सुब्रमण्यन स्वामी ही नहीं, बीजेपी के ये बागी भी नेतृत्व के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं!
पीएम मोदी के खिलाफ अपने अंदर छिपी नफरत जाहिर करते सुब्रमण्यम स्वामी अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते नजर आ रहे हैं. बाकी बात भाजपा की चली है तो सिर्फ स्वामी ही नहीं कई और भी है जिन्होंने नेतृत्व के खिलाफ जहर उगला और अपना राजनीतिक भविष्य बर्बाद कर लिया.
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अपने आतिशी तेवरों से अक्सर ही विरोधियों विशेषकर कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं के दांत खट्टे करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी आहत हैं. कारण क्या है? इसके बारे में कोई खास जानकारी अभी बाहर निकल कर सामने नहीं आई है. लेकिन अंदरखाने जो सुगबुगाहट है, खबर है कि स्वामी की चिंता का कारण आम जनमानस के बीच पीएम मोदी का बढ़ता कद है. स्वामी पीएम मोदी से किस हद तक जले भुने हैं. इसका अंदाजा लगाने के लिए कहीं दूर क्या ही जाना. ट्विटर का ही रुख कर लिया जाए. एक तरफ जहां देश पीएम मोदी की नीतियों और उनके द्वारा निर्णय लेने की क्षमता का कायल हो बीते 25 नवंबर को सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने पीएम मोदी का रिपोर्ट पेश किया था और उन्हें तमाम मोर्चों पर असफल करार दिया था.
स्वामी ने देश की आंतरिक सुरक्षा, इकोनॉमी, सीमा सुरक्षा, विदेश नीति जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को फेल बताया है. साथ ही उन्होंने व्यंग्य कसते हुए लिखा है कि इन सबके लिए सुब्रमण्यम स्वामी जिम्मेदार है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद लोग स्वामी के इस ट्वीट का सही से आंकलन और अवलोकन कर भी नहीं पाए थे कि अभी बीते दिन ही उन्होंने एक ट्वीट और किया है जिसमें उन्होंने न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ईर्ष्यालु कहा है बल्कि ये तक कह दिया है कि प्रधानमंत्री हीन भावना से ग्रस्त हैं. साथ ही स्वामी ने अपने ट्वीट में देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर को भी आड़े हाथों लिया है और उन्हें नाकामयाब बताया है.
पीएम मोदी और भाजपा की नीतियों का विरोध कर खुद को मुसीबत में डाल रहे हैं सुब्रमण्यम स्वामी
दरअसल स्वामी ने केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की सिंगापुर यात्रा को मुद्दा बनाया है. स्वामी ने कहा है कि जेएनयू से पढ़ाई लिखाई करके बाहर निकला शख्स जिसने नौकरशाह से विदेश मंत्री का सफर तय किया हो, वह छोटे से द्वीप सिंगापुर में प्रधानमंत्री समेत 8 मंत्रियों से अलग अलग मिलता है. लेकिन खाली हाथ लौट आता है. बाद में स्वामी ने जयशंकर पर व्यंग्य भी किया है और ताना मारते हुए कहा है कि सिंगापुर के बाद अगला टार्गेट दो छोटे द्वीपों को जोड़कर बनाया गया देश सेशेल्स है.
It is ridiculously funny that a JNU trained foreign affairs bureaucrat turned Minister turns up in a small island nation I.e., Singapore to meet 8 Ministers including PM, each separately and then come back empty handed. Next is Seychelles?
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 28, 2021
ये सब स्वामी ट्विटर पर कह रहे थे और जैसा कि ट्विटर का उसूल है लोग मौज लेने का कोई न कोई बहाना खोज ली लेते हैं. स्वामी की बातें या कहें कि स्वामी का यह ट्वीट भी लोगों की नजरों में आया और एक यूजर ने चुटकी लेते हुए कह ही दिया कि सर आपको देश का वित्त मंत्री होना चाहिए.
Sirji,You deserve to be indian finance minister!
— The Captain (@TheCapt77371090) November 28, 2021
यूजर का ये कहना भर था स्वामी आहत हो गए और फौरन ही प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि एक शिक्षित मंत्री तभी अनुकूल परिणाम दे सकता है जब प्रधानमंत्री में ईर्ष्या और हीन भावना न हो और न ही क्रेडिट लेने जैसी कोई बीमारी हो. अपनी बातों को वजन देने के लिए स्वामी ने मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी का उदाहरण दिया.
A well educated Minister can deliver only if Prime Minister does not suffer from jealousy, inferiority complex and pathological desire for claiming credit.. That is why Morarji Desai could not deliver when Indira Gandhi was PM. Dr. Ambedkar and S. P. Mukherjee did not with Nehru.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 28, 2021
जैसा कि हम बता चुके है स्वामी का सरकार की आलोचना करना कोई नया नहीं है. चाहे वो चीन का भारतीय सीमाओं पर कब्जा हो. या फिर अभी हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों की वापसी की बात. स्वामी ऐसा बहुत कुछ कह चुके हैं जो न केवल निंदनीय है. बल्कि जो शायद उनका कद आम जनमानस के सामने छोटा करता है. अब चूंकि आलोचना के नाम पर स्वामी अपनी ही पार्टी और प्रधानमंत्री की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं जैसे उनके प्रति सरकार के तेवर है साफ दिखाई दे रहा है कि पार्टी और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल रहे हैं.
