति को लागू किया जाए. कोडरमा से भाजपा सांसद रविन्द्र कुमार का कहना है कि जिस परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हो उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए. वहीं सहारनपुर से भाजपा सांसद राघव लखनपाल की मांग कि अगर किसी परिवार में दो से ज़्यादा बच्चे हैं तो दूसरी संतान के बाद बच्चों को सरकारी नौकरी, अनुवृत्ति से वंचित किया जाए. इसके साथ-साथ उस संतान पर चुनाव लड़ने पर भी रोक हो. लखनपाल ने जनसंख्या विनियमन के लिए एक अतिरिक्त मंत्रालय की मांग भी की.
भाजपा के निचले और मध्य क्रम के नेता अलग-अलग मौकों पर जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो संतान नीति की मांग करते रहे हैं. हमेशा से भाजपा का यह मत रहा है कि मुस्लिम समाज की जनसंख्या वृद्धि दर, देश की जनसंख्या वृद्धि दर से बहुत अधिक है. भाजपा ये आरोप लगाती रही है कि इस विसंगति के कारण देश के कई जनपदों में मुस्लिम जनसंख्या 50% से अधिक हो गई है या 50% के निकट पहुंच गई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश- दक्षिण उत्तराखंड के कई जनपद (हरिद्वार, सहारनपुर, शामली, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, बाघपत, गाज़ियाबाद, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, बरेली), बिहार (किशनगंज, कटिहार, अररिया), पश्चिम बंगाल (दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद, बीरभूम, 24 परगना, हावड़ा के क्षेत्र), केरल में मल्लपुरम, असम के 9 जनपद (धुबरी, बारपेटा, दरांग, हैलकंडी, गोलपाड़ा, करीमगंज, नागाओं, मोरिगाओं, बोंगाईगांव) इस श्रेणी में आते है.
जनसंख्या नीति पर सरकार की चुप्पी क्यों?
भाजपा तर्क देती है कि इस जनसंख्या परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे हालत पैदा हो जाएंगे. अपनी चुनावी रैलियों में भाजपा ज़ोर शोर से कहती है कि यदि यह सिलसिला यूंही जारी रहा तो 2055-2060 तक भारत में मुस्लिम समाज बहुसंख्यक बन जाएगा.
राजनीति छोड़ अगर हम केवल आकड़ों पर जाएं तो देश के कई जनपदों में जनसंख्या परिवर्तन साफ़ तौर पर नज़र आता है. देश में जनसंख्या विसंगति एक सच्चाई है, जिसे हम नकार नहीं सकते हैं. भाजपा के कुछ नेता बीच-बीच में इस मुद्दे को उठाते तो हैं पर उनकी कोई दूरगामी नीति नहीं है.
इस विषय पर भाजपा की कोई स्पष्ट नीति नहीं है. अगर भाजपा इस मुद्दे पर गंभीर है तो भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस विषय पर कोई बयान क्यों नहीं देता है? भाजपा के सांसद प्राइवेट मेंबर बिल के द्वारा इस विषय को क्यों उठाते हैं, मोदी सरकार इस विषय पर कोई क़ानून क्यों नहीं बनाती है? क्या भाजपा भी चुनावी फ़ायदों के लिए चुप बैठी है?
दरअसल भाजपा अपनी सहूलियत के अनुसार इस विषय का प्रयोग करना चाहती है. ऐसा लगता है कि उनकी नीति इस विषय को गरम रखना है, लेकिन कोई समाधान खोजना नहीं है. भाजपा को मालूम होना चाहिए कि ये मुद्दा 2019 लोकसभा चुनावों में मुख्य मुद्दा बनकर उभरेगा. अतः इसका कोई दूरगामी समाधान खोजना अति आवश्यक है.
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