Modi Government's Report Card:Economy---FAILBorder Security--FAILForeign Policy --Afghanistan Fiasco National Security ---Pegasus NSOInternal Security---Kashmir GloomWho is responsible?--Subramanian Swamy
— Subramanian Swamy (@Swamy39) November 24, 2021
बात अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा आलोचना की हुई है तो भाजपा और स्वयं पीएम मोदी के लिए स्वामी की ये बातें नई नहीं हैं. आइये नजर डालें भाजपा के कुछ ऐसे नेताओं पर जिन्होंने हाल फिलहाल में जमकर पार्टी और पीएम की आलोचना की और जिन्हें साइड लाइन कर दिया गया.
सत्यपाल मलिक
हाल फिलहाल में जैसा रुख मेघलाय के गवर्नर सत्यपाल मलिक का है वो पार्टी के लिए किसी सिर दर्द से कम नहीं है. इन दिनों जिस तरह की बातें मलिक कर रहे हैं वो न केवल भाजपा के नेताओं के पेट में मरोड़ पैदा कर रही हैं बल्कि इस बात की भी तसदीख कर दे रही हैं कि अब वो वक़्त आ गया है जब मलिक पूरी तरह से पार्टी लाइन से अलग हो गए हैं. बताते चलें कि अभी बीते दिनों ही मलिक ने कश्मीर को तो मुद्दा बनाया ही साथ ही उन्होंने कृषि कानूनों को लेकर भी सरकार की तीखी आलोचना की.
जैसा कि ज्ञात है मौजूदा वक्त में कश्मीर में आतंकी वारदातों में इजाफा हुआ है. इसपर सत्यपाल मलिक ने कहा था कि उनके राज्यपाल रहते श्रीनगर क्या उसके 50-100 किमी के आसपास भी आतंकी नहीं फटक पाते थे. वहीं, अब राज्य में वो हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं. वहीं उन्होंने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों की वापसी का भी समर्थन किया था और सरकार और पीएम मोदी की नीतियों की मुद्दा बनाकर तमाम बातें कहीं थीं.
मलिक का कहना था कि यदि किसानों की नहीं सुनी गई तो यह केंद्र सरकार दोबारा नहीं आएगी. मलिक ने लखीमपुर खीरी की घटना को भी बड़ा मुद्दा बनाया था और कहा था कि लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा का इस्तीफा उसी दिन होना चाहिए था. वो वैसे ही मंत्री होने लायक नहीं हैं.
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सरकार की आलोचना मलिक ने अभी शुरू की है. मलिक के तेवर उस वक़्त बदले थे जब वो गोवा के राज्यपाल थे. तब मलिक ने कोरोना वायरस को मुद्दा बनाते हुए सरकार की नाकामियों को गिनाया था. साथ ही उन्होंने गोवा राज्य सरकार के एक नए राजभवन के निर्माण के फैसले पर भी आपत्ति जताई थी जिसके चलते राज्य के मुख्यमंत्री से भी उनकी तकरार हुई थी और इसी के फौरन बाद उन्हें मेघालय का राज्यपाल नियुक्त किया था.
मलिक के प्रति जैसा सरकार का रवैया है उनकी बातों को न तो पार्टी ही कोई खास महत्व दे रही है न ही किसी शीर्ष नेता द्वारा उन्हें कान दिया जा रहा है.
वरुण गांधी
बात मौजूदा वक्त के उन भाजपा नेताओं की चल रही है जो बगावत पर उतरे हैं और पार्टी लाइन से अलग होकर बातें कह रहे हैं ऐसे में अगर हम वरुण गांधी का जिक्र न करें तो बात बहुत हद तक अधूरी रह जाती है. वर्तमान में जैसा रवैया वरुण का केंद्र सरकार के प्रति है, उसे देखकर महसूस यही हो रहा है कि जैसे वो पार्टी में रहकर भी पार्टी में नहीं हैं.
चाहे वो बॉलीवुड एक्टर कंगना रनौत के आजादी वाले बयान के विरोध में खुलकर सामने आना हो या फिर एमएसपी पर कानून बनाने और लखीमपुर हिंसा में तत्काल कार्रवाई की मांग वरुण लगातार अपनी बातों से केंद्र सरकार की नाक में दम किये पड़े हैं.
चूंकि वरुण को पार्टी ने अप्रत्यक्ष रूप से बाहर का रास्ता दिखा ही दिया है तो अंदरखाने खबर ये भी है कि भविष्य में टीएमसी जॉइन कर भाजपा की मुसीबतों में इजाफा कर सकते हैं पार्टी के फायर ब्रांड नेता वरुण गांधी.
जैसा कि हम बता चुके हैं बिगड़ों को सबक सिखाना भाजपा के लिए कोई नया नहीं है इसलिए पूर्व में चाहे वो यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे मंझे हुए राजनेता हों या फिर बॉलीवुड से पॉलिटिक्स में आए शत्रुघ्न सिन्हा इन सभी लोगों ने पीएम मोदी और भाजपा की नीतियों की कड़ी आलोचना की थी.
ये लोग अपनी बातें कहते रहे लेकि पीएम से लेकर पार्टी तक किसी ने भी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया.एक समय वो भी आया जब इन लोगों ने खुद ब खुद पार्टी से किनारा कर लिया.
बात क्योंकि राज्यसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी से जुड़ी है. और जिस तरह उनकी बातों को नजरअंदाज किया जा रहा है. ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि वो दिन दूर नहीं जब हम तमाम अन्य लोगों की तरह स्वामी को भी किसी अन्य दल का रुख करते देखेंगे. यूं भी स्वामी को समझना चाहिए कि जब पार्टी के साथ चलना नहीं है तो वहां रहकर फायदा भी क्या?
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